पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९४३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

- का इस बात का पता ही नहीं लगेगा कि दयाराम भूतनाथ के हाथ से मारा गया। में यह क्योंकर छिप सकता है ? भूत-अगर तुम छिपाआ तो सब कुछ छिप जायगा । मुख्तसर यह कि बातों का धीरे-धीरे बढाता हुआ भूतनाथ मेर पैरों पर गिर पड़ा और बड़ी खुशामद के साथ कहन लगा कि तुम इस मामले को छिपाकर मेरी जान बचा ला। केवल इतना ही नहीं इसन मुझ हर तरह के सब्जबाग दिखाए ओर कसमें द देकर मेरी नाक में दम कर दिया। लालच में तो मै नहीं पडा मगर पिछली मुरौवत के फेर में जरूर पड गया और भद को छिपाय रखन की कसम खाकर अपन साथियों को साथ लिए हुए में उस घर के बाहर निकल गया । भूतनाथ तथा दामों लाशों का उसी तरह छाड दिया फिर मुझ मालूम नहीं कि भूतनाथ ने उन लाशों क साथ क्या बर्ताव किया। यहा तक भूतनाथ का हाल कह कर कुछ दर क लिए दलीपशाह चुप हो गया और उसने इस नीयत से भूतनाथ की तरफ दखा कि देखें यह कुछ बोलता है या नहीं। इस समय भूतनाथ की आखों से आसू की नदी बह रही थी और वह हिचकिया ल लकर रा रहा था। बडी मुश्किल से भूतनाथ ने अपने दिल को सम्हाला और दुपट्टे से मुह पोछ कर कहा ठीक है-ठीक है जो कुछ दलीपशाह ने कहा सब सच है मगर यह बात में कसम खाकर कह सकता हूं कि मैने जान बूझ कर दयाराम का नहीं मारा। वहा राजसिह का खुल हुए देखकर भरा शक यकीन के साथ बदल गया और चारपाई पर पडे हुए देखकर भी मने दयाराम को नहीं पहिचाना मैने समझा कि यह भी कोई दलीपशाह का साथी होगा। बेशक दलीपशाह पर मेरा शक मजबूत हो गया था और में समझ बैठा था कि जिन लोगों न दयाराम के साथ दुश्मनी की हे दलीपशाह जरूर उनका साथी है। यह शक यहा तक मजबूत हो गया था कि दयाराम के मारे जाने पर भी दलीपशाह की तरफ स मरा दिल साफ न हुआ बल्कि मैंन समझा कि इसी (दलीपशाह ) ने दयाराम का वहा लाकर कैद पिया था। जिस नागर पर मुझ शक हुआ था उसी कम्बख्त की जाादू भरी बातों में फस गया और उसी न मुझे विश्वास दिला दिया कि इसका कर्ता-धर्ता दलीपशाह है। यही सबब है कि इतना हा जान पर भी मैं दलीपशाह का दुश्मन बना ही रहा। हा दलीपशाह न एक बात नही मही वह यह है कि इस भेद को छिपाय रखने की कसम खाकर भी दलीपशाह ने मुझे सूखा नहीं छाडा। उन्होंन कहा कि तुम कागज पर लिख कर माफी मागो तब में तुम्हें माफ करके यह भेद छिपाय रखने की कसम खा सकता है। लाचार होकर मुझ एसा करना पड़ा और माफी के लिए चीठी लिख हमेशा के लिए इनकं हाथ " फस गया। दलीप-बेशक यही बात है और मै अगर एसा न करता तो थोडे ही दिन बाद भूतनाथ मुझे दोषी ठहराकर आप सच्चा बन जाता । खैर अब में इसके आगे का हाल बयान करता हूँ जिसमें थोडा सा हाल तो ऐसा होगा जो मुझे खास भूतनाथ से मालूम हुआ था। इतना कहकर दलीपशाह ने फिर अपना ययान शुरू किया दलीप-जैसा कि भूतनाथ कह चुका हे बहुत मिन्नत और खुशामद से लाचार हाकर मेन कसूरवार हान ओर माफी मागन की धीठी लिखाकर इसे छाड दिया और इसका ऐब छिपा रखन का वादा करके अपने साथियों को साथ लिए हुए उस घर से बाहर निकल गया और भूतनाथ की इच्छानुसार दयाराम की लाश को और भूतनाथ को उसी मकान में छोड दिया। फिर मुझे नहीं मालूम कि क्या हुआ और इसन दयाराम की लाश के साथ कैसा बर्ताव किया । वहा से बाहर हाकर मैं इन्द्रदेव की तरफ रवाना हुआ मार रास्ते भर साचता जाता था कि अब मुझे क्या करना चाहिए दयाराम का सच्चा-सच्चा हाल इन्द्रदेव से बयान करना चाहिए या नहीं। अाखिर हम लोगों ने निश्चय कर लिया कि जय भूतनाथ से वादा कर ही चुके है तो इस भेद को इन्द्रदेव सभी छिपा ही रखना चाहिए। जब हम लोग इददव के मकान में पहुचे ता उन्होंन कुशल मगल पूछने के बाद दयाराम का हाल दरियाफ्त किया जिसके जवाब में मैंने असलमामलेका ताछिया रक्खा और बात बनाकर यों कह दिया कि जो कुछ मैन या आपने सुना था वह ठीक ही निकला अर्थात् राजसिह ही न दयाराम के साथ वह स्लूक किया और दयाराम राजसिह के घर में मौजूद भी थं मगर अफसास बेचारे दयाराम को हम लोग छुडा न सके ओर वे जान से मारे गये । इन्द-( चौक्कर ) हैं। जान से मार गय 18 मे-जी हा और इस बात की खबर भूतनाथ का भी लग चुकी थी। मरे पहिले ही भूतनाथ राजसिह के उस मकान में जिसमें दयाराम को कैद कर रखा था पहुच गया और उसने अपने सामने दयाराम की लाश दखी जिसे कुछ ही दर पहिल राजसिह ने मार डाला था अस्तु मूतनाथ ने उसी समय राजसिह का सिर काट डाला सिवाय इसक वह और कर ही क्या सकता था ! इसके थोड़ी दर बाद हम लाग भी उस घर में जा पहुचे ओर दयाराम तथा राजसिह की लाश और चन्द्रकान्ता सन्तति भाग २२