पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९५

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$ 20 लिए दूसर तीसरे कुछ थोडा सा अन्न खा लेती और तमाम रात ऑखों में बिता कर ईश्वर से रनवीर का कुशल पूर्वक रखन की प्रार्थना किया करती थी। वीरसन को भी रनबीर से बडी मुहब्बत हो गई थी अतएव उसने भी रनवीर का पता लगान के लिये कोई बात उठा नहीं रक्खी और उतना ही उद्योग किया जितना एक परले सिर का उद्योगी मनुष्य कर सकता है परन्तु परिणाम कुछ भी न हुआ। आज जिस दिन का हम जिक्र कर रहे हैं वह शुक्ल पक्ष की द्वितीया का दिन है। सन्ध्या होने के पहले ही कुसुमकुमारी अपनी अटारी पर चढ गई और आश्चर्य नहीं कि आज चन्द्रमा का दर्शन पृथ्वी क मनुष्यों में सब स पहिले उसी ने किया हो । यद्यपि अब चन्द्रदेव को निकले बहुत दर हो गई परन्तु कुसुम ने अभी तक उनकी तरफ से ऑखें नहीं फेरी क्यों ? क्या रनवीर से मिलने की आशा में चन्द्रमा से टपकते हुए अमृत को नेत्रों द्वारा पान करक कुसुमकुमारी अमर हुआ चाहती है ? नहीं एसा नहीं है यदि ऐसा होता तो कलिकाल में प्राण रक्षा का सब से यडा सहारा “अन्न' कुसुमकुमारी के जी स न उतर जान तो क्या कुसुमकुमारी अपन कलेजे के दाग का चन्द्रमा के दाग से मिलान कर रही है? नहीं यह भी नहीं है क्योंकि इसका आनन्द बिना पूर्ण चन्दादय के नहीं मिल सकता तो क्या चन्द्रदेव से अपन टेटे नसीब का सीधा करने के लिये प्रार्थना कर रही है? नहीं नहीं चन्ददेव तो आज स्वय ही वक हो रहे हैं उनसे एसी आशा बुद्धिमान कुसुमकुमारी का नहीं हो सकती। अच्छा कदाचित् कुसुमकुमारी इस लिय चन्द्रमा को बडी दर से देख रही है कि आज द्वितीया के चन्द्रमा का दर्शन आवश्यक हाने के कारण रनबीर की आँखें भी चन्द्रदेव ही की तरफ लगी हुइ होंगी और नहीं तो इसी वहाने चार ऑखें तो हो जायेंगी !ठीक है यह बात ध्यान में आ सकती है आश्चर्य नहीं कि अभी तक चन्द्रदेव की तरफ इमी लालच से कुसुमकुमारी देख रही हो । यद्यपि चन्द्रदर्शन से उसकी तृप्ति नहीं होती थी और कदाचित उसका इरादा बहुत देर तक वहाँ ठहरने का था परन्तु एक लौडी ने अचानक वहाँ पहुच कर ऐसी खबर सुनाई जिससे वह चौंक कर लौडी की तरफ देखने लगी और बोली 'तून क्या कहा 12 . लौडी-रवीरसिह का पिता नारायणदत्त की सवारी शहर के पास आ पहुची। कुसुम-शहर के पास ॥ लौडी-जी हॉ अब दा कोस स ज्यादे दूर न होगी। कुसुम क्या जासूस यह खबर लेकर आया है ? लौडी-जी नहीं उन्होंन स्वयम् अपना आदमी खबर करने के लिये भेजा है। कुसुम-वडी खुशी की बात है अच्छा मैं नीचे चलती हू तू दोडी जा और वीरसेन को मेरे पास बुला ला। 'बहुत अच्छा कह कर लौडी वहाँ स चली गई और कुसुमकुमारी भी नीच उतर कर अपने कमरे में आ बैठी थाडी ही देर में वीरसेन भी वहां पहुचे जिन्हें देखते ही कुसुम न कहा,"सुनती हू कि महाराज की सवारी शहर के पास आ पहुची वीरसेन जी हॉ. यह खबर लेकर उनका खास मुसाहय यहाँ आया है मगर हमारे जासूस ने और भी एक खुशखबरी सुनाई है। कुसुम-दह क्या ? धीरसेन-वह कहता है कि दो तीन दिन के अन्दर ही रनधीरसिह भी यहाँ आने वाले है। कुसुम-खुश होकर) इसका पता उसे कैसे लगा? बीरसेन-नारायणदत्तजी के लश्कर में जब वह गया था तो उन्हीं लोगों में स कई आदमियों को रनवीरसिह के विषय में तरह तरह की बातें करते सुना था जिसका नतीजा उत्तने यह निकाला कि रनवीरसिह भी शीघ ही यहाँ आने वाल हैं। कुसुम-ईश्वर करे कि जासूस का खयाल दीक निकले परन्तु रगविरग की गप्पें सुनकर सच्ची बात का पता लगा लेना बहुत कठिन है, हों यदि मै उन बातों को पूरा सुनू जो जासूस ने सुनी है तो मालूम हो कि जासूस ने अपने मतलय का नतीजा क्योकर निकाला। वीरसेन-यो तो जासूस ने बहुत सी बातें सुनी थी परन्तु एक यात जो उस ने सुनी है वह यदि सच है तो मैं भी कह सकता हू कि रनवीरसिह शीघ्र ही आने वाले है। कुसुम-वह क्या? वीरसेन-जासूस के सामने ही एक जमींदार ने फौजी अफसर से पूछा था कि महाराज नारायणदतजी तेजगद 'कुसुमकुमारी की राजधानी तेजगढ"। कुसुम कुमारी ११०३