पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९३९

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e -- जापुछ कहा दनदन्टक है. मरी समझ में जार भूतनाथ का कित्ता इन्हीं की जुबानी सुन लिया जाय तो कोई हर्ज नहें है ! इस जदर में महाराज न मजूरी के लिए सिर हिला दिया। इन्द-नूतनय की तरफ दज को क्यों भूतन्नथ इत्तने तुम्हें किसी तरह का ज्ज है ? भूत-महाराज को तरफ दखकर और हाथ जोड़कर जो महाराज की मर्जी मुझमें नहीं करने की सामर्थ्य नहीं है। मुझे क्या सदर थी कि कतर माफ हा चान पर भी यह दिन देखना नसीव होगा। यद्यपि यह मैं खूब जानता हूँ कि मेरा नद स्वस्सिी र चिया नहीं रहा परन्तु फिर भी अपनी मूल बार-बारकहन या सुनने में लज्जा बढती ही जाती है कम नहीं हाती। खैर काई चिन्ता नहीं जैस हा देस अपन कलेज का नजबूत करूँगा और दलीपशाह को कही हुई बातें सुनूगा त्था दर्ज कि य महाशाय कुछ झूट ला नी प्रयाग करत हैं या नहीं। दलीप-नहीं-नहीं भूलनाथ मै झूट कदापि न वालुगा इसस तुम देफिक्र रहो।(इन्द्रदव की तरफ देख के) अच्छा ला अपने प्रारम्न करता है। दलीपशाह ने इस तरह कहना शुरू किया- "महाराज इसकाइ सन्दह नहीं कियारी क फन में भूतनाथ परल सिरे का ओस्ताद और तेज आदमी है। अगर यह ण्यार्य के दरिया में गात लाकर अपन का दरयाद न कर दिया होता ता इसके मुकाबिले का ऐयार आज दुनिया में दिवाट न दता. मी सूरत दबक्यो ओर उरत है और इनका डरना वाजिय ही है मगर अब मै इनके साथ किसी तरह का बुरा बताद नहीं कर सकता क्योंकि में ऐसा करन क लिए दोनों कुम्गरों स प्रतिज्ञा कर चुका हू, और इनकी आज्ञा में फेत्ता तरह टाल नहीं सकता क्योंकि इन्हीं की बदौलत आज मैं दुनिया की हवा खा रहा हू। (भूतनाथ की तरफ दख के भूतनाथ में वास्तव न दली शाह हू उम दिन तुमने मुझ नहीं पहचाना ता इसमें तुम्हारी आखों का कोई कसूर नहीं है कैद को रख्यिा के साथ-साथजमान जी चाल न मरी सूरत ही बदल दी है तुम तो अपने हिसार से मुझे नार ही चुके थे और तुन्ह मुझर मिलन को पनी उम्मीद भी न थी मगर सुन लो और देख ला कि ईश्वर की कृपा से में अभी तक जीता जागता तुम्हार सामन खडा हूँ। यह कुअर साहब के चरणों का प्रताप है। अगर मै कैद न हो जाता तो तुमसे बदला लिए पिना की न रहता नगर तुम्हारी किस्मत अच्छी थी जा मैं कैद ही रह गया और छूटा भी तो कुअर साहब के हाथ से जो तुम्हार पक्षपाती है। तुम्ह इन्दद से बुरा न मानना चाहिए और यह न साचना चाहिए कि तुम्हें दुख देने के लिए इन्द्रदेव तुम्हारा पुराना पचडाखुलवा रहे है तुम्हारा किस्सा ता सब को मालूम हो चुका है इस समय ज्यों का त्यों चुपचाप रह जाने पर तुम्हार चित्त का शान्ति नहीं मिल सकती और तुम हम लोगों की सूरत देखकर दिन-रात तरदुदमें पडे रहोगे अस्तु तुम्हार पिछल एका को खालकर इन्द्रदव तुम्हार चित्त को शान्ति दिया चाहत है और तुम्हारे दुश्मनों को जिनके साथ तुम ही न बुराई की हे तुम्हारा दास्तवना रह है। य यह भी चाहत है कि तुम्हारे साथ ही साथ हम लोगों का भेद भी खुल जाय और तुम जान जाआ कि हम लोगो न तुम्हारा कसूर माफ कर दिया है क्योंकि अगर ऐसा न होगा तो जसर तुम हम लोगों का मार डालन की फिक्र में पड रहोग और हम लोग इस धोने में रह जायेंगे कि हमने इनका कसूर तो माफ ही कर दिया अवय हमार साथ बुराई न करेंग। (जीतसिह की तरफ देखकर ) अब मे मतलब की तरफ झुकता हू और भूतनाथ का कित्सा बयान करता हूँ। जिस जमाने का हाल भूतनाथ बयान कर रहा है अर्थात जिन दिनों भूतनाथके मकान से दयाराम गायब हो गए थे उन दिनों यही नागर काशी के बाजार में वेश्या बन कर बैठी हुइ अमीरों के लड़कों को चौपट कर रही थी। उसकी बढी चढी खूबसूरती लागों के लिए जहर हो रही थी और माल के साथ ही विशेष प्राप्ति के लिए यह लोगों की जान पर भी वार करती थी। यही दशा मनोरमा की भी थी परन्तु उसकी बनिस्बत यह बहुत ज्यादा रुपए वाली होने पर भी नागर की सी खूबसूरत न थी हा चालाक जरूर ज्यादे थी। और लोगों की तरह भूतनाथ ओर दयाराम भी नागर के प्रेमी हो रहे थे। भूतनाथ का अपनी ऐयारी का घमण्ड था और नागर को अपनी चालाकी का। भूतनाथ नागर के दिल पर कब्जा किया चाहता था और नागर इसकी तथा दयाराम की दौलत अपने खजाने में मिलाना चाहती थी। दयाराम की खाज म घर से शागिर्दो को साथ लिए हुए बाहर निकलते ही भूतनाथ ने काशी का रास्ता लिया और तेजी क साथ सफर तय करता हुआ नागर के मकान पर पहुचा। नागर ने भूतनाथ की बड़ी खातिरदारी और इज्जत की तथा कुशल मंगल पूछने के बाद यकायक यहा आने का सबब भी पूछा। भूतनाथ ने अपने आन का ठीक-ठीकसबब तो नहीं बताया मगर नागर समझ गई कि कुछ दाल में काला जरूर। इसी तरह भूतनाथ का भी पैदा हो गया कि दयाराम की चोरी में नागर का कुछ लगाव जरूर यह उन आदमियों ने दयाराम के साथ ऐसी दुश्मनी की है। मान तिभाग २२