पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९४

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पीछे चले गये और वहाँ उसकी अनूठी मौत देखने में आई। रनबीर-मैने यह प्रण कर लिया था कि यहाँ जितने कैदी है सभों को छुडाऊगा मगर अब एक तरदुद सा मालूम होता है। बुढिया-अगर सर्दार का मरना दो दिन तक छिपा रहे तो सब कुछ हो सकता है मगर जिस समय (रनवीर के पिता की तरफ इशारा कर के) इनको मामूली समय पर खाना देने के लिये वह आदमी जो नित्य जाया करता है जायगा तो सब बातें खुल जायेंगी और सर्दार के नौकर तथा साथी सब आफत मचा डालेंगे। नौजवान-यह हो सकता है कि दो दिन तक खाना पहुंचाने का जिम्मा मैं ले लूं और किसी को कैदखाने में जाने न दूं। बुढिया-तो बेहतर है कि यही किया जाय और लोगों को इस बात की खबर कर दी जाय कि गुरुजीमहाराज ने सर्दार को किसी गुप्त कार्य के लिये कहीं भेजा है और इधर इन्हें (रनवीर के पिता को) दो दिन तक कहीं छिपा रक्खा जाय ऐसी अवस्था में दो दिन में कोई खराबी नहीं हो सकती। रनबीर-बात तो बहुत अच्छी है मगर दो दिन तक रुक रहना बडा कठिन जान पड़ता है, यहाँ से इसी समय चल देना ही ठीक होगा। नौजवान-मगर क्यों कर जा सकेंगे? यह तो आप जानते ही हैं कि रास्ता बहुत खराव और पथरीला है और पीछा करने वाले हम लोगों को बहुत जल्द पकड लेंगे। रनवीर-हाँ यह तो मैं जानता हू मगर मैंने इसके लिये भी एक तर्कीव सोची है। नौजवान-वह क्या? रनबीर-पहिले यह तो बताओ कि रात कितनी बाकी होगी? नौजवान-रात अभी पहर भर से भी ज्यादे बाकी है। रनबीर-तब तो जो कुछ मैंने सोचा है वह बखूबी हो जायगा अच्छा यह कहो कि तुम अपने सर्दार की कोठरी में जाकर उसके पहिरने के कपडे जिसे वह सफर में जाती समय पहिरता हो ला सकते हा? नौजवान-हॉ मैं ला सकता हू मगर फिर (कुछ रुक कर) अच्छा अच्छा मैं समझ गया वह कपडा आप इनको (रनबीर के पिता को) पहिरावेंगे और यहाँ से निकाल ले चलेंगे। ठीक तो है ऐसा करने से हम लोग सभों के देखते ही देखते यहाँ से निकल चलेंगे और कोई आदमी पीछा भी न करेगा हॉ उस समय हम लोगों का हाल यहाँ वालों को जरूर मालूम हो जायगा जब कैदी को भोजन देने के लिये कोई आदमी तहखाने में जायगा। रनबीर-तब तक तो हम लोग बडी दूर निकल जायेंगे। और हॉ, एक काम चलते चलाते तुम और करना । नौजवान-वह क्या? रनबीर-चलते समय यहाँ के किसी ऐसे आदमी को जो तुम्हारे बाद बाकी नालायकों पर हुकूमत कर सकता हो कह देना कि तुमको और तुम्हारी मॉ को भी सर्दार साहब और गुरुमहाराज किसी काम के वास्ते कहीं लिये जा रहे है और हुक्म देना कि कल तक कोई आदमी फलाने कैदी को दाना पानी न दे। नौजवान-यात तो ठीक है, और ऐसा करने से हम लोग बेफिक्री के साथ चले जायेंगे। (कुछ जोश में आकर) उह अगर कोई कम्बख्त हम लोगों का पीछा करेगा ही तो क्या होगा? केवल यहाँ से पॉच कोस अर्थात सरहद के बाहर हो जाना चाहिये फिर बीस पचीस आदमी भी हमारा कुछ नहीं कर सकते आप की बहादुरी को मै अच्छी तरह जान गया हू और मै भी आपकी ताबेदारी करने लायक है। रनबीर-खैर तो तुम अब जाओ और जो कुछ मैंने कहा है उसे जल्दी करो जिसमें आधे घण्टे से ज्यादे देर न होने पावे और हम लोग अन्धेरा रहते यहाँ से निकल चलें । नौजवान-बहुत अच्छा, मै अभी जाता हू, आप लोग इसी जगह खडे रहिये। तीसवां बयान बेचारी कुसुमकुमारी ने रनवीरसिह का पता लगाने के लिए बहुत ही उद्योग किया परन्तु सब व्यर्थ हुआ । दो दिन बीते चार दिन बीते, सप्ताह दो सप्ताह के बाद महीने दिन की गिनती भी कुसुम ने अपनी नाजुक उगलियों पर पूरी की मगर रनवीरसिह का कुछ हाल मालूम न हुआ । बेचारी कुसुम मुझ गई, उसे कोई चीज कोई बात अच्छी नहीं लगती थी, पर तिस पर भी आशा ने उसका साथ नहीं छोडा था। वह रनबीर से मिल कर प्रफुल्लित होने की आशा में जान बचाने के - देवकीनन्दन खत्री समग्र ११०२