पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९३८

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पता लगान के लिए जाया चाहता हू। मगर उसने इस आखिरी बात को कबूल न किया और कहा कि मेरी राय में पहिल रणधीरसिहजी से मिल लना चाहिये । कई बातों को सोच कर मेने उसकी राय कबूल कर ली और उस गठरी को लकर रणधीरसिहजी स मिलन के लिए रवाना हुआ। मुझे इस बात का भी धोखा लगा हुआ था कि रास्त में कहीं दुश्मनो से मुलाकात न हो जाय जो जरूर इस गठरी को छीन लन की धुन में लगे हुए होंगे इसलिये मैन अपने दो शागिर्दो को भी साथ में ले लिया। रणधीरसिहजी बफिक्र और आराम की नींद सो रहे थे जब मैन पहुचकर उन्हें उठाया। जागन के साथ ही व मुझ दखकर चौके और बाल क्यों क्या मामला है जो इस समय ऐसे ढग से यहा आये हो ? दयाराम कुशल से तो है? मरी सूरत देखत ही उन्होंन दयाराम का कुशल पूछा इसस मुझे बडा ही ताज्जुब हुआ। खैर मै उनके पास बैठ गया और जो कुछ मामला हुआ था साफ-साफ कह सुनाया। मै इस किस्ते का मुस्तसर ही म वयान करूँगा। रणधीरसिहजो इस हाल को सुनकर बहुत ही दुखी और उदास हुए। बहुत कुछ वाकचीत करने के बाद अन्त म बोर्ल ‘दयाराम मग एक हीएक वारिस और तुम्हाग दिली दारत है एसी अवस्था म उसक लिए क्या करना चाहिए सो तुम ही सोच लो मैं क्या यहू। मैं तो समझ चुका था कि दुश्मनों की तरफ से अब निश्चिन्त हुआ मगर नहीं । इतना कह कपडे सपनामुह टाप कर रोने लगे। मैं उन्हें बहुत कुछ समझा बुझाकर गिदा हुआ और अपने घर चला आया। अपनी स्त्री से मिल कर सब हाल कहन और समझाने बुझाने के बाद में अपन शागिर्दा को साथ लेकर घर साहर निकला। यस यहीं स मेरो बदकिस्मती का जमाना शुरु हुआ। इतना कहकर भूतनाथ अटक गया और सिर नीचा करक कुछ सोचने लगा। सब कोई बेचैनी के साथ उसकी तरफ दख रह थे और भूतनाथ की अवस्था से मालूम होता था कि वह इस बात को साच रहा है कि में अपना किस्सा आग बयान कतै या नहीं। उसी समय दो आदमी और कमरे के अन्दर चल आय और महाराज का सलाम करके खडे हो गय। इनकी सूरत देखत ही भूतनाथ के चेहरे का रंग उड गया और वह डरे हुए ढग स उन दानों की तरफ देखने लगा। दानों आदमी जो अभी-अर्भ कमरे में आये वे ही थे जिन्होंने भूतनाथ को अपना नाम दलीपशाह बतलाया था। इन्द्रदय की आज्ञा पाकर व दोनों भूतनाथ के पास ही बेठ गये। तीसरा बयान प्रेमी पाठक भूल न होगे कि दो अदमियों न भूतनाथ स अपना नाम दलीपशाह बतलाया जिनमे से एक को पहिला दलीप और दूसरे को दूसरा दलीप समझना चाहिए। भूतनाथ तो पहिल ही साच में पड़ गया था कि अपना हाल आगे बयान कर या नहीं अब दोनों दलीपशाह को देख कर वह और भी घबडा गया। ऐयार लाग समझ रहे थे अब उसमें बात करने की भी ताकत नहीं रही। उसी समय इन्ददव ने मूतनाथ स क्यों भूतनाथ चुप क्यों हो गये ? कहा हो तब आगे क्या हुआ ? इसका जवाब भूतनाथ ने कुछ न दिया और सिर झुकाकर जमीन की तरफ देखने लगा। उस समय पहिले दलीपशाह ने हाथ जोडकर महाराज की तरफ देखा और कहा कृपानाथ भूतनाथ को अपना हाल दयान करन में बडा कष्ट हा रहा है और वास्तवम यात भी एसी ही है। कोई भला आदमी अपनी उन बातों को जिन्हें वह ऐच समझता है अपनी जुवान स अच्छी तरह बयान नहीं कर सकता। अस्तु यदि आज्ञा होता मै इसका हाल पूरा-पूरा ध्यान कर जाऊँ क्योंकि में भी भूतनाथ का हाल उतना ही जानता हू जितना स्वय भूतनाथ। भूतनाथ जहाँ तक बयान कर चुक है उसे में * बाहर खडा सुन भी चुका हू! जब मैंने समझा कि अब भूतनाथ से अपना हाल नहीं कहा जाता तब मै यह अर्ज करने के लिए हाजिर हुआ हू। ( भूतनाय की तरफ देख के) मेरे इस कहने से आप यह न समझियेगा कि मैं आपके साथ दुश्मनी कर रहा हू। नहीं जो काम आपक सुपुर्द किया गया है उस आपके बदल में मैं आसानी के साथ कर दिया चाहता हूं। इन दोना आदमियाँ (दलीपशाह) का महाराज तथा और सभों ने भी ताज्जुष के साथ देखा था मगर यह समझ कर इन्द्रदय स किसी ने कुछ भी न पूछा कि जा कुछ है थोड़ी देर में मालूम हो ही जायगा मगर जब दलीपशाह ऊपर लिखी बात बालकर घुप हा गया तब महाराज न भद भरी निगाहों से इन्द्रजीतसिह की तरफ दखा आर कुग्गर ने झुक कर धीर से कुछ कह दिया जिमे वीरन्दसिह तथा तेजसिह ने भी सुना तथा इनके जरिए से हमार और गधियों को भी मालूम हो गया कि कुमार ने क्या कहा। दलीपशाह की बात सुनकर इन्द्रदेव न महाराज की तरफ देखा और हाथ जोडकर कहा इन्हों।। दलीयशाह ने) देवकीनन्दन खत्री समग्र