पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९८४

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भूतनाथ की स्त्री शान्ता का इन्हे बहुत बडा खयाल रहता और ये उसकी पिछली घटनाओं की याद करके उसकी पति-भक्ति की सराहना किया करती। इसमें कोई सन्देह नहीं कि इन्हें अपनी जिन्दगी मे दुखों के बडे बडे समुद्र पार करने पड़े थे परन्तु ईश्वर की कृपा से जब ये किनार लगीं तव इन्हें कल्पवृक्ष की छाया मिली और किसी बात की परवाह न रही। इस समय सध्या होने में घन्टे भर की देर है। सूर्य भगवान अस्ताचल की तरफ तेजी के साथ झुके चले जा रहे हैं और उनकी लाल लाल पिछली किरणों से बड़ी-बडी अटारिया तथा ऊचे ऊचे वृक्षों के ऊपरी हिस्सों पर ठहरा हुआ सुनहरा रग बहुत ही सोहावना मालूम पड़ता है। ऐसा जान पड़ता है मानों प्रकृति ने प्रसन्न होकर अपना गौरव बढाने के लिए अपने सहचरियाँ और सहायकों को सुनहरा ताज पहिरा दिया है। एसे समय में किशोरी कामिनी कमलिनी लाडिली और कमला अटारी पर एक सजे हुए वगले के अन्दर बैठी जालीदार खिडकियों से उस जगल,की शोभा देख रही हैं जो इस तिलिस्मी मकान से थोड़ी दूर पर है और साथ ही इसके मीठी बातें भी करती जाती हैं। कमलिनी--(किशोरी से) बहिन, एक दिन वह था कि हमें अपनी इच्छा के विरुद्ध ऐसे,बल्कि इससे भी बढ़ कर भयानक जगलों में घूमना पडता था और उस समय यह सोच कर डर मालूम पडता था कि कोई शेर इधर उधर से निकल कर हम पर हमला न करे, ओर एक आज का दिन है कि इस जगल की शोभा भली मालूम पडती है और इसमें : घूमने को जी चाहता है। किशोरी-ठीक है जो काम लाचारी के साथ करना पड़ता है वह चाहे अच्छा ही क्यों न हो परन्तु चित्त को बुरा लगता है, फिर भयानक तथा कठिन कामों का तो कहना ही क्या मुझे तो जगल में शेर और भेडियों का इतना खयाल न होता था जितना दुश्मनी का मगर वह समय और ही था जो ईश्वर न करे किसी दुश्मन को दिखे। उस समय हम लोगों की किस्मत विगडी हुई थी और अपने साथी लोग भी दुश्मन बन कर सताने के लिए तैयार हो जाते थे। (कमला की तरफ देख कर) मला तुम्हीं बताओ कि उस चमेलों छोकरी का मैने क्या बिगाडा था जिसने मुझे हर तरह से तबाह कर दिया ? अगर वह मेरी मुहब्बत का हाल मेरे पिता से न कह देती तो मुझ पर वैसी भयानक मुसीबत क्यों आ जाती? कमला-बेशक ऐसा ही है मगर उसने जैसी नमकहरामी की वैसी ही सजा पाई। मेरे हाथ के कोड *वह जन्म मर न भूलेगी। किशोरी-मगर इतना होने पर भी उसने मेरे पिता का ठीक ठीक भेद न बताया। कमला-बेशक वह बडी जिद्दी निकली मगर तुमने भी यह बडी लायकी दिखाई कि अन्त में उसे छोड देने का हुक्म दे दिया। अब भी वह जहा जायगी दुख ही भोगेगी। किशोरी-इसके अतिरिक्त उस जमाने में धनपति के भाई ने क्या मुझे कम तकलीफ दी थी जब मै नागर के यहॉ कैद थी। उस कम्बख्त की तो सूरत देखने से मेरा खून खुश्क हो जाता था ** | लाडिली-वही जिसे भूतनाथ ने जहन्नुम में पहुचा दिया ! मगर नागर इस मामले को बिल्कुल ही छिपा गई मायारानी से उसने कुछ भी न कहा और इसी में उसका भला भी था । किशोरी-(लाडिली से) बहिन तुम यों तो बड़ी नेक हो और तुम्हारा ध्यान भी धर्म विषयक कामों में विशेष रहता है मगर उन दिनों तुम्हें क्या हो गया था कि मायारानी के साथ बुरे कामों में अपना दिन बिताती थीं और हम लोगों की जान लेने के लिए तैयार रहती थीं? लाडिली-(लज्जा और उदासी के साथ) फिर तुमने वही चर्चा छेडी मैि कई दफे हाथजोड कर तुमसे कह चुकी हू कि उन बातों की याद दिला कर मुझे शर्मिन्दा न करो, दुख न दो मेरे मुह में बार बार स्याही न लगाओ। उन दिनों में पराधीन थी, मेरा कोई सहायक न था, मेरे लिए कोई और ठिकाना न था, और उस दुष्टा का साथ छोड़ कर मैं अपने को कहीं छिपा भी नहीं सकती थी और उरती थी कि वहा से निकल भागने पर कहीं मेरी इज्जत पर न आ बने ! मगर बहिन, तुम जान बूझ कर बार बार उन बातों की याद दिला कर मुझे सताती हो कहो बैठू या यहाँ से उठ जाऊँ?

  • देखिये पहिला भाग ग्यारहवें बयान का अन्त ।
    • देखिये आठवा भाग नौवा बयान ।

देवकीनन्दन खत्री समग्र ९७८