पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९५७

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कहना सच निकला अर्थात् इनका यहाँ आना मेरे लिए खुशी का समय हुआ। इन्द्र--अच्छा यह वताइये कि ये अगर इसी तरह छाड दिय जायें तो आपके खजान को तो किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचा सकते जो लामाघाटी के अन्दर हे ? भूत-कुछ भी नहीं, और लामाघाटी के अन्दर जेवरों के अतिरिक्त ओर कुछ है भी नहीं राजवरों को मैं वहाँ से मॅगया ले सकता हूँ। इन्द-अगर सिर्फ नानक की मॉ के जेवरों से आपका मतलब है तो वह अब मेरे कब्जे में है क्योंकि नन्हों के यहाँ वह बिना जेवरों के नहीं गई थी। भूत-वस ता मैं उस तरफ से येफिक्र हो गया । यद्यपि उन जेवरों की मुझे कोई परवाह नहीं है मगर उसके पास में एक कौड़ी भी नहीं छोड़ा चाहता। इसक अतिरिक्त यह भी जरूर कहूगा कि अब ये लोग सूखा छोड देने लायक नहीं रहे। इन्द्र-खैर जैसी राय होगी वैसा ही किया जायगा। इतना कह कर इन्ददेव न पुन सर्दू सिह को बुलाया और जब वह कमरे के अन्दर आ गया तो कहा- थोड़ी देर के लिए नानक को बाहर ले जाओ। नानक को लिए हुए ससिह कमरे के बाहर चला गया और इसके बाद चारों आदमी विचार करने लगे कि नानक और उसकी माँ के साथ क्या बर्ताव करना चाहिए। देर तक साच विचार यही निश्चय किया कि उन दोनों को देश से निकाल दिया जाय और कह दिया जाय कि जिस दिन हमारे महाराज की अमलदारी में दिखाई दोगें उसी दिन मार डाले जाओगे। इस हुक्म पर महाराज से आज्ञा लेने की इन लोगों को कोई जरूरत न थी क्योंकि उन्होंने सब बातें सुन सुना कर पहिल ही हुक्म दे दिया था कि भूतनाथ की आज्ञानुसार काम किया जाय, अस्तु नानक कमरे के अन्दर बुलाया गया और इसके बाद रामदेई भी बुलाई गई। जब दानों इकट्ठे हो गए तो उन्हें हुक्म सुना दिया गया। यह हुक्म यद्यपि साधारण मालूम होता है मगर उन दोनों के लिए ऐसा न था जिन्हें भूतनाथ की बदौलत शाहखर्ची की आदत पड़ गई थी। नानक और रामदेई की आँखों से आंसू जारी था जब इन्द्रदेव न सऍसिह को हुक्म दिया कि चार आदमी उन दोनों को ले जाये और महाराज की सरहद क बाहर कर आवै। ससिह दोनों को लिए हुए कमरे के बाहर निकल गया। भूत-सिर स बोझ उतरा और कम्बख्तों से पीछा छूटा अच्छा अब यतलाइये कि कल क्या होगा? गोपाल-महाराज न तो यही हुक्म दिया है कि कल यहाँ से डेरा कूच किया जाय और तिलिस्म की सैर करते हुए चुनारगढ पहुँचे चम्पा शान्ता हरनामसिह मरथसिहऔर दलीपशाह वगैरह बाहर की राह से चुनार भेज दिये जाय, यदि हमारे किंसी ऐयार की भी इच्छा हा तो उनके साथ चला जाय । भूत-एसा कौन वेवकूफ होगा जो तिलिस्स की सैर छोड उनके साथ जायगा । देवीसिह-सभी कोई ऐसा ही कहते हैं। भूत-हॉ यह तो बताइये कि मैने नानक को जब दरबार में देखा था तो उसके हाथ में एक लपेटी हुई तस्वीर थी अब वह तस्वीर कहाँ है और उसमें क्या बात थी? इन्द्र-वह कागज जिसे आप तस्वीर समझे हुए हैं मेरे पास है आपको दिखाऊँगा। असल में वह तस्वीर नहीं है पल्कि नानक ने उसमें एक बहुत बडी दर्खास्त लिख कर तैयार की थी जो दर्वार में आ के पेश किया चाहता था मगर ऐसा कर न सका। भूत-उसमें लिखा क्या था? भूत-जा लोग उसे गिरफ्तार कर लाये हैं उनकी शिकायत के सिवाय और कुछ भी नहीं। साथ ही इसके उस दर्खास्त में इस बात पर बहुत जोर दिया गया था कि कमला की मा वास्तव में मर गई है और आज जिस शान्ता को सब काइ देख रहे हैं वह वास्तव में नकली है। भूत-वाह र शैतान ! ( कुछ सोच कर ) तो शायद वह दर्खास्त महाराज के हाथ तक नहीं पहुँची? इन्द्र-क्यों नहीं मैंने जान बूझ कर ऐसा करने का मौका दिया। वह रात की पहरे दालो से इत्तिला करा कर खुद महाराज के पास पहुंचा और उनके सामने वह दर्खास्त दी । उस समय महाराज ने मुझे बुलाया और मुझी को वह दर्खास्त पढने के लिए दी गई। उसे सुनकर महाराज ने मुस्कुरा दिया और इशारा किया कि वह कमरे के बाहर निकाल दिया जाय क्योंकि इसके पहिले मैं शान्ता और हरनामसिह का पूरा-पूरा हाल महाराज से अर्ज कर चुका था। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग २२ । ९५१