पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९५१

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R मैं कई दफे सूरत बदल कर बाहर निकली और इधर उधर घूमती रही। इत्तिफाक से दिल में यह बात पैदा हुई कि किसी तरह अपन लडने हरनामसिह स छिपकर मिलना और उस अपना साथी बना लेना चाहिए। ईश्वर ने मेरी यह मुराद पूरी को। जब माधवी कुँअर इन्द जीतसिह का फंसा ल गई और उसके बाद उसने किशारी पर भी कब्जा कर लिया तव कमला और हरनामसिह दाना अदमी किशारी की खोज में निकले और एक दूसरे से जुदा हो गया किशारी की खोज में हरनामसिह कात्री की गलियों में घूम रहा था जप उस पर मरी निगाह पड़ी और मैंन इशारे से अलग बुला कर अपना परिचय दिया। उसका मुझस मिल कर जितनी खुशी हुइ उसे मैं वयान नहीं कर सकती। मैं उस अपन घर में ले गई और सब हाल उसम कह अपने दिल का इरादा जाहिर किया जिसे उस्न खुशी से मजूर कर लिया। उस समय मैं चाहती तो कमला को भी अपन पास बुला लती मगर नहीं, उसे किशारी की मदद क लिए छोड दिया क्योंकि किशारी के नमक को मैं किसी तरह भूल नहीं सकती थी अस्तुमने कपल हरनामसिह का अपन पास रख लिया और खुद चुपचाप अपने घर में बैठी रह कर आपका और दलीपशाह का पता लगाने का काम लडक को सुपुर्द किया। बहुत दिनों तक बेचारा लडका चारो तरफ मार फिरा आर तरह तरह की खबरें ला कर मुझे सुनाता रहा। जब आप प्रकट हो कर कमलिनी के साथी बन गए और उसके काम के लिए चारा तरफ घूमन लग तब हरिनामसिह ने भी आपको दखा और पहिचान कर मुझ इत्तिला दी। थोड दिन बाद यह भी उसी की जुबानी मालूम हुआ कि अब आप नकनाम होकर दुनिया में अपने को प्रकट किया चाहते हैं। उस समय मैं बहुत प्रसन्न हुई आर मैने हरनाम को राय दी कि तू किसी तरह राजा श्रीरन्द्रसिह के किसी एयार की शागिर्दी कर ले! आखिर वह तारासिह से मिला और उसके साथ रह कर थाडे ही दिनों में उसका प्यारा शागिर्द बल्कि दोस्त बन गया। तब उसने अपना हाल तारासिह का कह सुनाया और तारासिह न भी उसके साथ बहुत अच्छा बर्ताव करके उसकी इच्छानुसार उसके भेदों को छिपाया। तब से हरनामसिह सूरत बदले हुए तारासिह का काम करता रहा और मुझे मी आपकी पूरी पूरी खबर मिलती रही। आपको शायद इस बात की खबर न हो कि तारासिह की मा चम्पासे और मुझस बहिन का रिश्ता है वह मेरे मामा की लड़की है अस्तु चम्पा न अपने लडके की जुबानी हरनामसिह का हाल सुना और जव यह मालूम हुआ कि वह रिश्ते में उसका मतीजा होता है तब उसन भी उस पर दया प्रकट की और तब से उस बराबर अपने लडक की तरह मानती रही। जमानिया क तिलिस्मी को खालत और कैदियों को साथ लिए हुए जव दानों कुमार उस खोह वाले तिलिस्मी बगले में पहुचे तो उन्होंने भैरोसिह और तारसिह को अपने पास बुला लिया और तिलिस्मी का पूरा हाल उनस कह क उन दोनों को अपन पास रक्खा । दलीपशाह को यह हाल भी तारासिह ही से मालूम हुआ कि उनके बाल यच्चे ईश्वर की कृपा से अभी तक राजी खुशी हैं साथ ही इसके मरा हाल भी दलीपशाह को मालूम हुआ। उस समय तारासिह दानों कुमारों से आज्ञा लकार हरनामसिह का उस बगले में ले आया और दलीपशाह से उसकी मुलाकात कराई । हरनामसिह का साथ लेकर दलीपशाह काशी गये और वहा से मुझको तथा अपनी स्त्री और लड़के को साथ लेकर कुमार के पास चले आये जय तारासिह की जुबानी चम्पा ने यह हाल सुना तय वह मुझसे मिलने के लिये तारासिह के साथ यहा अथार्तु उस वगले में आई। भूत-ज्य दोनों कुमार नकाबपाश बनकर भैरोसिह और तारासिह को यहा ले आए उसके पहिले ता तारासिह यहा नहीं आए थ? शान्ता-जो उसक पहिले ही स वेदानों यहा आते जाते रहे उस दिन तो प्रकट रूप स यहा लाए गये थे। क्या इतना हा जाने पर भी आपको अन्दाज से मालूम न हुआ ? भूत-ठीक है इस बात का शक तो मुझ और देवीसिह को भी होता रहा ! शान्ता का कित्सा भूतनाथ ने बडे गौर क साथ ध्यान देकर सुना और तब दर तक आरजू-मिन्नत के साथ शान्ता स माफी मागता रहा। इसके बाद पुन दानों में बात-चीत होने लगी। शान्ता-उब तो आपका मालूम हुआ कि चम्पा यहाँ क्योंकर और किस लिए आई। भूत-हॉ यह मद तो खुल गया मगर इसका पता न लगा कि नानक और उसकी माँ का यहाँ आना कैसे हुआ ! शान्ता-सो मैं न कहूँगी यह उसी से पूछ लेना। भूत-(ताज्जुब स ) क्यों? शान्ता मैं उसके बार में कुछ कहा ही नहीं चाहती । भूत-आखिर इसका कोई सबर भी है ? शान्ता-सदव यही है कि उसकी यहाँ कोई इज्जत नहीं है बल्कि वह वेकदरी की निगाह से दखी जाती है। भृत-वह है भी इसी योग्य पहिल तो में उस प्यार करता था मगर जब से यह सुना कि उसी की बदौलत में जैपाल चन्द्रकान्ता सन्तति भाग २२ ६०