पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९७६

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CY तीसरा बयान अव हम कुँअर इन्द्रजीतसिह की तरफ चलते ओर दखते कि उधर क्या हो रहा है? किशारी और कमलिनी की बातचीत सुन कर कुँअर इन्द्रजीतसिह से रहा न गया और उन्होंने चेचैनी के साथ उन दोनों की तरफ देखकर कहा क्या तुम लोगों ने मुझे सताने ओर दुख देन के लिए कसम ही खा ली है? क्यों मेरे दिल में होल पैदा कर रही हा? असल बात क्यों नहीं बताती । किशोरी- (मुस्कराती हुई ) यद्यपि मुझे आपस शर्म करनी चाहिए मगर कमला और कमलिनी बहिन ने मुझे येहया वन दिया तिस पर आज की दिल्लगी मुझे हसाते हसाते वेहाल कर रही है। आप विगडे क्यों जाते हैं। ठहरिये, ठहरिये, जल्दी न कीजिये ओर समझ लीजिये कि मेरी शादी आपके साथ नहीं हुई बल्कि कमलिनी की शादी आपके साथ हुई है। कुमार सो केस हा सकता है । और मैं क्योंकर ऐसी अनहोनी यात मान लूँ । कमलिनी-अव आपकी हालत बहुत ही खराब हो गई क्या कहू, मै तो आपको अभी ओर छकाती मगर दया आती हे इसलिए छोड देती है। इसमें काई शक नहीं कि मैंने आपसे दिल्लगी की है मगर इसके लिए मैं आपसे इजाजत ले चुकी हू । ( अपनी तर्जनी उगली की अगूटी दिखाकर ) आप इसे पहिचानते हैं ! कुमार- हा हा मैं इस अगूढी को खूब पहिचानता हूँ, तिलिस्म के अन्दर यह अगूठी मैने इन्द्रानी को दी थी, मगर अफसास। 11 कमलिनी-अफसोस न कीजिए आपकी इन्द्रानी मरी नहीं बल्कि जीती जागती आपके सामने खड़ी है। कमलिनी की इस आखिरी बात ने कुमार क दिल से आश्चर्य और दुख का धोकर साफ कर दिया और उन्होंने खुशी-खुशी कमलिनी और किशोरी का हाथ पकड कर कहा क्या यह सच है ? किशोरी-जी हा सच है। कुमार- और जिन दानों को मैन मरी हुई देखा था वे कौन थीं? किशोरी-वे वास्तव में माधवी और मायारानी थीं जो तिलिस्म के अन्दर ही अपनी यदकारियों का फल भोग कर मर चुकी थीं। आपके दिल से उस शादी का खयाल उठा देने के लिए ही उनकी लाशें इन्द्रानी और आनन्दी बना कर दिखा दी गई थीं मगर वास्तव में इन्द्रानी यही मौजूद है और आनन्दी लाडिली थी जो आनन्दसिह के साथ व्याही गई थी। इस समय उधर भी कुछ ऐसा ही रग मचा हुआ है। कुमार--तुम्होरी बातों ने इस समय मुझे प्रसन्न कर दिया। विशेष प्रसन्नता तो इस बात से होती है कि तुम खुले दिल से इन बातों को बयान कर रही हो और कमलिनी में तथा तुममें पूरे दर्जे की मुहब्बत मालूम होती है। ईश्वर इस मुहब्बत को वरावर इसी तरह बनाए रहे। (कमलिनी से ) मगर तुमने मुझे बड़ा ही धोखा दिया एसी दिल्लगी भी कभी किसी ने नहीं सुनी होगी । आखिर ऐसा किया ही क्यों । कमलिनी-अब क्या सब बातें खडे खडे ही खतम होंगी और बैठने की इजाजत न दी जायगी। कुमार क्यों नहीं अब बैठकर हँसी दिल्लगी करने और खुशी मनाने के सिवाय और हम लोगों को करना ही क्या है । इतना कह कर कुँअर इन्द्रजीतसिह गद्दी पर बैठ गए और हाथ पकड कर किशोरी और कमलिनी को अपने दोनों बगल में बैठा लिया। कमला आज्ञा पाकर बैठा ही चाहती थी कि दर्वाजे पर ताली रजने की आवाज आई जिसे सुनते ही वह याहर चली गई और तुरन्त लोट कर बोली पहरे वाली लोडी कहती है कि भैरोसिह बाहर खडे है।' कुमार-(खुश होकर) हा-हा, उन्हें जल्द ले आओ इन हजरत ने मेरे साथ क्या कम दिल्लगी की है? अब तो मैसम यातें समझ गया। भला आज उन्हें इत्तिला कराके मेरे पास आने का दिन तो नसीब हुआ कुमार की बातें सुन कर कमला पुन बाहर चली गई और कमलिनी तथा किशोरी कुमार के बगल से कुछ हटकर। वेट गई इतने ही में भेरोसिह भी आ पहुचे । कुमार-आइए आइए आपने भी मुझे बहुत छकाया हे पर क्या चिन्ता है. समय मिलने पर समझ लुगा भैरो-( हस कर ) जी कुछ किया (किशोरी की तरफ बता कर) इन्होंने किया मेरा कोई कसूर नहीं । कुमार-खैर जो कुछ हुआ सो हुआ अब मुझ सच्चा सच्चा हाल तो सुना दो कि तिलिस्म के अन्दर इस तरह की रूखी फीकी शादी क्यों कराई गई और इस काम क अगुआ कौन महापुरुष है ? %3D देवकीनन्दन खत्री समग्र