पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९३२

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R भूतनाथ यह सब तमाशा देखकर ताज्जुब कर रहा था। अर्जुन और नानक को बिदा करने बाद तेजसिह को साथ लिए हुए इन्द्रदेव महाराज सुरेन्दसिह के पास गया जो एक सुन्दर चट्टान पर खड-खडढालवी जमीन और पहाड़ी पर से नीच की तरफ गिरते हुए सुन्दर झरन की शाभा दख रहे थे ओर बीरेन्द्रसिह पीउन्हीं के पास खर्ड य । यहाँ भी क्छ देर तक इन्द्रदेव ने महाराज से बातचीत की और इसके बाद चारो आदमी लौट कर बागीच में चले आये। महाराज का जागीचे में आत देख और सब कोई भी जो इधर-उधर फैले हुए तमाशा देख रहे थे बागीचे में आकर इकट्ठे हो गए और अब मानों महाराज का यह एक छोटा सा दर्बार बागीचे में लग गया। बीरेन्द्र- इन्द्रदेव से ) हो तो अब वे तमाशे कब देखने में आगे जो आप अपने साथ तिलिस्म में लेत गये थे? इन्द्रदेव-जब आज्ञा हो तभी दिखाये जॉय। वीरेन्द्र-हम लोग तो देखने के लिए तैयार बैठे हैं। जीत-मगर पहिले यह मालूम हा जाना चाहिए कि उनके देखने में कितना समय लगेगा, अगर थाडी दर का काम हो तो अभी देख लिया जाय। इन्द्र-जी वह थोडी देर का काम तो नहीं है इससे यही बेहतर होगा कि पहले जरूरी कामों से छुट्टी पाकर स्नान ध्यान तथा भोजन इत्यादि से निवृत्त हो लें। महाराज-हमारी भी यही राय है। महाराज का मतलब समझकर सब कोई उठ खडे हुए और जरूरी काम से छुट्टी पान की फिक्र में लगे। महाराज सुरेन्दसिह बीरेन्दसिह तथा और भी सब कोई इन्द्रदेव के उचित प्रबन्ध का देखकर बहुत ही प्रसन्न हुए। किसी को किसी तरह की तकलीफ न हुई और न कोई चीज मांगने की जरूरत ही पड़ी। इन्द्रदेव के ऐयार और कई खिदमतगार आकर मौजूद हो गये और बात की बात में सब सामान ठीक हो गया। स्नान तथा सध्या पूजा इत्यादि से छुट्टी पाकर सभों ने भोजन किया और इसके बाद इन्द्रदेव ने (बगल के अन्दर) एक बहुत बड़े और सजे हुए कमरे में सभों को बैठाया जहाँ समों के योग्य दर्जे व दर्जे बैठन का इन्तजाम किया गया था। एक ऊँची गद्दी पर महाराज सुरेन्दसिह और उनके दाहिने तरफ वीरेन्द्रसिह गोपालसिह तेजसिह देवीसिह पण्डित बद्रीनाथ रामनारायण पन्नालाल तथा भूतनाथ वगैरह बैठे कुछ देर तक इधर-उधर की बातचीत होती रही इसके बाद इन्ददेव ने हाथ जोड़कर पूछा- अब यदि आज्ञा होता तम्गशों को महाराज-हाँ हाँ अब तो हम लोग हर तरह से निश्चिन्त हैं। - सलाम करक इन्द्रदेव कमरे के बाहर चला गया और घडी भर तक लौट के नहीं आया इसके बाद जब आया तो चुपचाप अपने स्थान पर आकर बैठ गया। काई (भूतनाथ पन्नालाल वगैरह) ताज्जुब के साथ उसका मुंह देख रहे थकि इतन में ही सामने वाले दर्वाज का परदा हटा और नानक कमरे के अन्दर आता हुआ दिखाई दिया। नानक ने बडे अदव के साथ महाराज को सलाम किया और इन्ददेव का इशारा पाकर एक किनारे बैठ गया। इस समय नानक के हाथ में एक बहुत बड़ी मगर लपेटी हुई तस्वीर थी जो कि उसने अपने बगल में रख ली। नानक के बाद हाथ में तत्वीर लिए अर्जुन भी आ पहुचा और महाराज का सलाम कर नायक के णस बैत गया उसी समय कमला का भाई अथवा भूतनाथ ला लडका हरनामसिह दिखाई दिया, वह भी महाराज को प्रणाम करके अर्जुन के बगल में बैठ गया। इरनामसिह के हाथ में एक छोटी सी सन्दूकडी थी जिसे उसने अपने सामने रख लिया। इसके बाद नकाब पहने हुई तीन औरतें कमरे के अन्दर आई और अदब के साथ महाराज को सलाम करती हुई दूसर दांजे से कमर के बाहर निकल गई। इस समय भूतनाथ और देवीसिह के दिल की क्या हालत थी सो वे ही जानते होगे। उन्हें इस बात का तो विश्वास ही था कि इन ओरतों में एकता भूतनाथ की स्त्री और दूसरी घम्ण जरूर है मगर तीसरी औरत के बारे में कुछ भी नहीं कह सकते थे। महाराज (इन्द्रदेव से ) इन औरतों में भूतनाथ की स्त्री और चम्पा जरूर होगी? इन्द्र-(हाथ जोडकर) जी हाँ कृपानाथ । महाराज--और तीसरी औरत कौन है ? देवकीनन्दन खत्री समग्र