पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९६०

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Paper wiele इन्द्रदेव का देख कर सब कोई प्रसन एक महत्व स.TE बाद इस तरह बीत जलगी - इन्द्र-( चबूतरे से नीचे उतरकर और मराग पास आकर ) में उम्मीद करता है कि रातमारो का सफर हाराज प्रसन्न हुए होगा महाराज-शक | क्या इसक सिवाय और भी काई लगाशा पटा दियाई दाता है? इन्द्र-जी हा यहा पूरा नहाभारत दिखाई दे सकता है. अर्थात् महाभारत मय में जो कुछ लिखा है यह सप भी देग पर और इसी चबूतर पर आप देख सकते हैं मगर दोचार दिन में नहीं बलि, मी में इसपो साथ माय बनान वाल ने इसकी भी तीव रक्सी है कि चाह सुधदी से तगारा दिरवाया जाय या जीव हा मकाई टुकडा दिखा दिया जाय अर्थान महाभारत के अन्तर्गत जा कुछ चाहें दख सकत है। महाराज-इच्छा तो बहुत कुछ देखन की थी मगर इस समय हम लोग यहां ज्यादे शक नहीं सकत अस्तु फिर कभी जरूर देखेंगे। रा हमें इस तभाशे के विषय में कुछ समझाओ तो सही कि यह काम क्योकर हो सकता है और तुमने यहाँ से कहाँ जाकर क्या किया? इन्द्रदेव ने इस तमारी का पूरा पूरा मद सभी को समझाया और कहा कि एसे ऐसे फैमाश इस तिलिस्म में भर पड़ है अगर आप चाहें तो इस काम में वर्षों बिता सकते हैं, इसके अतिरिक्त यहा को दौलत का भी यही हाल है कि वर्षों तक ढोते रहिये फिर भी कमी न हो सोने चादी का तो काहना ही क्या है जवाहिरात भी आप जितना चार्ट लमकत ह सब ताया है कि जितनी दौलत यहाँ है उसके रहने का ठिकाना भी यही हो सकता है। इस बागीचे में आसही पास और भी चार वाग है शायद उन सगों में धूमना और पहा के तमाशों को देखना इस समय आप एसन, न करे महा-बेशक इस समय हम इन सब तमाशा में समय बिताना पसन्द नहीं करत। सबसे पहिले शादी न्याह के काम से छुट्टी पाने की इच्छा लगी हुई है मगर इसके बाद पुनः एक दफे इस तिलिस्म में आकर यहा की सैर जरूर करेंग। कुछ देर तक इसी किस्म की बाते हाती रही इसके बाद इन्द्रदय रामा का पुन उसी याग मेल आये जिसमें उनसे मुलाकात हुई थी या जहाँ से इद्रदेव के स्थान में जाने का रास्ता था ! दसवां बयान इस बाग में पहिले दिन जिस वारहदरी में बैर कर सभों ने भाजन किया था, आज पुन उसी वारदरी में बैठन और भोजन करने का मौका मिला। खाने की चीज एयार लोग अपने साथ ले आये थे और जल की यहाँ कमी ही न थी,अस्तु स्नान सन्ध्योपासन और भाजा इत्यादि से छुट्टी पाकर सब कोई उसी वारदरो में तो रह फ्योकि रात के जाग हुए थे और बिना कुछ आराम किये मटने की इच्छा न थी। जब दिन पहर मर सकुछ कम यानी रह गया तप सब काइ उठे और पर्श के जल से हाथ मुह धोकर आगे की तरफ बढ़न के लिए तैयार हुए। हम ऊपर किसी बयान में लिख आये है कि यह तीनों तरफ की दीवारों में कई आलमारिया भी अस्तु इस समय कुंअर इन्द्रजीतसिहन उन्हीं आलमारियो म सस्क आलमारी खोली और महाराज की तरफ दय कर कहा, चुनार के तिलिस्म में जाने का यही रास्ता है और हम दानों भाई इसी रास्त से वहा तक गये थे। रात बिल्कुल अपरा था इसलिए इन्दजीतसिह तिलिस्मी राजर की रोशनी करते हुए आग आग रवाना हुए और उनके पीछ महाराज सुरेन्द्रसिह राजा वीरेन्द्रसिह. गोपालसिह, इन्द्रदेव वगैरह और ऐयार लोग रवाना हुए। सबसे पीछे कुंअर आनन्दसिह तिलिस्मो खजर की रोशनी करते हुए जान लग क्योंकि सुरग पतली थी और केवल आगे को रोशनी से काम नहीं चल सकता था। य लोग उस सुरग में कई घटे तक बराबर चल गय और इस बात का पता न लगा कि कय सध्या हुई या अप कितनी रातचीत चुकी है। जब सुरग का दूसरा दर्वाजा इन लोगों को मिला और उस खोल कर सब कोई बाहर निकले तो अपन फो एक लम्बी चौडी कोठरी में पाया जिसमें इस दजे के अतिरिक्त तीनो तरफ की दीवारों में और भी तीन दाज थे जिनकी तरफ इशारा करेके हुँअर इन्दजीतसिह ने कहा, अब हम लोग उस चबूतरे वाले तिलिस्म के नीचे आ पहुचे हैं। इस जगह एक दूसरे से मिली हुई सैकड़ों कोठरियों हैं जो भूलभुलये की तरह चक्कर दिलाती हैं और जिनमें फसा हुआ अनजान आदमी जल्दी निकल ही नहीं सकता। जव पहिले पहल हम दोनो भाई यहाँ आये थे तब कोठरियों के दर्वाज वन्द थे जो तिलिस्मी किताय की सहायता से खोले गये और जिनका खुलासा हाल आपको निलिस्मी फिताब के पदने से मालूम होगा मगर इनके खोलने में कई दिन लगे और तकलीफ भी बहुत हुई। इन कोठरियों के मध्य में एक चौखूटा देवकीनन्दन खत्री समग्र