पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९५६

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६ नानफ-मगर आप मेरा कसूर माफ कर चुके हैं और गोपाल-(नानक स) अगर तुम उस माफी को पाकर खुश हुए थे तो फिर पुराने रास्ते पर क्यों गये और पुन अपनी मॉ को लेकर नन्हों के पास क्यों पहुचे ? तुम्हें बात करते शर्म नहीं आती ! गोपाल-फिर भी अपनीजवान(माफी) का ख्याल कलंगा ओर तुम्हें किसी तरह की तकलीफ न दूंगा मगर अय भूतनाथ की तरह मैं भी तुम्हारी सूरत देखना पसन्द नहीं करता और न भूतनाथ का इस विषय में कुछ कहना चाहता हू, इन्द्रदेव ने तुम्हारे साथ इतनी ही रेआयत की सो बहुत किया कि तुमको यहाँ से निकल जाने की आज्ञा दे दी नहीं तो तुम इस लायक थे कि जन्म भर कैद में पड़े सडा करते। नानक-जो आज्ञा मगर मेरे पिता से इतना तो दिला दीजिए कि मेरी मॉ जन्म भर खाने पीने की तरफ से बेफिक्र इन्द्र-अब कमीने तुझे यह कहते शर्म नहीं मालूम होती । इतना बड़ा हो के भी तू अपनी माँ के लायक दाना पानी नहीं जुटा सकता? खेर अव तुझे आखिरीमर्तये कहा जाता है कि अब हम लोगों से किसी तरह की उम्मीद न रख और अपनी माँ को साथ लेकर यहाँ से चला जा। भूतनाथ ने भी मुझे ऐसा ही कहने के लिए कहला भेजा है। इतना कह कर इन्द्रदेव ने ताली बजाई और साथ ही अपने एयार स!सिह को कमर के अन्दर आते देखा। इन्द--(सयू से) भूतनाथ कहां है ? स!-नम्बर पाच के कमरे में देवीसिहजी यातें कर रह है वे दोनों यहा आए भी थे मगर यह सुन कर कि नानक यहाँ बैठा हुआ है पिछले पैर लौट गए। इन्द-अच्छा तुम जाओ और उन्हें यहाँ बुला लाओ। सऍसिह-जो आज्ञा, परन्तु मुझे आशा नहीं है कि वे लोग नानक के रहते यहाँ आवेंगे। इन्द्र-अच्छा तो मै खुद जाता है। गोपाल-हा तुम्हारा ही जाना ठीक होगा, देवीसिह को भी बुलाते आना । इन्द्रदेव उठ कर चले गये और थोड़ी ही देर में भूतनाथ तथा देवीसिह को साथ लिए आ पहुचे । गोपाल-( भूतनाथ से ) क्यों साहब आप यहाँ तक आकर लौट क्यों गए? भूत-यों ही मैंने समझा कि आप लोग किसी खास बात में लगे हुए है। गोपाल-अच्छा बैठिए और एक बात का जवाब दीजिए। भूत-कहिए? गोपाल-रामदेई और नानक के बारे में आप क्या हुक्म देते हैं ? भूत-महाराज ने क्या आज्ञा दी है? गोपाल-उन्होंने इसका फैसला आप ही के ऊपर छोडा है। भूत-फिर जो राय आप लोगों को हो. मैने तो इन दोनों के बारे में इसकी का हुक्म सुना ही दिया है। गोपाल-इनके कसूर तो आप सुन ही चुके होंगे। भूत-पिछले कसूरों को तो में सुन ही चुका हूँ, हॉ नया कसूर सिर्फ इतना ही मालूम हुआ है कि ये दोनों नन्हों के यहाँ गिरफ्तार हुए है। गोपाल-इसके अतिरिक्त एक बात और है। भूत-वह क्या? मोपाल-यही कि ये दोनों अगर खाली हाथ न होते तो बेचारी शान्ता को जान से मार डालते। इतने ही में नानक बोल उठा. 'नहीं नहीं, यह आपके जासूसों ने हमारे ऊपर झूला इलजाम लगाया है ! भूत-अगर यह बात है तो मैं इसे हथकडी से खाली क्यों देखता हूँ? इन्द्रदेव-इसीलिए कि हमारे हाते के अन्दर ये लोग कुछ कर नहीं सकते। जय ये लोग यहाँ गिरफ्तार होकर आये तो कुछ दिन तक तो भलमनसी के साथ रहे मगर आज इनकी नीयत बिगडी हुई मालूम पडी। भूत-खैर अब आप ही इनके लिए हुक्म सुनाइये। मगर इन्द्रदेव आप यह न समझियेगा कि इन लोगों के बारे में मुझे किसी तरह का रज है। मै सच कहता है कि इन दोनों का यहाँ आना मेरे लिए बहुत अच्छा हुआ मैिं इन लोगों के फेर में बेतरह फंसा हुआ था। आज मालूम हुआ कि ये लोग जहर हलाहल से भी बढ़े हुए है, अस्तु आज इन लोगों से पीछा छुडा कर मै बहुत ही प्रसन्न हुआ। मरे सिर से बोझा उतर गया और अब मेरी जिन्दगी खुशी के साथ बीतेगी। आप का देवकीनन्दन खत्री समग्र ९५०