पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९६३

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निगाह स नहीं दख सकता जिससे कि पहिले देखना था। भैरो-तो क्यों क्या इसलिए कि अब वह अपन स युगल चली जायगी और फिर उसे आप पर अहसानाकरन का मोका न मिला? इन्द-हाँ करीन क्रीज यही बात है। भैरा-मगर अव अपका उसकी मदद की जफर भी ता नहीं है। हाँइस बात का खयाल बशक हो सकता है कि अय आप उसक तिलिली मकान पर कब्जा न कर सकेगा। इन्द-नहीं नहीं मुझ इस बात की कुर जबरन नहीं है आर न इसका कुछ खयाल ही है । मैरो-ना इत्त बात का खयाल है कि उसने अपनी शादी में आपकान्यता नहीं दिया ? मगर वह एक हिन्दू लडकी को हैसियत स ऐसा कर मीता नहीं सक्नथी हो इस मातनी शिकायत आप गजल गापालसिहजी सजरूर कर सकते हैं क्योंकि उस काम कर्ताधर्ता ट ही है। इन्द-उनसता मुझे बहुत ही विजयन नगर में श क मार कुछ कह नहीं सकता। भैरो-( चौंक कर । सर्न तो तब हात जय आप इस बात की शिकायत करत कि में खुद उससे शादी किया चाहता था। इन्द्र-हो मात ऐसी ही है। (मुन्दग कर ) नगर तुम ता पागलों की सी बातें करते हो। भैरा-(हॅस कर यह कहएन । आप दाना हाथ लड्ट नाहनथे तो इस चार का आप इतने दिनां तक छिपाए व्यों रह? इन्द-ता यही कय उम्मीद हा स्वाती थी कि इन तरह यकायक गुमसुम शादी हा जायगी। भैरा-खैर अब ना जा कुछ होना था सा हो गया मगर आपका इस यात का ख्याल न करना चाहिए। इसके अतिरिक्त क्या आप समझत है कि किशारी इस बात का पसन्द करनी? कभी नहीं बल्कि आये दिन का झगडा पैदा हा जाता। इन्द्र-नहीं किशारीन नुझे एसी उम्मीद नहीं हा सकती। खैर अब इस विषय पर वहस करना व्यर्थ है मगर मुझे इसका रज जरुर है। अच्छा यह तो बताजा तुमने उन्हें दया है जिसके साथ कमलिनी की शादी हुई? भैरो-कई दक रानी उच्छी तरह कर चुका है। इन्द्र-कैसे हैं? भैरो-बडे लायक एडे लिये पांण्डन वहादुर दिल्र हसमुख और सुन्दर । इस अवसर पर आवेंगे ही देख लीजिएगा। आपन कमलिनी से इस बार में बातचीत नहीं की। इन्द्र-इधर सानही नगर तिलिस्म की मेर का जान क पहिले मुलाकात हुई थी उसने खुद मुझ बुलाया था बल्कि। उसी के जुबानी उसकी शादी का हाल मुझ मालूम हुआ था। मगर उसने मेरे साथ विचित्र ढग का यर्ताव किया। भैरा-सो क्या इन्द-(जा कुछ फैफियत हा चुकी थी उस यधान करन के बाद ) तुम इस बताव का कैसा समझत हो? नैरो-बहुत अच्छा और उचित । इसी तरह की यातचीत हा रही थी कि पहिले दिन की तरह बगल वाले कमरे का दवाजा खुला और एक लोडीन आकर सलाम करन बाट कहा कमलिनीजी आप मिला चाहती है आज्ञा हो तो इन्द-अच्छा में चलता है, तू दरवाजा बन्द कर दे। भैर-अब मैं भी जाकर आराम करता हूँ। इन्द-अच्छा जाआ फिर कल देखा जायगा। लौडी-इनस (भैरसिह से ) भी उन्हें कुछ कहना है। यह कहती हुई लौडी न दर्वाजा बन्द कर दिया तब तक कमलिनी इस कमर में आ पहुची और मैरासिह की तरफ देख कर बोली (जा उठ कर बाहर जाने के लिए तैयार था) आप कहाँ चले? आप ही से तो मुझे बहुत सी शिकायत करनी है। भैर-मा क्या? क्मलिनी-अब उसी कमर में चलिये व्हा बातचीत हामी। इतना कह कर कमलिनी न कुमार का हाथ पकड लिया और अपने कमर की तरफ ल चली पीछे पीछे भैतांसह भी चन्द्रकान्ता मन्तति भाग २२