पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९४१

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इन्द-काई जरूरत नहीं अब तुम जाकर कुछ आराम करो तीन घण्टे बाद फिर तुम्हें सेफर करना होगा। इसके बाद इन्ददेव का शागिर्द जब अपने डेरे पर चला गया तब मुझसे और इन्द्रदेव से बातचीत हाने लगी। इन्द्रदव ने मुझसे मदद मागी और मुझ मिर्जापुर जाने के लिए कहा मगर मैंने इनकार किया और कहा कि अब मै न तो भूतनाथ का मुह देखूगा और न उसके किसी काम में शरीक होऊँगा। इसके जवाब में इन्द्रदेव ने मुझे पुन समझाया और कहा कि यह काम भूतनाथ का नहीं है मैं कह चुका है कि इसका अहसान मुझ पर और रणधीरसिहजी पर होगा। इसी तरह की बहुत सी बात हुई लाचार मुझे इन्ददेव की बात माननी पड़ी और कई घण्टे के बाद इन्द्रदेव क उसी शागिर्द शम्भू को साथ लिए हुए मैं मिर्जापुर की तरफ रवाना हुआ। दूसरे दिन हम लोग मिजापुर जा पहुचे और बताये हुए ठिकान पर पहुच कर शम्मू के भाई से मुलाकात की। दरियाप्त करने पर मालूम हुआ कि दयाराम अभी तक मिर्जापुर की सरहद क बाहर नहीं गय है अस्तु जो कुछ हम लोगों को करना था आपुस में ते करन के बाद सूरत बदल कर बाहर निकले। दयाराम का ढूढ निकालन के लिए हमने कैसी कैसी महनत की और हम लोगों को किस-किस तरह की तकलीफें उठानी पड़ी इमका बयान करना किस्से को व्यर्थ तूल देना और अपने मुह मिया मिटठू बनना है। महाराज के (आपके) नामी ऐयारों न जैसे जैसे अनूठे काम किये हैं उनक सामने हमारी ऐयारी कुछ भी नहीं है अतएव केवल इतना ही कहना काफी है कि हम लोगों न उनी हिम्मत से घटकर काम किया और हद्द दर्जे की तकलीफ उठा कर दयारामजी को ढूढ निकाला। कवल दयाराम का नहीं बल्कि उनक साथ ही साथ 'राजसिह को भी गिरफ्तार करके हम लोग अपने ठिकाने पर ल आय मगर अफसास हम लागों की सब मेहनत पर भूतनाथ ने पानी ही नहीं फेर दिया बल्कि जन्म भर के लिए अपन माथे पर कलक का टीका भी लगाया। कैद की सख्ती उठाने के कारण दयारामजी बहुत ही कमजोर और बीमार हो रहे थे, उनमें बात करने की भी ताकत नथी इसलिये हम लागों ने उसी समय उन्हें उठाकर इन्द्रदेव के पास ले जाना मुनासिव न समझा और दो तीन दिन तक आराम दन की नीयत से अपने गुप्त स्थान पर जहा हम लोग टिके हुए थे ले गये। जहा तक हो सका नरम विछावन का इन्तजाम करके उस पर उन्हें लिटा दिया और उनके शरीर में ताकत लाने का बन्दोबस्त करने लगे। इस बात का भी निश्चय कर लिया कि जब तक इनकी तबीयत ठीक न हो जायगी इनसे कैद किये जाने का सबब तक न पूछेगे। दयाराम जी के आराम का इन्तजाम करने के बाद हम लोगों ने अपने अपने हर्वे खोलकर उनकी चारपाई के नीचे रख दिये कपडे उतारे और यातचीत करने तथा दुश्मनी का सबब जानने के लिए राजसिह को होश में लाये और उसकी. मुश्के खोल कर बातचीत करने लगे क्योंकि उस समय इस बात का डर हम लोगों को कुछ भी न था कि वह हम पर हमला करेगा या हम लोगों का कुछ विगाड सकेगा। जिस मकान में हम लोग टिके हुए थे वह बहुत ही एकान्त और उजाड़ महल्ले में था। रात का समय था और मकान की तीसरी मंजिल पर हम लोग बैठे हुए थे, एक मद्धिम चिराग आले पर जल रहा था। दयारामजी का पलग हम लोगों के पीछे की तरफ था और राजसिह सामने बैठा हुआ ताज्जुब के साथ हम लोगों का मुह देख रहा था। उसी समय यकायक कई दफ धम्नाके की अवाज आई और उसके कुछ ही देर बाद भूतनाथ तथा उसके दो साथियों को हम लोगों ने अपने सामने खडा देखा। सामना होने के साथ ही भूतनाथ ने मुझसे कहा "क्यों वे शैतान के यच्य, आखिर मेरी बात ठीक निकलीन !तू हीन राजसिह के साथ मेल करके हमारे साथ दुश्मनी पैदा की ! खैर ले अपने किए का फल चख !! इतना कहकर भूतनाथ ने मेरे ऊपर खञ्जर का वार किया जिसे बड़ी खूबी के साथ मेरे साथी ने रोका। मैं भी उठ कर खड़ा हो गया और भूतनाथ के साथ लड़ाई होने लगी। भूतनाथ ने एक हाथ में राजसिह का काम तमाम कर दिया और थोड़ी ही देर में मुझे भी खूब जख्मी किया यहा तक कि मै जमीन पर गिर पडा और मेरे दो! साथी भी बेकार हो गये। उस समय दयारामजी को जो पडे भड़े सब तमाशा देख रहे थे जोश चढ आया और चारपाई पर से उठकर खाली हाथ भूतनाथ के सामने आ खडे हुए. कुछ बोला ही चाहते थे कि भूतनाथ के हाथ का खजर उनके कलेजे के पार हो गया और वे बेदम होकर जमीन पर गिर पड़े। चौथा बयान मै नहीं कह सकता कि भूतनाथ ने ऐसा क्यों किया। भूतनाथ का कौल तो यही है कि मैने उनको पहिचाना नहीं, और धोखा हुआ।खैर जोहो. दयाराम के गिरते ही मेरे मुह से हाय की आवाज निकली और मैंने भूतनाथ से कहा, 'ऐ कम्बख्त ! तैने बेचारे दयाराम को क्यों मार डाला जिन्हें बड़ी मुश्किल से हम लोगों ने खोज निकाला था !!" चनकान्ता सन्तति भाग २२