पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९७५

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चन्द्र-शाबाश! शाबाश। वीरेन्द-बेशक किशोरी ने बड़े होसले की और लासानी बात सोची । चपला-बेशक यह साधारण बात नहीं है. यह बड़े कलेज वाली औरतों का काम है और इससे बढ कर किशोरी कुछ कर ही नहीं सकती थी। गोपाल-मैने जब कमला की जुबानी यह बात सुनी तो दग हो गया और मन में किशोरी की तारीफ करने लगा। सच तो यों है कि यह बात मेरे दिल में भी जन गई। अस्तु मैंने कमला से वादा तो कर दिया कि ऐसा ही होगा' मगर तरदुद में पड गया कि यह काम क्योंकर पूरा होगा क्योंकि यह बात बड़ी ही कठिन बल्कि असम्भव थी कि इन्दजीतसिह और कमलिनी इस राय को मजूर करें। इसके अतिरिक्त यह भी उम्मीद नहीं हो सकती थी कि हमारे महाराज इस बात को स्वीकार कर लेंगे। भैरो-वेशक यह कठिन काम था. इन्द्रजीतसिह इस बात को कभी मजूर न करते। गोपाल-कई दिन के सोच विचार के बाद मैंने और भैरोसिह ने मिल कर एक तर्फीव निकाल ली और किसी न किसी तरह कमलिनी और लाडिली को इन्द्रानी और आनन्दी बना कर दोनों की शादी इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिह के साथ करा दी। उन दिनों कमलिनी के पिता बलभद्रसिहजी भूतनाथ की मदद से छूट कर यहा (अर्थात बगुले वाले तिलिस्मी मकान में ) आ चुके थे अस्तु मैं तिलिस्म के अन्दर ही अन्दर यहा आया और बलभद्रसिहजी को कन्यादान करने के लिए समझा बुझा कर जमानिया ले गया *। उस दिन भूतनाथ बहुत परेशान हुआ था और भैरोसिह मेरे साथ था। हम लोग पहले जब इस मकान में आये थे तो भूतनाथ और बलभद्रसिहजी के नाम की एक एक चीठी दोनों की चारपाई पर रख के चले गये थे। बलभद्रसिहजी की चीठी में उनकी दिलजमई के लिए एक अगूठी भी रक्खी थी जो उन्होंने व्याह के पहिले मुझे बतौर सगुन के दी थी। इसके बाद दूसरे दिन फिर पहुंचे और भूतनाथ को अपना पूरा पूरा परिचर देकर बलभद्रसिहजी को ले गये। उनके जाने का सबब भूतनाथ के ठीक ठीक कह दिया था मगर साथ ही इसके इस बात की भी ताकीद कर दी थी कि यह हाल किसी को मालूम न होवे । इतना कहते कहते गोपालसिह कुछ देर के लिए रुके और फिर इस तरह कहने लगे पहिले तो मुझे इस बात की चिन्ता थी कि बलभदसिह मेरा कहना मानेंगे या नहीं मगर उन्होंने इस बात को बड़ी खुशी से मजूर कर लिया। अपनी लडकियों से मिल कर वे बहुत ही प्रसन्न हुए और हम लोगों पर जो कुछ आफतें बीत चुकी थीं उन्हें सुन सुना कर अफसोस करते रहे, फिर अपनी बीती सुना कर प्रसवत्ता पूर्वक हम लोगों के काम में शरीक हुए अर्थात् हंसी खुशी के साथ उन्होंने कमलिनी और लाडिली का कन्यादान कर दियाँ *। इस काम में भैरोसिह को भी कम तरदुद नहीं उठाना पड़ा बल्कि दोनों कुमार इनसे रञ्ज भी हो गये थ क्योंकि इनकी जुबानी असल बातों का पता उन्हें नहीं लगता था, अस्तु शादी हो जाने के बाद इस बात का बन्दोबस्त किया गया कि इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिह इस अनूठे व्याह को भूल जायें तथा इन्द्रानी और आनन्दी से मिलने की उम्मीद न रखें । इसके बाद राजा गोपालसिह ने और भी बहुत सा हाल बयान किया जो हम सन्तति के अट्ठारहवें भाग में लिख आये है और सब बातें सुन कर अन्त में चन्द्रकान्ता ने कहा 'खैर जो हुआ अच्छा ही हुआ. हम लोगों के लिए तो जैसे किशोरी और कामिनी है वैसे ही कमलिनी और लाडिली हैं, मगर किशोरी के नाना को यदि इस बात का कुछ रज हो तो ताज्जुव नहीं।' वीरेन्द्र-पिताजी भी यही कहते थे। मगर इसमें कोई शक नहीं कि किशोरी ने परले सिरे की हिम्मत दिखलाई । गोपाल-साथ ही इसके यह भी समझ लीजिये कि कमलिनी ने भी इस बात को सहज ही में स्वीकार नहीं कर लिया, इसके लिए भी हम लोगों को बहुत कुछ उद्योग करना पड़ा। बात यह है कि कमलिनी भी किशोरी को जान से ज्यादे चाहती और मानती है। चन्द्र-मगर मुझे इस बात का अफसोस जरूर है कि इन दोनों की शादी में किसी तरह की तैयारी नहीं की गई और न कुछ धूमधाम ही हुई। इसके बाद बहुत देर तक इन सभों में बातचीत होती रही। 'देखिये चन्द्रकान्ता सन्तति अट्ठारहवाँ भाग, आठवा वयान ।

  • देखिये अट्ठारहवा भाग बारहवा ययान ।

चन्द्रकान्ता सन्तति भाग २३ ९६९