पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९८७

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कर देखने वालों की नजरों से गायब हो गए। कमलिनी किशारी और कामिनी वगैरह इस घटना को देखकर घबरा गयी. सनों की इच्छानुसार कमला दौड़ी हुई गई और एक लौडी का इस मामले की खबर करने के लिए नीच कुअर इन्द्रजीतसिह के पास भेजा। आठवां बयान नानक इस बात को सोच रहा था कि पहिले फिस पर वार करुं? अगर पहिले शान्ता पर वार का तो आहट पाकर मूतनाथ जाग जायगा और मुझ गिरफ्तार कर लेगा क्योंकि मैं अकेला किसी तरह उसका मुकाबिला नहीं कर सकता अतएव पहिले भूतनाथ ही का काम तमाम करना चाहिए। अगर इसकी आहट पाकर शान्ता जाग भी जायगी तो काई चिन्ता नहीं, मैं उसे सॉस लेने की भी मोहलत न दूगा वह औरत की जात मेरे मुकाविले में क्या कर सकती है। मगर ऐसा करने के लिए यह जानने की जरूरत है कि इन दोनों में शान्ता कौन है और भूतनाथ कोन है । थोड़ी ही दर के अन्दर ऐसी बहुत सी बातें नानक के दिमाग में दौड गई और उन दोनों में भूतनाथ कौन है इसका पता न लगा सकने के कारण लाचार होकर उसने यह निश्चय किया कि इन दोनों ही को बेहोश करके यहा से ले चलना चाहिए। ऐसा करने से मेरी माँ बहुत ही प्रसन्न होगी। नानक ने अपने बटुए में से बहुत ही तज बेहोशी की दवा निकाली और उन दोनों के मुह पर चादर के ऊपर ही छिडक कर उनके वेहोश होने का इन्तजार करने लगा। थाड़ी ही दर में उन दोनों न हाथ पैर हिलाये जिससे नानक समझ गया कि अब इन पर बेहोशी का असर हो गया, अस्तु उसने दोनों के ऊपर से चादर हटा दी और तभी देखा कि इन दोनों में भूतनाथ नहीं है बल्कि ये दोनों औरतें ही है जिनमें एक भूतनाथ की स्त्री शान्ता है। उस दूसरी औरत को नानक पहिचानता न था ! नानक ने फिर एक दफे बहाशी की दवा सुघा कर शान्ता को अच्छी तरह बेहोश किया और चारपाई पर से उठा कर बहुत हिफाजत और हाशियारी के साथ खेमे के बाहर निकाल लाया जहां उसने अपने एक साथी को मौजूद पाया। दोन न मिलकर उसकी गठरी वाधी और पुर्ती से लश्कर के बाहर निकाल ले गये। शान्ता को पा जाने से नानक बहुत ही खुश था और साचता जाता था कि इसे पाकर मेरी मो बहुत ही प्रसन्न होगी और हद से ज्यादे मरी तारीफ करेगी इसे सीधे अपने घर ले जाऊंगा और जब दूसरी दफा लौटूगा तो भूतनाथ पर कब्जा करूगा। इसी तरह धीर धीरे अपने सब दुश्मनों को जहन्नुम में मिला डालूंगा। कोस भर निकल जान के बाद जब नानक एक सकेत पर पहुचा तो उसके और साथियों से मुलाकात हुई जो कसे कसाये कई घाडों के साथ उसका इन्तजार कर रहे थे। एक घोड़े पर सवार होने के बाद नानक ने शान्ता को अपने आगे रख लिया उसके साथी लोग भी घोड़ों पर सवार हुए और सभों ने पूरब का रास्ता लिया। दूसरे दिन सध्या के समय नानक अपन घर पहुचा। रास्ते में उसने और उसके साथिया ने कई दफे भोजन किया मगर शान्ता की कुछ खवर न ली बल्कि उसे इस बात का ख्याल हुआ कि अब उसकी बेहोशी उतरा चाहती है तव पुन दवा सुघा कर उसकी बहाशी मजबूत कर दी गई। नानक का दसफर उसकी मा बहुत प्रसन्न हुइ आर जब उसे यह मालूम हुआ कि उसका सपूत शान्ता को गिरफ्तार कर लाया है तच ता उसकी खुशी का काई ठिकाना ही न रहा। उसननानक की बहुत ही आवभगत की और बहुत तारीफ करन के बाद बाली इतस बदला लेने में अब क्षण भर की भी देर न करनी चाहिय इस तुरन्त खम्भे के साथ पाभकर हाश में ले आआ और पहिल जूतियो से खूब अच्छी तरह यवर लो फिर जा कुछ डागा दया जायेगा। मगर इसक मुटु में सूप अच्छी तरह कपडा टूस दा जिसस कुछ बोल न सक और हनलागों को गालिया नद' मानक का भी यह बात पसन्द आई और उसने ऐसा ही किया। शान्ता के मुह में कपड़ा दूस दिया गया और वह दालगन ने एक सम्म के साथ वाध कर होश में लाई गई। होश आत ही अपन को ऐसी अवस्या में देखकर वह बहुत ही विराई और जब उधाग करन र नी कुछ बोल न सकी। आरो से आसू की धारा यहान लगी। मकान उसकी दशा पर कुछ भी ध्यान दिया। अपनीम की आज्ञा पाकर उसन शान्ता का जूत से मारना शुय किया और यहा सका कि अन्त में वह यहोश होकर झुपा गई। उस समय नानक की माँ कागज का एक लपटा हुआ पुजा गनक आग फेक कर या कहती हार के बाहर निकल गई कि इस अच्छी तरह पडल्य तक भै लौट कर आती करे . चन्द्रकान्ता सन्तति भाग २३