पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९८२

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छठवां बयान नानक जय चुनारगढ की सरहद पर पहुंचा तब सोचने लगा कि दुश्मनों से क्योंकर बदला लेना चाहिये। वह पाच आदमियों को अपना शिकार समझे हुए था और उन्ही पाँचों को जान लेना का विचार करता था। एक तो राजा गापालसिह दूसरे इन्द्रदेव तीसरा भूतनाथ चौथा हरनामसिह और पाचवी शान्ता । यस ये ही पाच उसकी आखों में खटक रहे थे मगर इनमें से दो अर्थात् राजा गोपालसिह और इन्द्रदेव के पास फटकने की तो उसकी हिम्मत नहीं पडती थी और वह समझता था कि ये दोनों तिलिस्मी आदमी है इनके काम जादू की तरह हुआ करते है और इनमें लागों के दिल की बात समझ जाने की कुदरत है मगर बाकी तीनों को वह निरा शिकार ही समझता था और विश्वास करता था कि इन तीनों को किसी न किसी तरह फंसा लेंगे। अस्तु चुनारगढ की सरहद में आ पहुचने के बाद उसने गोपालसिह और इन्द्रदव का ख्याल तो छोड दिया और भूतनाथ की स्त्री और उसके लडके हरनामसिह की जान लेन के फेर में पड़ा। साथ ही इसके यह भी समझ लेना चाहिये कि नानक यहाँ अकेला नहीं आया था बल्कि समय पर मदद पहुचाने के लायक सात आठ आदमी और भी अपने साथ लाया था जिनमें से चार पाँच तो उसके शागिर्द ही थे। दोनों कुमारों की शादी में जिस तरह दूर दूर के मेहमान और तमाशबीन लोग आये थे उसी तरह साधु महात्मा तथा साधू वेषधारी पाखण्डी लोग भी बहुत से इकटठ हो गये थे जिन्हें सरकार की तरफ से खाने पीने को भरपूर मिलता था और इस लालच में पडे हुए उन लोगों ने अभी तक चुनारगढ का पीछा नहीं छोड़ा था तथा तिलिस्मी मकान के चारो तरफ तथा आस पास के जगलों में डेरा डाले पड़े हुए थे। नानक और उसके साथी लोग भी साधुओं ही के वेष में वहाँ पहुधे और उसी मडली में मिल जुल कर रहने लगे। नानक को यह बात मालूम थी कि भूतनाथ का डेरा तिलिस्मी इमारत के अन्दर है और वह वहाँ बड़ी कडी हिफाजत के साथ रहता है। इसलिए वह कभी कभी यह सोचता था कि मेरा काम सहज ही में नहीं हो जायगा बल्कि वह इसके लिए बड़ी भारी मेहनत करनी पड़ेगी। मगर वहा पहुचने के कुछ ही दिन बाद (जब शादी व्याह से सब कोई निश्चिन्त होकर तिलिस्मी इमारत में आ गए) उसने सुना और देखा कि महाराज की आज्ञानुसार भूतनाथ ने स्त्री और लड़के सहित तिलिस्मी इमारत के बाहर एक बहुत बडे और खूबसूरत खेमे में डेरा डाला है अतएव वह बहुत ही प्रसन्न हुआ और उसे विश्वास हो गया कि मैं अपना काम शीघ और सुभीते के साथ निकाल लगा। नानक ने और भी दो तीन रोज तक इन्तजार किया और इस बीच में यह भी जान लिया कि नूतनाथ के खेमे की कुछ विशेष हिफाजत नहीं होती और पहरे वगैरह का इन्तजाम भी साधारण सा ही है तथा उसके शागिर्द लोग भी आजकल मौजूद नहीं हैं। रात आधी से कुछ ज्यादा जा चुकी थी। यद्यपि चन्द्रदेव के दर्शन नहीं होते थे मगर आसमान साफ होने के कारण टुटपूंजिया तारागण अपनी नामवरी पैदा करने का उद्योग कर रहे और नानक जैसे बुद्धिमान लोगों से पूछ रहे थे कि यदि हम लोग इकट्ठे हो जाय तो क्या चन्द्रमा से चौगुनी और पाँचगुनी चमक दमक नहीं दिखा सकते तथा जवाब में यह भी सुना चाहते थे कि 'नि सन्देह ! ऐसे समय एक आदमी स्याह लबादा ओढे रहने पर भी लोगों की निगाहों से अपने को बचाता हुआ भूतनाथ के खेम की तरफ जा रहा है। पाठक समझ ही गए होंगे कि यह नानक है अस्तु जब वह खेमे के पास पहुचा तो अपने मतलव का सन्नाटा देख खड़ा हो गया और किसी के आने का इन्तजार करने लगा। थोड़ी ही देर में एक दूसरा आदमी भी उसके पास आया और दो चार सायत तक बातें करके चला गया। उस समय नानक जमीन पर लेट गया और धीरे धीरे खिसकता हुआ खेमे की कनात के पास जा पहुचा, तब उसे धीरे से उठा कर अन्दर चला गया। यहाँ उसने अपने कागुलामगर्दिशमें पाया मगर यहॉ बिल्कुल ही अन्धकार था, हॉ यह जरूर मालूम होता था कि आगे वाली कनात के अन्दर अर्थात् खेमे में कुछ रोशनी हो रही है। नानक फिर वहाँ लेट गया और पहिले की तरह यह दूसरी कनात भी उठा कर खेमे के अन्दर जान का विचार कर ही रहा था कि दाहिनी तरफ से कुछ खडखडाहट की आवाज मालूम पडी। वह चौका और उसी अधेरे में तीन चार कदम बाईं तरफ हटकर पुन कोई आवाज सुनने और उसे जाचने की नियत से ठहर गया। जब थोडी देर तक किसी तरह की आहट नहीं मालूम हुई तो पहिले की तरह जमीन पर लेट गया और कनात उठा अन्दर जाया ही चाहता था कि दाहिनी तरफ फिर किसी के पैर पटक-पटक कर चलने की आहट मालूम हुई । वह खडा हो गया और पुन चार पाच कदम पीछे की तरफ (बाई तरफ) हट गया मगर इसके बाद फिर किसी तरह की आहट मालूम न हुई। कुछ देर तक इन्तजार करने के बाद वह पुन जमीन पर लेट गया और कनात के अन्दर सिर डालकर देखने लगा। कोने की तरफ एक मामूली शमादान जल रहा था जिसकी मद्धिम रोशनी में दो देवकीनन्दन खत्री समग्रं