पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९६९

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तरह तुम्हारी सूरत रात को देखने में नहीं आई तथापि मौके मौक पर कई दफे निगाह पड ही गई थी अस्तु किशोरी के सिवाय दूसरी होन का गुमान भी नहीं हो सकता था। मगर सच तो यों है कि तुमने मुझे बडा धोखा दिया ! कम-(जिसे अब इसी नाम से लिखना उचित है) मैने धोखा नहीं दिया बल्कि आप मुझे इस बात का जवाब तो दीजिये कि अगर आपने मुझे किशोरी समझा था तो इतनी ढिठाई करने की हिम्मत कैसे पडी? क्योंकि किशोरी आपकी स्त्री नहीं थी ! इन्द्र-क्या पागलपन की सी बातें कर रही हौ। अगर किशोरी मेरी स्त्री नहीं थी तो क्या तुम मेरी स्त्री थी ? कम-अगर आपने मुझे किशोरी समझा था तो आपको मेरे पास से उठ जाना चाहिए था। जब कि आप जानते हैं कि किशोरी कुमार के साथ व्याही गई है तो आप को उसके पास बैठने या उससे बातचीत करने का क्या हक था ? इन्द्र-तो क्या मैं इन्द्रजीतसिह नहीं हू?, बल्कि उचित तो यह था कि तुम मेरे पास से उठ जाती । जब तुम कमलिनी थीं तो तुम्हें पराये मर्द के पास बैठना भी न चाहिए था। कम-(ताज्जुब और कुछ क्रोध का चेहरा बना कर) फिर आप वही बातें कहे जाते है? आप अपने को समझ ही क्या रहे है ? पहिले आप आईने में अपनी सूरत देखिए और तब कहिए कि आप किशोरी के पति है या कमलिनी के । (आले पर से आइना उठा और कुमार को दिखा कर) बतलाइये आप कौन हैं ? और मै क्यों आपके पास से उठ जाती? अब तो कुमार के ताज्जुब का कोई हद्द न रहा क्योंकि आईने में उन्होंने अपनी सूरत में फर्क पाया। यह तो नहीं कह सकते थे कि किस आदमी की सूरत मालूम पडती है क्योंकि ऐस आदमी को कभी देखा भी न था मगर इतना जरूर कह सकते थे कि सूरत बदल गई और अब मै इन्द्रजीतसिह नहीं मालूम पडता। इन्दजीतसिह समझ गए कि किसी ने मेरे और कमलिनी के साथ चालबाजी करके दोनों का धर्म नष्ट किया और इसमें बेचारी कमलिनी का कोई कसूर नहीं है मगर फिर भी कमलिनी को आज का सामान देख कर चौकना चाहिए था। हॉ ताज्जुब की बात यह है कि इस घर में आने के पहिले मुझे किसी ने टोका भी नहीं ! तो क्या इस घर में आने के बाद मेरी सूरत बदली गई ? मगर ऐसा भी क्योंकर हा सकता है ? इत्यादि बातें सोचते हुए कुमार कमलिनी का मुह देखने लगे। कमलिनी ने आईना हाथ से रख दिया और पूछा अब बताइये आप कौन है । इसके जवाब में इन्द्रजीतसिह ने कहा, 'अब मैं भी अपना मुह धो डालू तो कहू। इतना कह कर कुमार ने भी जल से अपना चेहरा साफ किया और रूमाल से पोछने के बाद कमलिनी की तरफ देख के कहा- अब तुम ही बताओ कि मैं कौन हूँ कम-अरे यह क्या हुआ। तुम तो बेशक बडे कुमार हो मगर तुमने मेरे साथ ऐसा क्यों किया? तुम्हें जरा भी धर्म का विचार न हुआ ! बताओ अब मैं किस लायक रह गई और क्या कर सकती हू? लोगों को कैसे अपना मुह दिखाऊँगी और इस दुनिया में क्योंकर रहूगी? इन्द्र-जिसने ऐसा किया वह बेशक मारे जाने लायक है। मैं उसे कभी न छोडूगा क्योंकि ऐसा होने से मेरा भी धर्म नष्ट हुआ और इस बदनामी को मैं कभी बर्दाश्त नहीं कर सकता मगर यह तो बताओ कि आज का सामान देखकर तुम्हारे दिल में किसी प्रकार का शक पैदा न हुआ? कम-क्योंकर शक पैदा हो सकता था जब कि आप ही की तरह मेरे लिए भी सोहागरात' आज ही तै की गई थी । मै नहीं कह सकती कि दूसरी तरफ का क्या हाल है ! ताज्जुब नहीं कि जिस तरह मै धोखे में डाली गई उसोतरह किशेरी के साथ भी बेईमानी की गई हो और आपके बदले में किशोरी मेरे पति के पास पहुचाई गई हो । ओ हो । कमलिनी की इस बात ने तो कुमार की रही सही अक्ल भी खो दी जिस बात का अब तक कुमार के दिल में ध्यान भी न था उसे समझा कर तो कमलिनी ने अनर्थ कर दिया। व्याह हो जाने पर भी किशोरी किसी दूसरे मर्द के पास भेजी जाय क्या इस बात को कुमार बर्दाश्त कर सकते थे? कभी नहीं सुनने के साथ ही मारे क्रोध के उनका शरीर कापने लगा और वे धबडा कर कमलिनी से बोले यह तो तुमने ठीक कहा ताज्जुब नहीं कि ऐसा हुआ हो। लेकिन अगर ऐसा हुआ होगा तो में उन दोनों को इस दुनिया से उठा दूग! इतना कहकर कुमार ने अपनी तलवार उठा ली जो गद्दी पर पड़ी हुई थी और कमरे के बाहर जाने लगे। उस समय कमलिनी ने कुमार का हाथ पकड लिया और कहा 'कृपानिधान, जरा मेरी एक बात का जवाब दे दीजिये तो यहाँ से जाइये ॥ इन्द्र-कहो। कम-आपका धर्म नष्ट हुआ खैर कोई चिन्ता नहीं क्योंकि धर्मशास्त्र में मर्दो के लिए कोई कडी पाबन्दी नहीं लगाई गई है. मगर औरतों को तो किसी लायक नहीं छोडा हे। आपके लिए तो प्रायश्चित्त है मगर मेरे लिए तो कोई प्रायश्चिन भी नहीं जिसे कर मैं सुधर जाऊँगी इतना जानकर भी मेरे धर्म नष्ट होने पर आपको उतना रज या क्रोध नहीं हुआ ? चन्द्रकान्ता सन्तति भाग २२