पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९८०

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का नानक (करधनी को हाथ में लेकर) बहुत है, हम लोगों को घर तक पहुँचा देने के लिए काफी है, और वहाँ पहुचने पर किसी तरह की तकलीफ न रहेगी क्योंकि वहाँ मेरे पास खाने पीने की कभी नहीं है। रामदेई-तो क्या वहा चल कर इन बातों को भूल नानक—(वात काट कर) नहीं नहीं यह न समझना कि वहा पहुँच कर हम इन बातों को भूल जायगे और बेकार बैठे टुकर्ड तोडेगे बल्कि वहाँ पहुंच कर इस बात का बन्दोबस्त करेगे कि अपने दुश्मनों से बदला लिया जाय। रामदेई-हा मेरा भी यही इरादा है, क्योंकि मुझे तुम्हारे बाप की वेमुरोवती का बड़ा रज है जिसमें हम लोगों को दूध की मक्खी की तरह एक दम निकाल कर फेंक दिया और पिछली मुहब्बत का कुछ ख्याल न किया । शान्ता और हरनामसिह को पाकर ऐंठ गया और इस बात का कुछ भी ख्याल न किया कि आखिर नानक भी तो उसका ही लड़का है और वह ऐयारी भी जानता है।। नानक (जोश के साथ) बेशक यह उसकी बेईमानी और हरमजदगी है ! अगर वह चाहता तो हम लोगों को बचा सकता था। रामदेई-यचा लेना क्या, यह जो कुछ किया सब उसी ने तो किया। महाराज ने तो हुक्म दे ही दिया था कि भूतनाथ की इच्छानुसार इन दोनों के साथ बर्ताव किया जाय। नानक-बेशक ऐसा ही है ! उसी कम्बख्त ने हम लोगों के साथ एसा सलूक किया। मगर क्या चिन्ता है इसका बदला लिये विना मै कभी न छोडूगा । रामदेई-(ऑसू बहा कर) मगर तरी यातों पर मुझे विश्वास नहीं होता क्योंकि तेरा जोश थोड़ी ही देर का होता है। नानक-(क्रोध के साथ रामदेई के पैरों पर हाथ रख के) मै तुम्हारे चरणों की कसम खाकर कहता हूँ कि इसका बदला लिए बिना कभी न रहूगा । रामदेई-भला मै भी तो सुनू कि तुम क्या बदला लोगे? मेरे ख्याल से तो वह जान से मार दने लायक है। नानक ऐसा ही होगा ऐसा ही होगा | जो तुम कहती हो वही कचगा बल्कि उसक लडके हरनामसिह को भी यमलोक पहुंचाऊँगा । रामदेई-शाबाश मगर मेरा चित्त तब तक प्रसन्न न होगा जब तक शान्ता का सिर अपने तलवों से न रगडने पाऊँगी! नानक मैं उसका सिर भी काट कर तुम्हारे सामने लाऊगा और तब तुमसे आशीर्वाद'लूगा । रामदेई-शायाश, ईश्वर तेरा भला करें! मैं समझती हूं कि इन बातों के लिए तू एक दफे फिर कसम खा जिसमें मेरी पूरी दिलजमई हो जाय । नानक-(सूर्य की तरफ हाथ उठा कर) मैत्रिलोकीनाथ के सामने हाथ उठा कर कसम खाता है कि अपनी माँ की इच्छा पूरा करूंगा और जब नक ऐसा न कर लूगा अन्न न खाऊँगा। रामदेई-(नानक की पीठ पर हाथ फेर कर)वस बस, अब मैं प्रसन्न हो गई और मेरा आधा दुख जाता रहा। नानक-अच्छा तो फिर यहाँ से उठो। (हाथ का इशारा करके) किसी तरह उस गाँव में पहुंचना चाहिये फिर बन्दोबस्त होता रहेगा। दोनों उठे और एक गाँव की तरफ रवाना हुए जो वहाँ से दिखाई दे रहा था। पाँचवॉ बयान पाठक आपने सुना कि नानक ने क्या प्रण किया ? अस्तु अब यहाँ पर हम यह कह देना उचित समझते हैं कि नानक अपनी माँ को लिये हुए जव घर पहुंचा तो वहॉ उसने एक दिन के लिए भी आराम न किया। ऐयारी का बटुआ तैयार करने के बाद हर तरह का इन्तजाम करके और चार पाँच शागिर्दो और नौकरों को साथ ले के वह उसी दिन घर के बाहर निकला और चुनार की तरफ रवाना हुआ। जिस दिन कुअर इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिह की बारात निकलने वाली थी उस दिन वह चुनार की सरहद में मौजूद था। वारात की कैफियत उसने अपनी आँखों से देखी थी और इस बात की फिक्र में भी लगा हुआ था कि किसी तरह दो चार कैदियों को कैद से छुड़ाकर अपना साथी बना लेना चाहिये और मौका मिलने पर राजा गोपालसिह को भी इस दुनिया से उठा देना चाहिये। अब हम कुअर इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिह का हाल बयान करते है। देवकीनन्दन खत्री समग्र