पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९३४

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len इसी तरह महाराज शिवदत्त को देखिये जिसे खुशामदियों ने मिल जुलकर बर्बाद कर दिया। जो लोग खुशामद में पड़ कर अपन को सबसे बड़ा समझ बैठते हैं और दुश्मन को कोई चीज नहीं समझते है उनकी वैसी ही गति होती है जैसी शिवदत्त की हुई। दुष्टों और दुजनों की यात जाने दीजिए उनको तो उनके बुरे कामों का फल मिलना ही चाहिए मिला ही है और मिलेगा ही उनका जिक्र तो मै पीछे करूगा अभी तो मैं उन लोगों की तरफ इशारा करता हू जो वास्तव में बुरे नहीं थे मगर नीति पर न चलने तथा बुरी सोहबत में पड रहने के कारण सकट में पड़ गय। मै दावे के साथ कहता है कि भूतनाथ ऐसा नेक दयावान और चतुर ऐयार बहुत कम दिखाई देगा. मगर लालच और ऐयाशी के फेर में पडकर यह ऐसा बाद हुआ कि दुनिया भर में मुह छिपाने और अपने का मुर्दा मशहूर करने पर भी इसे सुख की नींद नसीब न हुई। अगर यह मेहनत करके ईमानदारी के साथ दौलत पैदा किया चाहता तो आज इसकी दौलत का अन्दाज करना कठिन होता और अगर ऐयाशी के फेर में न पडा होता तो आज नाती पोतो से इसका घर दूसरों क लिए नजीर गिना जाता। इसने सोचा कि नै मालदार इ, होशियार हूं, चालाक हू और ऐयार हू, कुलटा स्त्रियों और रण्डियों की सोहबत का मजा लेकर सफाई के साथ अलग हो जाऊँगा, मगर इसे अब मालूम हुआ होगा कि रण्डिया ऐयारों के भी कान काटती हैं। नागर वगैरह के बर्ताव को जब यह याद करता होगा तब इसके कलेजे में चोट सी लगती होगी। में इस समय इसकी शिकायत करने पर उतारूं नहीं हुआ है बल्कि इसके दिल पर से पहाड सा वोझ हटाकर उसे हलका किया चाहता हू, क्योंकि इसे मे अपना दोस्त समझता था और समझता हू, हॉ इधर कई वर्षों से इसका विश्वास अवश्य उठ गया था और मै इसकी सोहबत पसन्द नहीं करता था मगर इसमें मेरा कोई कसूर नहीं किसी की चाल-चलनजब खराब हो जाती है तब बुद्धिमान लोग उसका विश्गस नहीं करते और शास्त्र की भी ऐसी ही आज्ञा है, अतएव मुझे भी वैसा ही करना पडा । यद्यपि मैंने इसे किसी तरह की तकलीफ नहीं पहुचाई परन्तु इसकी दोस्ती को एक दम भूल गया, मुलाकात होने पर उसी तरह बर्ताव करता था जैसा लोग नए मुलाकाती के साथ किया करते हैं। हाँ अब जब कि यह अपनी चालचलन को सुधार कर आदमी बना है अपनी भूलों को सोच-समझकर पड़ता चुका हे एक अच्छे ढग से नेकी के साथ नामवरी पैदा करता हुआ दुनिया में फिर दिखाई देने लगा है और महाराज भी इसकी योग्यता से प्रसन्न होकर इसके अपराधों को ( दुनिया के लिए) क्षमा कर चुके हैं तब मैंन भी इसके अपराधों को दिल ही दिल में क्षमा कर इसे अपना मित्र समझ लिया है और फिर उसी निगाह से देखने लगा हू जिस निगाह से पहिले देखता था। परन्तु इतना मै जरूर कहूगा कि भूतनाथ ही एक ऐसा आदमी है जो दुनिया में नेकचलनी और बदचलनी के नतीजे को दिखाने के लिए नमूना बन रहा है। आज यह अपने भेदी को प्रकट हाते दख डरता है और चाहता है कि हमारे भेद छिपे के छिपे रह जाय मगर यह इसकी भूल है क्योंकि किसी के एव छिप नहीं रहते। सव नहीं तो बहुत कुछ दोनों कुमारों को मालूम हो ही चुके हैं और महाराज भी जान गये है ऐसी अवस्था में इसे अपना किस्सा पूरा-पूरत्बयान करके दुनिया में एक नजीर छोड़ देना चाहिए और साथ ही इसक { भूतनाथ की तरफ देखते हुए) अपने दिल के बोझ को भी हलका कर लना चाहिए। भूतनाथ तुम्हारे दो चार भेद ऐसे है जिन्हें सुनकर लोगों की आँखें खुल जायेंगी और लाग समझेंगे कि हॉ आदमी ऐसे-ऐसे काम भी कर गुजरते हैं और उनका नतीजा ऐसा होता है मगर यह तो कुछ तुम्हारे ही ऐसे बुद्धिमान और अनूठे ऐयार का काम है कि इतना करने पर भी आज तुम भले-चगे ही नहीं दिखाई देते हो बल्कि नेकनामी के साथ महाराज के ऐयार कहलाने की इज्जत पा चुके हो। मैं फिर कहता हूं कि किसी बुरी नियत से इन बातों का जिक्र मैं नहीं करता बल्फि तुम्हारे दिल का खुटका दूर करने के साथ ही साथ जिनके नाम से तुम डरते हो उन्हें तुम्हारा दोस्त बनाया चाहता हू, अस्तु तुम्हे बेखौफ अपना हाल बयान कर देना भूत-ठीक है मगर क्या कमें मेरी जुबान नहीं खुलती मैने ऐसे-ऐसे बुरे काम किये है जिन्हें याद करके आज मेरे रोगटे खडे हो जाते हैं और आत्महत्या करने की जी में इच्छा होती है, मगर नहीं मै बदनामी के साथ दुनिया से उठ जाना पसन्द नहीं करता अतएव जहाँ तक हो सकेगा एक दफे नेकनामी अवश्य पैदा करुंगा। इन्द्र-नेक्नामी पैदा करने का ध्यान जहाँ तक बना रहे अच्छा ही है परन्तु मै समझता हू कि तुम नेकनाभी उसी दिन पदा कर चुके जिस दिन हमारे महाराज ने तुम्हें अपना ऐणर बनाया इसलिए कि तुमने इधर-उधर बहुत ही अच्छे काम किये है और वे सब एसे थे कि जिन्हें अच्छे से अच्छा ऐयार भी कदाचित नहीं कर सकता था। चाहे तुमने पहिले कैसी ही बुराई ओर कैसे ही खोटे काम क्यों न किये हों मगर आज हम लोग तुम्हारे देनदार हो रहे हैं तुम्हारे एहसान के बोझ से दब हुए हैं और समझत हैं कि तुम अपने दुष्कर्मों का प्रायश्चित कर चुके हो। . भूत-आप जो कुछ कहते है यह आपका बड़प्पन है परन्तु मैंने जो कुछ कुकर्म किये हैं में समझता हू कि उनका प्रायश्चित ही नहीं है तथापि अब तो मैं महाराज की शरण में आ ही चुका हू और महाराज ने भी मेरी कुराइयों पर ध्यान न देकर मुझे अपना दातानुदास स्वीकार कर लिया है इससे मेरी आत्मा सन्तुष्ट है और मैं अपने को दुनिया में मुंह दिखाने योग्य समझने लगा हूं। मैं यह भी समझता हू कि आप जो कुछ आज्ञा कर रहे हैं यह वास्तव में महाराज की आज्ञा है जिसे मैं चाहिये। देवकीनन्दन खत्री समग्र ९२८