पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९७३

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. इतना कह कर कुँअर आनन्दसिह उस चौकी के पास चले गये जिस पर पानी रक्खा हुआ था और अपना चेहरा धाने लगे। पानी पड़ते ही हाथ पर रग उतर आया जिस पर निगाह पडते ही लाडिली चौकी और रज के साथ बोली बशक चेहरा रगा हुआ है । हाय बडा ही गजब हो गया मैं यमौत मारी गई। मेरा धर्म नष्ट हुआ। अब मै अपने पति क सामने किस मुँह से जाऊँगी और अपनी हमजोलियों की बातों का क्या जवाब दूंगी । औरतों के लिये यह बडे ही शर्म की बात है नहीं नहीं, बल्कि औरतों के लिए यह घोर पातक है कि पराये मर्द का सग करें। सच तो यो है कि पराये मर्द का शरीर छू जाने से भी प्रायश्चित लगता है और बात का ता कहना ही क्या है । हाय मे बर्बाद हो गई और कहीं की भीन रही। इसमें शक कोई नहीं कि आफ्न जान बूझ कर मुझ मिट्टी में मिला दिया । आनन्द-(अच्छी तरह चेहरा धोने के बाद रूमाल समुह पोछ कर) क्या कहा? क्या जान बूझ कर मैने तुम्हारा धर्म नष्ट किया। लाडिली-बेशक एसा ही है, मैं इस बात की दुहाई दूंगी और लोगों से इन्साफ चाहूगी। आनन्द-क्या मेरा धर्म नष्ट नहीं हुआ लाडिली-मर्दा के धर्म का क्या कहना है अ उसका बिगडना ही क्या जो दस पन्द्रह व्याह से भी ज्यादे कर सकते है बिर्यादी तो औरतों के लिय है। इसमें कोई शक नहीं कि आपन जान बूझ कर मेरा धर्म नष्ट किया जब आप छाटे कुमार ही थे तो आपका मेरे पास से उठ जाना चाहिये था या मेरे पास बैठना ही मुनासिब न था। आनन्द-मै कसम खा कर कह सकता हूं कि मैंने तुम्हारी सूरत बूंघट के सबसे अच्छी तरह नहीं देखी एक दफे ऐंचातानी में निगाह पड़ भी गई थी तो तुम्हें कामिनी ही समझा था और इसके लिए भी मैं कसम खाता हूं कि मैंने तुम्हें धोखा देने के लिए जान बूझ कर अपनी सूरत नहीं रगी है बल्कि मुझ इस बात की खबर भी नहीं कि मेरी सूरत किसने रगी या क्या हुआ। लाडिली-अगर आपका यह कहना ठीक है तो समझ लीजिये कि और भी गजब हो गया मेरे साथ ही साथ कामिनी भी वर्वाद हा गइ हागी। जिस धर्मात्मा ने धोखा देकर मरा सग आपके साथ करा दिया है उसन कामिनी को भी जो आपके साथ व्याही गई है जरूर धोखा दकर मेरे पति के पलग पर सुला दिया होगा । यह एक ऐसी बात थी जिस सुनत ही आनन्दसिह का रग वदल गया। रज और अफसोस की जगह क्रोध न अपना दखल जमा लिया औरा कुछ सुस्त तथा ठडी रगों में बमोके हरारत पैदा हो गई जिससे बदन कॉपने लगा और उन्होंने लाल आँखें करक लाडिली की तरफ देख क कहा- क्या कहा? तुम्हार पति के पलग पर कामिनी । यह किसकी मजाल है कि लाडिली-ठहरिये ठहरिय आप गुस्स में नआइये। जिस तरह आप अपनी और कामिनी की इज्जत समझते हैं उसी तरह मरी और मरे पाते की इज्जत पर भी आपको ध्यान देना चाहिय। मेरी बर्बादी पर तो आपको गुस्सा न आया ओर कामिनी का भी मेरा ही सा हाल सुन कर आप जोश में आकर उछल पडे अपने आपे से बाहर हो गये और आपको बदला लेने की धुन सवार हो गई ! सच है दुनिया में किसी विरले ही महात्मा को हमदर्दी और इन्साफ का ध्यान रहता है दूसरे पर जा कुछ बीती हे उसका अन्दाजा किसी का तब तक नहीं लग सकता जब तक उस पर भी वैसी ही न वीते। जिसने कभी एक उपवास भी नहीं किया है वह अकाल के मारे भूखे गरीबों पर उचित और सच्ची हमदर्दी नही कर सकता यों उनके उपकार के लिए भले ही बहुत कुछ जोश दिखाये और कुछ कर भी बैठे। ताज्जुब नहीं कि हमारे बुजुर्ग और बडे लाग इसी खयाल से बहुत से व्रत चला गये हों और इससे उनका मतलब यह भी हो कि स्वय भूखे रह कर देख लो तब भूखों की कदर कर सकोगे। दूसरे के गले पर छुरी चला देना कोई बड़ी बात नहीं है मगर अपने गल पर सूई से भी निशान नहीं किया जाता जो दूसरे की बहू बटियों को झाका करते है वे अपनी बहू बेटियों का झाका जाना सहन नहीं कर सकते। बस इसी से समझ लीजिय कि मेरी बर्वादी पर आपको अगर कुछ खयाल हुआ तो केवल इतना ही कि कसम खा कर अफसोस करने लगे और सोचने लगे कि मेरे दिल से किसी तरह इस बात का रज निकल जाय मगर कामिनी का भी मरे ही ऐसा हाल सुन कर म्यान के बाहर हो गये | क्या यही इन्साफ है और यही हमदर्दी है ? इसी दिल को लेकर आप राजा बनेंगे और राज-काज करेंगे । लाडिली की जोश भरी बातें सुन कर आनन्दसिह सहम गये और शर्म ने उनकी गर्दन झुका दी। वह सचेचने लगे कि क्या करें और इसकी बातों का क्या जबाबदूं। इसी समय कमरे का दर्वाजा खुला (जो शायद धोखे में खुला रह गया होगा ) और इन्द्रदव की लडकी इन्दिरा का साथ लिये हुए कामिनी आती दिखाई पड़ी। लाडिली-लीजिए. कामिनी वहिन भी आ पहुची ताज्जुब नही कि ये भी अपना हाल कहने के लिए आई हों (कामिनी से ) लो बहिन आज हम तुम्हारे बराबर हो गए। कामिनी-बराबर नहीं, बल्कि बढ़ के ! चन्द्रकान्ता सन्तति भाग २३ ९६७