पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९७२

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और इस बात को क्यों नहीं साचते कि कामिनी को आपके पास आने की जरूरत ही क्या थी ! आनन्द-(वेचैनी के साथ) पहिले तुम अपना चेहरा धो डाला तो में तुमसे वात करु 'तुम मुझे जरूर धोखा दे रही हो और अपनी सूरत लाडिली की सी बना कर मेरी जान सासत में डाल रही हो ! मैं अभी तक तुम्हें कामिनी समझ रहा था और समझता हू। कामिनी-(ताज्जुब से आनन्दसिंह की सूरत देख कर) आपकी यातें तो कुछ विचित्र ढग की हो रही हैं। जब आप मुझे कामिनी समझते है तो अपने को भी जरूर आनन्दसिह समझते होंगे ! आनन्द-इसमें शक ही क्या है ? क्या मैं आनन्दसिह नहीं है? कामिनी-(अफसोस से हाथ मल कर ) हे परमेश्वर ! आज इनको क्या हो गया है ।। आनन्द बस अब तुम अपना चेहराधो डालो तो मुझसे बातें करो तुम नहीं जानती कि इस समय मेरे दिल की कैसी अवस्था है। कामिनी-ठहरिये ठहरिये मैं बाहर जाकर सभों को इस बात की खबर कर देती हू कि आपका कुछ हो गया है। मुझ आपके पास बैठते डर लगता है। हे परमेश्वर ! आनन्द-तुम नाहक मेरी जान का दुखद रही हो । पास ही तो पानी पडा है अपना चेहरा क्यों नहीं धो डालती मुझे ऐसी दिल्लगी अच्छी नहीं मालूम होती, खैर अब यहुत हो गया तुम उठो । कामिनी-मेरे चेहरे में क्या लगा है जो धो डालू ? आप ही क्यों नहीं अपना चेहरा धा डालते! क्या मुह में पानी लगा कर मैं लाडिली से काई दूसरी ही औरत बन जाऊगी? या आप मुँह धोकरछोटे कुमार बन जायगे? आनन्द-(बेचैनी से विगड कर ) बस बस अब मैं बरदाश्त नहीं कर सकता और न ज्यादे दर तक ऐसी दिल्लगी सह सकता हू: में हुक्म देता है कि तुम तुरन्त अपना चेहरा धो डालो नहीं तो तुम्हार साथ जबर्दस्ती की जायगी फिर पीछे दोष न देना ! यह सुनते ही कामिनी घबडाकर उठ खड़ी हुई और यह कहती हुई कि आज भोर ही भोर ऐसी दुर्दशा में फंसी हूँन मालूम दिन कैसा बीतेगा उस चौकी के पास चली गई जिस पर गगाजमनी लोटा जल से भरा हुआ रक्खा था और पास ही में एक बड़ा सा आफताबा भी था। पानी से अपना चेहरा साफ किया और दो चार कुल्ला भी करने के बाद रूमाल से मुँह पोंछ आनन्दसिह से बोली कहिये मैं वही हूँ कि यदल गई? कामिनी के साथ ही साथ आनन्दसिह भी बिछावन पर से उठ कर वहॉ तक चले आये थे जहाँ पानी और आफताबा रक्या हुआ था। जब कामिनी ने मुँह धोकर उनकी तरफ देखा तो कुमार के ताज्जुब का कोई हद्द न रहा और वह पत्थर की मूरत बन कर एकटक उसकी तरफ देखते खड़े रह गये। इस समय खिड़कियों में से आसमान पर सुबह की सुफेदी फैली हुई दिखाई दे रही थी और कमरे में भी रोशनी की कमी न थी। कामिनी-(कुछ चिढी हुई आवाज में ) कहिये कहिये क्या मैं मुँह धोने से कुछ बदल गई? आप बोलते क्यों नहीं ? आनन्द-(एक लम्बी सॉस लेकर ) अफसोस !तुम्हारे घूघट ने मुझे धोखा दिया। अगर मिलाप के पहिले तुम्हारी सूरत देख लेता तो धर्म नष्ट क्यों होता । कामिनी-(जिसे अब हम लाडिली लिखेंगे क्योंकि वह वास्तव में लाडिली ही है) फिर भी आप उसी ढग की बातें कर रहे हैं और अभी तक अपने को छोटे कुमार समझते है ! इतना हिलने डोलने पर भी आपके दिमाग से स्वप्न का गुबार न निकला। (कमरे में लटकते हुए एक बडे आईने की तरफ उगली से इशारा करके ) अब आप उसमें अपना चेहरा देख लीजिये तो मुझसे बातें कीजिये । कुँअर आनन्दसिह भी यही चाहते थे. अस्तु वे उस आईने के सामने चले गये और बडे गौर से अपनी सूरत देखने लगे। लाडिली भी उनके साथ ही साथ उस आईने के पास चली गई और जब वे ताज्जुब के साथ आईने में अपना चेहरा देख रहे थे तो बोली 'कहिये अब भी आप अपने को छोटे कुमार ही समझते हैं या और कोई ? क्रोध के साथ ही साथ शर्मिन्दगी ने भी आनन्दसिह पर अपना कब्जा कर लिया और वे घबडा कर अपनी पोशाक पर ध्यान देने लगे मगर उसमें किसी तरह की खराबी न पाकर उन्होंने पुन लाडिली की तरफ देखा और कहा यह क्या मामला है ? मेरी सूरत किसने बदली? लाडिली-(ताज्जुब और घबराहट के ढग पर ) क्या आप अपनी सूरत बदली हुई समझते हैं ? आनन्द-बेशक" लासिली ( अफसोस के साथ हाथ मल कर ) अफसोस अगर यह बात ठीक है तो बड़ा ही गजब हुआ ! आनन्द- जरूर ऐसा ही है, मैं अभी अपना चेहरा धोता हूँ। देवकीनन्दन खत्री समग्र