पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९५३

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city दुश्मनी करक मेरा भेद खोल दे अस्तु किसी तरह उस गिरफ्तार कर लना चाहिए। उस समय कम्यस्त दारोगा आपसे मिला और उसने दलीपशाह की पहली चीठिया आपका दिखा कर खुद आप ही को दलीपशाह का दुश्मन बना दिया, पल्कि आप ही के जरिय स दलीपशाह का गिरफ्तार भी करा लिया । भूत-ठीक है. इस विषय में मैंने बहुत बड़ा धोखा खाया। शान्ता-मगर दलीपशाह का गिरफ्तार कर लेन पर भी वे चीठिया दारोगा के हाथ न लगी क्योंकि वदलीपशाह की स्त्री के कब्जे में थीं, अब हम लोग उन्हें अपने साथ लाये है जिसमें दारोगा के मुकदमें में पेश करें! भूत-अस्तु अव मेरे दिल का खुटका निकल गया और निश्चय हा गया कि हरनाम की कोई कार्रवाई मेर खिलाफ न हागी। शान्ता-भला वह कोई काम एसा क्यों करेगा जिससे आपका तकलीफ हो? ऐसा ख्याल भी आपको न रखना चाहिये। इन दोनों में इसी तरह की बातें हो रही थीं कि किसी के आने की आहट मालूम हुई। भूतनाथ ने घूम कर दखा तो नानक पर निगाह पडी। जब वह पास आया तब भूतनाथ ने उससे पूछा क्या चाहत हा ? ' नानक मरी मॉ आपसे मिलना चाहती है। भूत-ता यहाँ पर क्यों न चली आई ? यहाँ कोई गैर तो था नहीं ! नानक-सोता वही जानें। भूत-अच्छा जाओ उसे इसी जगह मेर पास भेज दो। नानक-बहुत अच्छा। इतना कह कर नानक चला गया और इसके बाद शान्ता ने भूतनाथ से कहा ' शायद उसे मेर सामने आपस वातचीत करना मजूर न हो शर्म आती हो या किसी तरह का और कुछ खयाल हो, अस्तु आज्ञा दीजिये तो में चली जाऊँ फिर भूत-नहीं उसे जो कुछ कहना होगा तुम्हारे सामने ही कहेगी तुम चुपचाप बैठी रहो। शान्ता सम्भव है कि वह मेरे रहते यहाँ न आवे या उसे इस बात का ख्याल हो कि तुम मेर सामन उसकी बेइज्जती करागे। भूतनाथ-हा सकता है मगर (कुछ सोच के ) अच्छा तुम जाओ। इतना सुन कर शान्ता वहाँ स उठी और वगले की तरफ रवाना हुई। इस समय सूर्य अस्त हो चुका था और चारो तरफ स अधरी झुकी आती थी। सातवां बयान इन्ददेव का यह स्थान बहुत बड़ा था। इस समय यहाँ जितने आदमी आए हुए है उनमें से किसी को किसी तरह की भी तकलीफ नहीं हो सकती थी और इसके लिए प्रबन्ध भी बहुत अच्छा कर रक्खा गया था। औरतों के लिए एक खास कमरा मुकर्रर किया गया था मगर रामदेई (नानक की मॉ) की निगरानी की जाती थी और इस बात का भी बन्दोबस्त कर रक्खा गया था कि कोई किसी के साथ दुश्मनी का वर्ताव न कर सके। महाराज सुरेन्द्रसिह, वीरन्द्रसिह और दोनों कुमारों के कमरों के आगे कहर कर पूरा-पूरा इन्तजाम था और हमारे ऐयार लोग भी बरावर चौकन्ने रहा करते थे। यद्यपि भूतनाथ एकान्त में बैठा हुआ अपनी स्त्री स बातें कर रहाथा, मगर यह बात इन्द्रदेव और देवीसिह से छिपी हुई न थी जा इस समय बागीच में टहलते हुए बातें कर रहे थे। इन दानों क दखते ही दखत नानक मूतनाथ की तरफ गया और लौट आया इसके बाद भूतनाथ की स्त्री अपने डरे पर चली गई और फिर रामदेई अर्थात् नानक की माँ भूतनाथ की तरफ जाती हुई दिखाई पड़ी। उस समय इन्ददेव ने देवीसिह से कहा सिहजी देखिये भूतनाथ अपनी पहली स्त्री से बातचीत कर चुका है अब उसन नानक की माँ का अपने पास बुलाया है। शान्ता की जुबानी उसकी खुटाई का हाल तो उसजरूर मालूम हो ही गया होगा इसलिए ताज्जुब नहीं कि वह गुस्से में आकर रामदई के हाथ पैर तोड डान। देवी-एसा हो तो कोई ताज्जुब की बात नहीं है मगर उस औरत न भी तो सजा पाने के ही लायक काम किया है। इन्द-ठीक है मगर इस समय उसे बचाना चाहिये । देवी-तो जाइये यहाँ छिप कर तमाशा देखिये और मौका पडन पर उसकी सहायता कीजिए। (मुस्कुरा कर) आप चन्द्रकान्ता सन्तति भाग २२ ९४७