पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९५२

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GyT -- (नकली बलभद्र) का शिकार बन गया और एक भारी आफत में फस गया तब से मरी तबीयत उससे खट्टी हो गई। शान्ता-सो क्यों? भूत-उसीलिए कि वह वेगम की गुप्त सहेली नन्हों से गहरी मुहब्यत रखती है और इसी सवव से वह कागज का मुट्टा जो मैंन अपने फायदे के लिए तैयार कियाथा गायब हो क जैपाल के हाथ लग गया और उससे मुझ नुकसान पहुचा। इस बात का सबूत भी मैन अपनी आखों से देख लिया। शान्ता-सो ठीक है मैं भी दलीपशाह से यह बात सुन चुकी हूँ। भूत-इसी से अव में उसे अपनी स्त्री नहीं बल्कि दुश्मन समझता हूँ। केवल नन्हा ही से नहीं बल्कि कन्वस्त गोहर से भी वह दोस्ती रखती थी और यह दोस्ती पाक न थी (लम्बी सास लेकर) अफसोस ! इसी से उस खाटी का लडका नानक भी खाटा ही निकला। शान्ता-(मुस्कुरा कर ) तव आप उसक लिए इतना परेशान क्यों थे? क्योंकि यह बात सुनने के बाद ही तो आपन उसे नकाबपोशों के स्थान में देखा था । भूत-वह परशानी मेरी उसी मुहब्बत के सवव से न थी बल्कि इस, ख्याल से थी कि कहीं वह मुझ पर काई नई आफत लाने के लिए तो नकाबपोशो से नहीं आ मिली। शान्ता-ठीक है यह ख्याल भी हो सकता था। भूत-फिर इसी बीच में जब उसने मुझ जगल में गाना सुना के धोखा दिया और गिरफ्तार कर के अपने स्थान पर ले गई** जिसका हाल शायद तुम्हें मालूम होगा तब मेरा रज और भी बढ़ गया । शान्ता यह हाल मुझे मालूम है मगर यह कार्रवाइ उसकी न थी बल्कि इन्ददेव की थी। उन्होंने ही आपके साथ यह ऐयारी की थी और उस दिन जगल में घोड पर सवार जो औरत आपको मिली थी और जिसे आपने अपनी स्त्री समझा था, वह भी इन्द्रदेव का एक ऐयार ही था। यह बात मैं उन्हीं (इन्द्रदेव) की जुबानी सुन चुकी हूँ, शायद आपसे भी वे कहें। हॉ उस दिन बगले में जिस औरत को आपने दखा था यह देसक नानक की माँ थी। वह तो खुद कैदियों की तरह यहाँ रक्खी गई है मैदान की हवा क्योंकर खा सकती है ! दानों कुमार नहीं चाहते थे कि प्रकट हाने के पहिले ही कोई उन लोगों का पता लगा लें इसीलिए ये सब खल खल गये। (कुछ सोधकर) आखिर आपने धीरे-धीरे नानक की मां का हाल पूछ ही लिया मैं उसके बारे में कुछ भी नहीं कहा चाहती थी अस्तु अव इससे आगे और कुछ भी न कहूँगी, आप उसके चारे में मुझस कुछ न पूछे। भूत-नहीं नहीं जब इतना बता चुकी हो तो कुछ और भी बताआ क्योंकि उससे मिलकर कुछ भी नहीं पूछा चाहता बल्कि अब उसका मुह देखना भी मुझे पसन्द नहीं है।अच्छा यह ता बताओ कि वह कम्यरत यहा क्यों लाई गई ? शान्ता-लाई नहीं गई बल्कि उसी नन्हों के यहा गिरफ्तार की गई उस समय नानक भी उसके साथ था। भूत-(आश्चर्य और क्रोध से ) फिर भी उसी नन्हों के यहा गई थी? शान्ता-जी हा। भूत-(लम्बी सॉस लेकर ) लोग सच कहत है कि ऐयाशी का नतीजा बहुत बुरा निकलता है। शान्ता-अस्तु अब उसके बारे में मुझसे कुछ न पूछिए. इन्ददेवजी आपको सब कुछ बात देंगे। भूत-हो ठीक है खैर अब उसके बारे में कुछ न पूछूगा जो कुछ पूछूगा वह तुम्हार और हरनाम ही के बारे में होगा ! अच्छा एक बात और बताओ आज के दर्यार में मैंने हरनाम को हाथ में एक सन्दूकड़ी लिए देखा था वह सन्दूकड़ी कैसी थी और उसमें क्या था? शान्ता-उसमें दारोगा के हाथ की लिखी हुई बहुत सी चिट्टिया हैं जिनके देखने से आपको निश्चय हो जायगा कि आपने दलीपशाह को व्यर्थ ही अपना दुश्मन समझ लिया था। पहिले जब दारागा ने दलीपशाह को लालच दिखाकर लिखा था कि वह आपको गिरफ्तार करा दें तब दा चार चिडयों में तो दलीपशाह ने इस नीयत से कि दारोगा की शैतानियों का सबूत उससे मिल कर बटोर लें दारोगा के मतलब ही का जवाब दिया था जिससे खुश होकर उसने कई चीठियों में दलीपशाह को तरह तरह के सब्जबाग दिखलाए मगर जब दारोगा की कई चीठिया दलीपशाह ने बटोर ली तब साफ जवाब दे दिया। उस समय दारोगा बहुत घबडाया और उसने सोचा कि कहीं ऐसा न हो कि दलीपशाह मुझसे ।

  • उन्नीसवा भाग बारहवा ययान, देखिए नकाबपोश की बातचीत

"देखिये बीसवें भाग का अन्त । देवकीनन्दन खत्री समग्र