पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९५०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

e वादामी चहरे पर रोनक पैदा कर रही है और इस बात की इजाजत नहीं देती कि कोई उसे ज्यादे उग्र वाली कहकर खूबसूरतों की पंक्ति में बैठने से राके। हजार गई गुजरी होने पर भी वह रामदेई (भूतनाथ की दूसरी स्त्री) से बहुत अच्छी मालूम पडती है और इस बात का भूतनाथ भी बड गौर से देख रहा है।भूतनाथ की आखिरी बात सुन कर शान्ता ने अपनी डबडबाई हुई बडी बडी आखो को आंचल से साफ किया और एक लम्बी सास ले कर कहा- शान्ता में रणधीरसिहजी के यहाँ स कभी न भागती अगर अपना मुह किसी को दिखान लायक समझती। मगर अफसोस आपके भाई ने इस बात को अच्छी तरह मशहूर किया कि आपके दुश्मन (अर्थात आप) इस दुनिया स उद गय। इसके सबूत में उन्होंने बहुत सी बातें पेश की मगर विश्वास न हुआ तथापि इस गम में में बीमार हो गई और दिन दिन मरी बीमारी बढती ही गई। उसी जमाने में मरी मौसेरी बहिन अर्थात् दलीपशाह की स्त्री मुझे देखने के लिए मेरे घर आई। मैने अपने दिल का हाल और बीमारी का सबब उसस वयान किया और यह भी कहा कि जिस तरह मेरे पति ने सही सलामत रह कर भी अपने को मरा हुआ मशहूर किया उसी तरह मुझे तुम कहीं छिपा कर मरा हुआ मशहूर कर दो। अगर एसा हो जायगा ता मैं अपने पति को दूढ निकालन का उद्योग करगी। उन्होंने मेरी यात पसन्द कर ली और लोगों को यह कह कर कि मर यहाँ की आबोहवा अच्छी है वहाँ शान्ता को बहुत जल्द आराम हो जायगा मुझे अपन यहाँ उठा ले जाने का बन्दोवस्त किया और रणधीरसिहजी से इजाजत भी ले ली। में दो दिन तक अपनी लडकी कमला को नसीहत करती रही और इसक बाद उस किशारी के हवाल करके और अपने छोटे दूध पीते बच्चे को गाद में लेकर दलीपशाह के घर चली आई और धीरे-धीरे आराम हाने लगी। थोड़ ही दिन बाद दलीपशाह के घर में उस भयानक आधी रात के समय आपका आना हुआ मगर हाय उस समय आपकी अवस्था पागलों की सी हो रही थी और आपने धाने में पड़ कर अपन प्यारे लडक का जिस मै अपने साथ ल गई थी खून कर डाला। इतना कहते कहते शान्ता का जी भर आया और वह हिचकियाँ ले ले कर राने लगी। भूतनाथ की बुरी अवस्था हो रही थी और इससे ज्यादे वह उस घटना का हाल नहीं सुनना चाहता था। वह यह कहता हुआ कि बस माफ करा अब इसका जिक्र न करो अपनी स्त्री शान्ता के पैरों पर गिरा ही चाहता था कि उसने पैर खैच कर भूतनाय का सिर थाम लिया और कहा- 'हा-हा क्या करते हो? क्यों मेरे सिर पर पाप चढात हो !में खूब जानती हूं कि आपने उसे नहीं पहिचाना मगर इतना जरूर समझते थे कि वह दलीपशाह का लडका है अस्तु फिर भी आपको ऐसा नहीं करना चाहिये था खैर अब मैं इस जिक्र को छोड देती हूँ। इतना कह कर शान्ता ने अपन आसू पोछे और फिर इस तरह वयान करना शुरू किया- शाक और दुख से मै पुन बीमार पड़ गई मगर आशालता ने धीरे धीरे कुछ दिन में अपनी तरह मुझ भी (आराम) कर दिया। यह आशा केवल इसी बात की थी कि एक दफे आपसे जरूर मिलगी। मुश्किल तो यह थी कि उस घटना ने दलीपशाह को भी आपका दुश्मन बना दिया था केवल उस घटना न ही नहीं इसके अतिरिक्त भी दलीपशाह का। वर्वाद करन में आपने कुछ उदा न रक्या था यहा तक कि आखिर वह दारोगा के हाथ फस ही गये। भूत-(बेचैनी के साथ लम्बी सास लकर ) ओफ ! मैं कह चुका हूँ कि इन यात्रों को मत छेडो केवल अपना हाल बयान करो। मगर तुम नहीं मानती।' शान्ता--नहीं नहीं मैं ता अपना हाल बयान कर रही हूँ, खैर मुख्तसर ही में कहती हूँ। उस घटना के बाद ही मेरी इच्छानुसार दलीपशाह ने मेरा और बच्चे का मर जाना मशहूर क्यिा जिसे सुनकर हरनामसिह और कमला भी मरी तरफ से निश्चिन्त हो गये। जव खुद दलीपशाह भी दारागा के हाथ में फस गये तय मैं बहुत ही परशान हुई और सोचन लगी कि अब क्या करना चाहिए। उस समय दलीपशाह के घर में उनकी स्त्री एक छोटा सा बच्चा और मैं केवल ये तीन ही आदमी रह गये थे। दलीपशाह की स्त्री को मैंने धीरज धराया और कहा कि अभी अपनी जान मत वर्वाद कर भैयरावर तेरा साथ दूगी और दलीपशाह को खोज निकालने में उद्योग करेंगी मगर अब हमलोगों को यह घर एकदम छोड़ देना चाहिए और ऐसी जगह छिपकर रहना चाहिए जहाँ दुश्मनों को हम लोगों का पता न लगे। आखिर ऐसा ही हुआ अर्थात हमलोगों का जो कुछ जमा पूजी थी उसे लेकर हमने उस घर को एक दम छोड़ दिया और काशीजी में जाकर एक अधेरी गली में पुराने और गद मकान में डेरा डाला मगर इस बात की टोह लेते रह कि दलीपशाह कहाँ है अथवा छूटने के बाद अपने घर की तरफ जा कर हम लोगों को दूढ़ते हैं या नहीं। इस फिक्र में

  • दलीपसिह ने बीसवे माग के तेरहवें वयान में इस घटना की तरफ मूतनाथ से इशारा किया।

देवकीनन्दन खत्री समग्र ९४४