पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९८५

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Qyt किशोरी-अच्छा अच्छा जाने दो माफ करो मुझसे भूल हो गई मगर मेरा मतलब वह न था जा तुमने समझा है मै दो-चार बातें नानक के विषय में पूछा चाहती थी जिनका पता अभी तक नहीं लगा और जो भेद की तरह हम लोगों लाडिली-(चात काट कर) वे बातें भी तो मेरे लिए वैसी ही दुखदायी है। किशोरी-नहीं नहीं मै यह न पूछूगी कि तुमने नानक के साथ रामभोली बन कर क्या क्या किया बल्कि यह पूछूगी कि उस टीन के डिब्ये में क्या था जो नानक ने चुरा ला कर तुम्हें बजरे में दिया था? कूऍ में से हाथ कैसे निकला था ? नहर के किनारे वाले बगले में पहुच कर वह कोंकर फसा लिया गया? उस वगले में वह तस्वीर कैसी थी? असली समभोली कहा गई और क्या हुई? रोहतासगढ तहखाने के अन्दर तुम्हारी तस्वीर किसने लटकाई और तुम्हें वहा का भेद कैसे मालूम हुआ था इत्यादि बातें मै कई दफे कई तरह से सुन चुकी हू मगर उनका असल भेद अभी तक कुछ मालूम न हुआ । लाडिली-हा इन सब बातों का जवाब देने के लिए मैं तैयार हू। तुम जानती हो और अच्छी तरह से सुन और समझ चुकी हो कि वह तिलिस्मी बाग तरह तरह के अजायबातों से भरा हुआ है, विशेष नहीं तो भी वहा का बहुत कुछ हाल मायारानी और दारोगा को मालूम था। वहा अथवा उसकी सरहदले जाकर किसी को डराने धमकाने या तकलीफ देने के लिए कोई ताज्जुब का तमाशा दिखाना कौन बडी बात थी। किशोरी-हॉ सो तो ठीक ही है। लाडिली-और फिर नानक जान बूझ कर काम निकालने के लिए ही तो गिरफ्तार किया गया था। इसके अतिरिक्त तुम यह भी सुन चुकी हो कि दारोगा के बगले या अजायबघर से खास बाग तक नीचे नीचे रास्ता बना हुआ है ऐसी अवस्था में नानक के साथ वैसा बर्ताव करना कौन बड़ी बात ही थी! किशोरी-वेशक ऐसा ही है अच्छा उस डिब्बे वगैरह का भेद तो बताओ? लाडिली-उस गठरी में जो कलमदान था वह तो हमारे विशेष काम का न था मगर उस डिब्बे में वही इन्दिरा वाला कलमदान था जिसके लिय दारोगा साहब वेताच हो रहे थे और चाहते थे कि वह किसी तरह पुन उनके कब्जे में आ जाय। असल में उसी कलमदान के लिये मुझे सभोली बनना पड़ा था। दारोगा ने असली रामभोली को गिरफ्तार करवा के इस तरह मरवा डाला कि किसी को कानोंकान खबर भी न हुई और मुझे रामभोली बन कर यह काम निकालने की आज्ञा दी। लाचार में रामभोली बन कर नानक से मिली और उसे अपने वश में करने के बाद इन्द्रदेवजी के मकान में से वह कलमदान तथा उसके साथ और भी कई तरह के कागज नानक की मार्फत चुरा मॅगवाया। मुझ तो उस कलमदान की सूरत देखने से डर मालूम होता था क्योंकि मै जानती थी कि वह कलमदान हमलोगों के खून का प्यासा और दारोगा के बड़े बड़े भेदों से भरा हुआ है। इसके अतिरिक्त उस पर इन्दिरा की बचपन की तस्वीर भी बनी हुई थी और सुन्दर अक्षरों में इन्दिरा का नाम लिखा हुआ था जिसके विषय में मैं उन दिनों जानती थी कि वे मा बेटी बडी बेदर्दी के साथ मारी गई। यही सब सबब था कि उस कलमदान की सूरत देखते ही मुझे तरह तरह की बातें याद आ गई मेरा कलेजा दहला गया और मैं डर के मरे कॉपने लगी। खैर जब मै नानक को लिये हुए जमानिया की सरहद में पहुची तो उसे धनपति के हवाल करके खास याग में चली गई, अपना दुपट्टा नहर में फेंकती गई। दूसरीराह से उस तिलिस्मी कूएँ के नीचे पहुच कर पानी का प्याला और बनावटी हाथ निकालने बाद मायारानी से जा मिली और फिर बचा हुआ काम धनपति और दारोगा ने पूरा किया। दारोगा वाले वगले में जो तस्वीर रक्खी हुई थी वह केवल नानक को धोखा देने के लिए थी. उसका और कोई मतलब न था और रोहतासगढ के तहखाने में जो मेरी तस्वीर*आप लोगों ने देखी थी वह वास्तव में दिग्विजयसिह के बूआ ने मेरे सुवीते के लिए लटकाई थी और तहखाने की बहुत सी बातें समझा कर बता दिया था कि 'जहा तू अपनी तस्वीर देखियो समझ लीजियो कि उसके फलानी तरफ फलानी बात है' इत्यादि। बस वह तस्वीर इतने ही काम के लिए लटकाई गई थी। वह चुढिया वडी नेक थी, और उस तहखाने का हाल यनिस्बत दिग्विजयसिह के बहुत ज्यादे जानती थी मै पहिले भी महाराज के सामने बयान कर चुकी हू कि उसने मेरी मदद की थी।यह कईदफे मेरे डेरे पर आई थी और तरह तरह की बातें समझा गई थी। मगर न तो दिग्विजयसिह उसकी कदर करता था और न वही दिग्विजयसिह को चाहती थी। इसके अतिरिक्त यह भी कह देना आवश्यक है कि मैतो उस बुढिया की मदद से तहखाने के अन्दर चली गई थी मगर कुन्दन अर्थात् धनपति ने वहा जो कुछ किया वह मायारानी के दारोगा की बदौलत था। घर लौटने पर मुझे मालूम हुआ कि दारागा वहा कई दफ छिप कर गया और कुन्द से मिला था मगर उसे भरे बारे में कुछ 'देखिये सन्तति चौथा भाग नानक का बयान ।

  • देखिये सन्तति का चौथा भाग दसवा बयान।

चन्द्रकान्ता सन्तति भाग २३ ९७९