पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९५४

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ही आग लगाल है और आप ही तुझान दौडत है। इन्द-(हँस कर ) आप ता दिल्लगी करत है। देवी-दिल्लगी काहे का? क्या आपन उन्म गिरफ्तार नहीं कराया है और अगर गिरज्तार करावा हे दा क्या नाम दन क लिए? इन्द्र-(मुस्कुरात हु ) ला आपकी राय है कि इसी समय उसकी मरम्मत की जाय ।। दवी-चाहिए ना रस हो । जी में आव तत तमाशा देखन चलिए। कहिय ता आपऊ नाय अत् । इन्द-नहीं नहीं मान हाना चाहिए। भूतनाथ आपका दास्त है और अब ता नातदार भी। आर एस मोकार उसर सामन ला रस्त है। जाइब आप उस बचाइय मरा जाना मुनासिब न हगा। दघी- हँस करतो आप चाहत है कि मैं भी भूतनाथ क हाथ - दा एक घूस खा लू? अच्छा नाहन जाना आ.. 1 हुक्म कोम टाल, आज अपने बड़ी-बडीवात महा सुनाई है इसलिय आपका अपमान नौ ता गनना होगा। ई. कहत हु-स्वास्हि पड़ा की आड दत हुए भूत्नाथ की नर रवाना र और जब एसो जग "हुच सहाँस दाना जसे मात बसूया सुन सकते थे तब एक चट्टान पर मठ गये और सुनने ला किया .. वन का। भूत-७२ अच्छा ही हुआ जो तुम यहा तक आई मुझस गुलाफाल न हो गई और में लाया न गया मगर यह ता बलाक अपनी महली नन्हा की यहाँ फल्यों नालोआई मनीजा उम्मल ..- काटाडा कर जा सनदई र प्याक्षप करते हा उया तुहाग साविकार है ? A. इस ग तुम्हारी लो: ' ! यथ ही एक आदमा का बदनात आटक करा मा-(र-1 कादया कार ) 2ी 77-7meगा : " सनदेइ-- - F• असणान्ती हुइ। अगर :.., ।, ५८, मिनी :- - हाक यहा -" +17गामा मसि भूत- हे भाऊना Triyा।' . 17 सन--7- गो. ना. 22-17 आयवदना - 70 है। नायगे लालच दसरा - दु८ महाददास हात जाय माली र उपज पर पत्थर पड़ १६ देहि लो तुम्हावा दिया है की लिग सुन म मान- तुम्ह एस क्या है। कदा हा गय लन कनिएता तु यही कार अलग्या है अगर पुन्हा हागो ताने मरते दम लामा , पदला लूगा क्या में कमजार पादर रामदई-जल यदला लेना चाहिए अगर तुम सा नीजगीता मरलगी कि तुनसबद कर कमीना कोई नहीं इतना पर मलनाय का बहिलाव गुरव या गरमगर ना उसन ने ऋग्ध का दबाया और कह'- भूत-अच्छा ता ज्यान एता हा कसँगा मगर यह ता वहा कि सर की लडको गोहरे म तुमसे क्या नाला रान-उन मुसलमानिन से मुझम क्या नाता होना । मेने सा उसकी सूरत भी नहीं दी। भृत-लाग ना पहने है कि तुन उसक यहा भी आती जाती हा आर मरे बहुत से भेद तुमन उस बता दिया। राम-सब झूठ है। य लोग बात लगाने वाल जैसे ही धूत और गजी है वैसे ही तुम सीध और बेवकूफ हो । अव भूतनाथ अपन गुस्स का बर्दाश्त न कर सका और उस एक चपत रामदई के गाल पर ऐसी जमाई कि यह दिलमिला कर जमीन पर लेट गइ मगर उस चिल्लान का साहस न हुआ। कुछ देर बाद वह उठ बैठी और भूतनाथ का नुह दखन लगी। देवकीनन्दन खत्री समग्र ९४८