पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९७०

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जितना यह सोचकर हुआ कि किशोरी की भी ऐसी ही दशा होगी ! ऐसा क्यों ? क्या मेरा पति कमजोर और नामर्द है ? क्या वह भी आपकी ही तरह क्रोध में न आया होगा? क्या इसी तरह वह भी तलवार लेकर मेरी और आपकी खोज में न निकला होगा आप जल्दी क्यों करते हैं, वह खुद यहा आता होगा क्योंकि वह आपसे ज्यादे क्रोधी है मै तो खुद उसके सामने अपनी गर्दन झुका दूगी ॥ कुमार को क्रोध पर क्रोध रज पर रज और अफसोस पर अफसोस होता ही जाता था। कमलिनी की इस आखिरी बात ने कुमार के दिल में दूसरा ही रग पैदा कर दिया। उन्होंने घवडाकर एक लम्बी सास ली और ऊपर की तरफ मुह करके कहा विधाता तूने यह क्या किया? मैंने कौन सा ऐसा पाप किया था जिसके बदल में इस खुशी को ऐसे रज के साथ तूने बदल दिया अब मै क्या करें? क्या अपने हाथ से अपना गला काटकर निश्चिन्त हो जाऊँ? मुझ पर आत्मघात का दोष तो नहीं लगाया जायगा !!" इन्द्रजीतसिह ने इतना ही कहा था कि कमरे का दर्वाजा जिसे कुमार बन्द समझते थे खुला और किशोरी तथा कमला अन्दर आती हुई दिखाई पडी। कुमार ने समझा कि येशक किशोरी इसी ढग का उलाहना लेकर आई होगी मगर उन दोनों के चेहरे पर हँसी देख कर कुमार को ताज्जुब हुआ और यह देखकर ताज्जुब और भी बढ गया कि किशोरी ओर कमला को देखकर कमलिनी खिलखिला कर हँस पडी और किशोरी से बोली- हो बहिन आज मैंने तुम्हारे पति का अपना बना लिया "इसके जवाब में किशोरी योली तुमने पहिले ही अपना बना लिया था, आज की बात ही क्या है ।

  • वाईसवा भाग समाप्त

चन्द्रकान्ता सन्तति तेईसवां भाग पहिला बयान सोहागरात के दिन कुँअर इन्दजीतसिह जैसे तरदुद और फेर में पड गये थेटीक वैसा तो नहीं मगर करीब करीब उसी ढग का बखेडा कुंअर आनन्दसिह के साथ भी मचा अर्थात उसी दिन रात के समय जब आनन्दसिह और कामिनी का एक कमरे में मेल हुआ तो आनन्दसिह छेडछाड करके कामिनी की शर्म को तोड़ने और कुछ बातचीत करने के लिए उद्योग करने लगे मगर लज्जा और सकोच के बोझ से कामिनी हर तरह दबी जाती थी। आखिर थोड़ी देर की मेहनत और चालाकी तथा बुद्धिमानी की बदौलत आनन्दसिह ने अपना मतलब निकाल ही लिया और कामिनी भी जो बहुत दिनों से दिल के खजाने में आनन्दसिह की मुहब्बत को हिफाजत के साथ छिपाये हुए थी लज्जा और डर को बिदाई का बीडा देव कुमार से बातचीत करने लगी। जब रात लगभग दो घण्टे के बाकी रह गई तो कामिनी जाग पडी और घबराहट के साथ चारो तरफ दख के सोचने लगी कि कहीं सवेरा तो नहीं हो गया क्योंकि कमरे के सभी दर्वाजे बन्द रहने के कारण आसमान दिखाई नहीं देता था। उस समय आनन्दसिह गहरी नींद में सो रहे थे और उनक धुर्राटे की आवाज से मालूम होता था कि वे अभी दा तीन घटे तक विना जगाये नहीं जाग सकते अस्तु कामिनी अपनी जगह से उठी और कमरे की कई छोटी छोटी खिडकियों (छोटे दर्याजों में सजोमकान के पिछली तरफ पडतीर्थी एक खिडकी खोल कर आसमान की तरफ देखने लगी। इस तरफ देवकीनन्दन खत्री समग्र