पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९४५

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दि इतना सुनत ही देवीसिह उठ खड हुए। उन्होंने इन्द्रदेव के सामने से वह सन्दूकडी उठा ली और यह कहत हुए भूतनाथ के हाथ में दे दी 'लो में अपनी प्रतिज्ञा पूरी करता हू, तुम महाराज का सलाम करा जिन्होंने मेरी ओर तुम्हारी इज्जत रख ली। भूत-( महाराज को सलाम करक ) महाराज की कृपा स अब मैं जी उठा । तेज-भूतनाथ तुम यह निश्चय जानो कि यह सन्दूकडी अभी तक खाली नहीं गई है अगर सहज में खुलन लायह होती तो शायद खुल गई हाती। भूत-(सन्दूकडी अच्छी तरह देख भाल कर ) बेशक यह अभी तक खुली नहीं है । मरे सिवाय कोई दूसरा आदमी इस विना ताड खोल भी नहीं सकता। यह सन्न्दूकडी मेरी बुराइयों से भरी हुई है, या यों कहिये कि यह मेर भेदों का खजाना हे यद्यपि इसमें के कई भेद खुल चुके हैं खुल रहे हैं और खुलते जायेंग तथापि इस समय इसे ज्यों का त्यों चन्द पाकर मै वरावर महाराज को दुआ दता हुआ यही कहूँगा कि में जी उठा. जी उठा जी उठा । अव में खुशी से अपनी जीवनी कहन और सुनन के लिए तेयार हू और साथ ही इसके यह भी कहे देता हूं कि अपनी जीवनी के सम्बन्ध में जो कुछ कहूगा सच कहूगा इतना कह कर भूतनाथ ने वह सन्दूकडी अपन बटुए मे रख ली और पुन हाथ जोड कर महाराज से बोला महाराज में वादा कर चुका है कि अपना हाल सच सच बयान करूंगा परन्तु मेरा हाल बहुत बड़ा और शाफ दु ख तथा भयकर घटनाओं स भरा हुआ है। मर प्यार मित्र इन्द्रदवजी जिन्होंन मेरे अपराधों को क्षमा कर दिया है कहते हैं कि तेरी जीवनी से लोगों का उपकार हागा और वास्तव में यात भी ठीक ही है अतएव कई कठिनाइयों पर ध्यान देकर मैं विनयपूर्वक महाराज से एक महीन की माहलत मांगता हू। इस बीच में अपना पूरा-पूरा हाल लिख कर पुस्तक के रूप में महाराज के सामने पश करेगा और सम्भव है कि महाराज उसे सुन-सुना कर यादगार की तौर पर अपने खजाने में रखने की आज्ञा दग। इस एक महीन क बीच में मुझ भी सब बातें याद करके लिख देने का मौका मिलगा और में अपनी निर्दोष स्त्री तथा उन लोगों स जिन्हें दखन की भी आशा नहीं थी परन्तु जो बहुत कुछ दु ख भोग कर भी दोनों कुमारों की वदौलत इस समय यहा आ गय है और जिन्हे मैं अपना दुश्मन समझता था मगर अब महाराज की कृपा से जिन्होने मेरे कसूरी का माफ कर दिया है मिल जुल कर कई बातों का पता भी लगा लूगा जिससे मेरा किस्सा सिलसिलवार और ठीक कायदे से हो जायगा। इतना कह कर भूतनाथ ने इन्द्रदेव राजा गोपालसिह दोनों कुमारों ओर दलीपशाह वगैरह की तरफ देखा और तुरन्त ही मालूम कर लिया कि उसकी अर्जी कबूल कर ली जायगी। महाराज न कहा कोई चिन्ता नहीं तब तक हम लोग कई जरूरी कामों से छुट्टी पा लेंगे। राजा गोपालसिह और इन्द्रदेव ने भी इस बात को पसन्द किया और इसके बाद इन्ददव ने दलीपशाह की तरफ देख कर पूछा क्यों दलीपशाह इसमें तुम लागो को तो काई उज नहीं है ? दलीप-(हाथ जोड कर) कुछ भी नहीं, क्योंकि अब महाराज की आज्ञानुसार हम लोगों की भूतनाथ से किसी तरह की दुश्मनी भी नहीं रही और न यही उम्मीद है कि भूतनाथ हमारे साथ किसी तरह की खुटाई करेगा परन्तु मै इतना जरूर कहूगा कि हम लोगों का किस्सा भी महाराज के सुनने लायक है और हम लोग भूतनाथ के बाद अपना किस्सा भी सुनाना चाहते हैं। महा-नि सन्देह तुम लोगों का किस्सा भीसुननेयोग्य होगा ओर हम लोग उसके सुननेकी अभिलाषा रखते है। यदि सम्भव हुआ तो पहिले तुम्ही लोगों का किस्सा सुनन में आवेगा। मगर सुनो दलीपशाह, यद्यपि भूतनाथ से बडी बडी युराइया हो चुकी हैं और भूतनाथ तुम लोगों का कसूरवार है परन्तु इधर हम लोगों के साथ भूतनाथ ने जो कुछ किया है उसके लिय हम लोग इसके अहसानमन्द हैं और इसे अपना हितू समझते हैं। इन्द्र-वेशक-वेशक गोपाल-जब हम लोग इसक अहसान के बोझ से दबे दलीप-मैं भी ऐसा ही समझता है क्योंकि भूतनाथ ने इधर जो जो अनूट काम किए है उनका हाल कुँअर साहब की जुवानी हम लोग सुन चुके हैं। इसी ख्याल से तथा कुँअर साहव की आज्ञा से हम लोगों न सच्चे दिल से भूतनाथ का अपराध क्षमा ही नहीं कर दिया बल्कि कुँअर साहब के सामने इस बात की प्रतिज्ञा भी कर चुके हैं कि भूतनाथ की दुश्मनी की निगाह से कभी न दखंग। महा-शक ऐसा ही होना चाहिए अस्तु बहुत सी बातों को सोच कर और इसकी कारगुजारी पर ध्यान देकर हमने इसका कसूर माफ करके इसे अपना एयार बना लिया है आज्ञा हे कि तुम लोग भी इसे अपनायत की निगाह से देखोगे चन्द्रकान्ता सन्तति भाग २२