पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९४४

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R भूतनाथ का वहा मौजूद पाया। दरियाफ्त करन पर भूतनाथ न सब हाल बयान किया और अफसोस करत हुए हम लोग वहां से रवाना हुए। इन्द-अफसोस । बहुत बुरा हुआ । खैर ईश्वर की मर्जी । मेन भूतनाथ के एव का छिपा कर जा कुछ इन्द्रदव से कहा भूतनाथ की इच्छानुसार ही कहा था। भूतनाथ ने भी यही बात मशहूर की और इस तरह अपने एव को छिपा रक्खा। यहा तक भूतनाथ का किस्सा कह कर जब दलीपशाह कुछ देर के लिए चुप हा गया तब तजसिह ने उससे पूछा तुमन ता भला भूतनाथ की बात मान कर उस मामल को छिपा रक्खा मगर शम्भू वगैरह इन्द्रदव क शागिर्दो ने अपने मालिक से उस भद का क्यों छिपाया? दलीप-(एक लम्बी सास लकर) खुशामद और रुपया बडी चीज है बस इसी में समझ जाइये और मै क्या कहू तेज-ठीक है अच्छा तर क्या हुआ? भूतनाथ की कथा इतनी ही है या और भी कुछ ? दलीप-जी अभी भूतनाथ की कथा समाप्त नहीं हुई अभी मुझे बहुत कुछ कहना याकी है और बातों क सिवाय भूतनाथ स एक कसूर एसा हुआ है जिसका रज भूतनाथ को इसस भी ज्यादा होगा। तेज-सो क्या? दलीप-सो भी में अर्ज करता है। इतना कह कर दलीपशाह ने फिर कहना शुरू किया इस मामले को बीत गये। मै भूतनाथ की तरफ से कुछ दिनों तक चफिक्र रहा मगर जब यह मालूम हुआ कि भूतनाथ मरी तरफ से निश्चिन्त नहीं है बल्कि मुझे इस दुनिया से उठा वफिक्र हुआ चाहता है तो में होशियार हो गया और दिन रात अपने बचाव की फिक्र में डूबा रहने लगा। (भूतनाथ की तरफ देख कर ) भूतनाथ अब मैं वह हाल बयान करुणा जिसकी तरफ उस दिन भैन इशारा किया था जब तुम गिरफ्तार करके एक विचित्र पहाडी स्थान *भे ले गये और जिसके विषय में तुमन कहा था कि- यद्यपि मैन दलीपशाह की सूरत नहीं दखा है इत्यादि। मगर क्या तुम इस समय भी भूत-(वात काट कर ) भला में कैसे कह सकता हूं कि मैन दलीपशाह की सूरत नहीं दखी है जिसक साथ ऐस एसे मामले हा चुके हैं मगर उस दिन मैंने तुम्हें धाखा देन के लिए वे शब्द कह थे क्योंकि मैंने तुम्हें पहिचाना नहीं था। इस कहने सेमरा यही मतलव था कि अगर तुम दलीपशाह न होगे तो कुछ न कुछ जरूर बात बनाओग। खैर जा कुछ हुआ सो हुआ मगर क्या तुम वास्तव में अब उस किस्से को वयान करन वाले हा? दलीप हा में उस जरूर वयान करेगा भूत-मगर उसके सुनन स किसी का कुछ फायदा नहीं पहुंच सकता है और न किसी तरह की नसीहत ही हा सकती है। वह ता महज मरी नादानी और पागलपन की बात थी। जहा तक मैं समझता हू उसे छाड देन स कोई हर्ज नहीं होगा। दलीप-नही, उसका वयान जरुरी जान पडता है क्या तुम नहीं जानत या भूल गये कि उसी किस्से को सुनने के लिए कमला की मा अर्थात तुम्हारी स्त्री यहा आई हुई है ? भूत-ठीक है मगर हाय 1 में सच्चा बदनसीब हू जो इतना होने पर भी उन्हीं बातों को इन्द्र-अच्छा-अच्छा जान दा भूतनाथ । अगर तुम्हे इस बात का शक है कि दलीपशाह याते चनाकर कहगा या उसके कहने का ढग लोगा पर बुरा असर डालेगा तो मै दलीपशाह को वह हाल कहन से राक दूगा और तुम्हार ही हाथ की लिखी हुई तुम्हारी अपनी जीवनी पढन के लिए किसी को दूगा जो इस सन्दूकडी में बन्द है। इतना कह कर इन्ददव ने वही सन्दूकडी निकाली जिसकी सूरत दखने ही से भूतनाथ का फलजा कापता था। उस सन्दूकडी का देखते ही एक दफे तो भूतनाथ घबडाना सा हाकर कापा मगर तुरन्त ही उसने अपने को सम्हाल लिया ओर इन्द्रदेव की तरफ देख के बाला, हा हा, आप कृपा कर इस सन्दूकडी का मेरी तरफ बढाइये क्योंकि यह मेरी चीज है और में इसे लेने का हक रखता हू। यद्यपि कई ऐसे कारण हो गये है जिनस आप कहेंगे कि यह सन्दूकडी तुम्हें नहीं दी जायगी मगर फिर भी मैं इसी समय इस पर कब्जा कर सकता है क्योंकि देवीसिहजी मुझसे प्रतिज्ञा कर चुके है कि यह सन्दूकडी वन्द की यन्द तुम्हें दिला दूगा अस्तु दवीसिहजी की प्रतिज्ञा झूठ नहीं हो सकती। इतना कह कर भूतनाथ ने देवीसिह की तरफ दखा। देवी-( महाराज से ) नि सन्दड में ऐसी प्रतिज्ञा कर चुका हू । महा-अगर एसा है ता तुम्हारी प्रतिज्ञा झूठी नहीं हो सकती है आज्ञा देता हू कि तुम अपनी प्रतिज्ञा पूरी करो। -

  • देखिये चन्द्रकान्ता सन्तति बीसवा भाग बारहवा बयान ।

देवकीनन्दन खत्री समग्र