पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९६१

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18 कमरा आप दखेंग ता ठीक चबूतर के नीच है और उसी में से बाहर निकलने का रास्ता है, बाकी सब कोठरियों में असबाब और खजाना भरा हुआ है। इसके अतिरिक्त छत के ऊपर एक और रास्ता उस चबूतरे में से बाहर निकलने क लिए बना हुआ है जिसका हाल मुझ पहिले मालूम न था जिस दिन हम दोनों भाई उस चबूतरे की राह निकले हैं उस दिन देखा कि इसके अतिरिक्त एक रास्ता और भी है ! इन्द्रदेव-जी हॉ दूसरा रास्ता भी जरूर है मगर वह तिलिस्म के दारोगा के लिए बनाया गया था तिलिस्म तोड़ने वाल के लिए नहीं। मुझे उस रास्ते का हाल बखूबी मालूम है। गोपाल-मुझे भी उस रास्ते का हाल ( इन्द्रदव की तरफ इशारा करके ) इन्हीं की जुबानी मालूम हुआ है, इसके पहल में कुछ भी नहीं जानता था और न ही मालूम था कि इस तिलिस्म के दारोगा यही हैं। इसके बाद कुँअर इन्द्रजीतसिह ने सभों को तहखाने अथवा कोठरियों और कमरों की सैर कराई जिसमें लाजवाब और हद्द दरजे की फिजूलखर्ची को मात करन वाली दौलत मरी हुई थी और एक से एक वढ कर अनूटी चीजें लोगों के दिल का अपनी तरफ खैच रही थीं। साथ ही इसके यह भी समझाया कि इन कोठरियों को हम लोगों ने कैसे खोला और इस काम में केसी कैसी कठिनाइयों उठानी पड़ी। धूमत फिरत और सर करते हुए सब कोइ उस मध्य वाल कमरे में पहुच जो ठीक तिलिस्मी चबूतरे के नीचे था। वास्तव म यह कमरा कल पुरतों स बिल्कुल भरा हुआ था। जमीन से छत तक बहुत सी तारा और कल पुर्जा का सम्बन्ध था और दीवार के अन्दर स ऊपर चढ जान के लिए सीढियों दिखाई दे रही थी। दानों कुमारों न महाराज का समझाया कि तिलिस्म टूटने के पहिले वे कल पुरजे किस ढग पर लग थ और ताडते समय उनक साथ कैसी कार्रवाई की गई। इसके बाद इन्दजीतसिह ने सीढियों की तरफ इशारा करके कहा अब भी इन साठियों का तिलिस्न कायम हे हर एक की मजाल नहीं कि इन पर पैर रख सके। वीरेन्द्र-यह सब कुछ ह मगर असल तिलिस्मी बुनियाद वही खाहवाला बगला जान पडता है जिसमें चलती फिरती तस्वीरा का तमाशा दखा था और जहाँ से तिलिस्म के अन्दर घुसे थे। सुरेन्द-इसमक्या शक है। वही चुनार जमानिया और राहतासगढ वगैरह के तिलिस्मों की नकल है और वहाँ रहन वाला तरह तरह के तमाश देख दिखा सकता है और सब से बढ़ कर आनन्द ले सकता है। जीत-वहा की पूरी पूरी कफियत अभी देखने में नहीं आई। इन्द्रजीत-दा चार दिन म वहाँ की कैफियत देख भी नहीं सकते। जो कुछ आप लोगों ने देखा वह रुपये में एक आना भी न था। मुझे भी अभी पुन वहाँ जाकर बहुत कुछ देखना बाकी है। सुरेन्द-इस समय तो जल्दी में थोडा बहुत दख लिया है मगर काम से निश्चिन्त होकर पुन हम लोग वहाँ चलेंगे और उसी जगह से राहतासगढ के तहखाने कीभी सैर करेंग। अच्छा अब यहाँ से बाहर होना चाहिए। आग आग कुँअर इन्द्रजीतसिह रवाना हुए। पाँच सात सीढियाँ चढ़ जाने के बाद एक छाटा सा लाहे का दर्वाजा मिला जिस उसी हीर वाली तिलिस्मी ताली से खाला और तब समों को लिए हुए दोनों कुमार तिलिस्मो चबूतरे के बाहर सब काइ तिलिस्म की सैर करके लौट आये और अपने अपन काम धन्धे में लगे। कैदियों के मुकदमे का थोड दिन तक मुल्तवी रख कर कुंअर इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिह की शादी पर सभा ने ध्यान दिया और इसी के इन्तजाम की फिक्र करन लग। महाराज सुरन्द्रसिह ने जो काम जिराके लायक समझा उसके सुपुर्द करके कुल कैदियों का चुनारगढ नेजने का हुक्म दिया आर यह भी निश्चय कर लिया कि दो तीन दिन के बाद हम लोग भी चुनारगढ चले जायगे क्योंकि वारात चुनारगढ ही स निकल कर यहा आवगी । भरथसिह और दलीपशाह वगरह का डेरा बलमदसिह क पडासही में पड़ा और दूसरे मेहमानों के साथ ही साथ इनकी खातिरदारी का बाझ भी भूतनाथ के ऊपर डाला गया। इस जगह सक्षेप में हम यह भी लिख देना उचित समझते है कि कोन काम किसक सुपुर्द किया गया । (१) इस तिलिस्मी इमारत के इर्द गिद जिन महमानों के डरे पडे हैं उन्हें किसी बात की तकलीफ तो नहीं हाती इस बात का बराबर मालूम करते रहन का काम भूतनाथ के सुपुर्द किया गया । (२) मादा यनिए और हलवाई बगेरह किसी से किसी चीज का दाम तो नहीं लेत इस बात की तहकीकात के लिए रामनारायण ऐयार मुकर्रर किय गए। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग २२ ९५५