पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९८८

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उसकी कार्रवाई ने नानक को ताज्जुब में डाल दिया। उसने जमीन पर से पुर्जा उठा लिया और चिराग के सामने ले जाकर पढा यह लिखा हुआ था -- 'भूतनाथ के साथ ऐयारी करना या उसका मुकाबला करना नानक ऐसे नौसिखे लौडों का काम नहीं है। ते समझता होगा कि मैने शान्ता को गिरफ्तार कर लिया, मगर खूब समझ रख कि वह कभी तेरे पजे में नहीं आ सकती। जिस औरत को तू जूतियों से मार रहा है वह शान्ता नहीं है पानी से इसका चेहरा धो डाल और भूतनाथ के कारीगरी का तमाशा देख । अब अगर अपनी जान तुझे प्यारी है तो खवरदार भूतनाथ का पीछा कभी न कीजियो। पुर्जा पढते ही नानक के होश उड गये। झटपट पानी का लोटा उठा लिया और मुंह में ऎसा हुआ लत्ता निकाल कर शान्ता का चेहरा धोने लगा, तब तक वह भी होश में आ गई। चेहरा साफ होने पर नानक ने देखा कि यह तो उसकी असली माँ रामदेई है। उसने होश में आते ही नानक से कहा क्यों बेटा, तुमने मेरे ही साथ ऐसा सलूक किया !" नानक के ताज्जुब का कोई हद्द न रहा। वह घबराहट के साथ अपनी माँ का मुंह देखने लगा और ऐसा परेशान हुआ कि आधी घडी तक उसमें कुछ बोलने की शक्ति न रही। इस बीच में रामदेई ने उसे तरह तरह की बेतुकी बातें सुनाई जिन्हें वह सिर नीचा किये हुए चुपचाप सुनता रहा। जब उसकी तबीयत कुछ ठिकाने हुई तब उसने सोचा कि पहिले उस रामदेई को पकडना चाहिये जो मेरे सामने चीठी फेंक कर मकान के बाहर निकल गई है, परन्तु यह उसकी सामर्थ्य के बाहर था क्योंकि उसे घर से बाहर गए हुए देर हो चुकी थी अस्तु उसने सोचा कि अब वह किसी तरह नहीं पकडी जा सकती। नानक ने अपनी माँ के हाथ पैर खोल डाले और कहा, 'मेरी समझ में कुछ नहीं आता कि यह क्या हुआ तुम वहाँ कैसे जा पहुची और तुम्हारी शक्ल में यहाँ रहने वाली कोन थी या क्योंकर आई ! रामदेई-मैं इसका जवाव कुछ भी नहीं दे सकती और न मुझे कुछ मालूम ही है। मैं तुम्हारे चले जाने के बाद इसी घर में थी इसी घर में बेहोश हुई और होश आने पर अपन को इसी घर मे देखती हू । अव तुम्ही क्यान करा कि क्या हुआ और तुमने मेरे साथ ऐसा सलूक क्यों किया? नानक ने ताज्जुब क साथ अपना किस्सा पूरा पूरा ययान किया और अन्त में कहा अब तुम ही बताओ कि मैन इसमें क्या भूल की?" नौवां बयान दिन का समय है और दोपहर ढल चुकी है। महाराज सुरेन्दसिह अभी अभी भाजन करके आये हैं और अपने कमरे में पलग पर लेटे हुए पान चवाते हुए अपने दोस्तों तथा लड़कों से हँसी-खुशी की बातें कर रहे हैं जो कि महाराज से घटे भर पहिले ही भोजन इत्यादि से छुटटी पा चुके है। महाराज के अतिरिक्त इस समय इस कमरे में राजा वीरेन्दसिह कुँअर इन्द्रजीतसिह आनन्दसिह और राज गोपालसिह जीतसिह तेजसिह देवीसिह पन्नालाल रामनारायण पडित बदीनाथ, चुचीलाल, जगन्नाथ ज्योतिषी भैरोसिह इन्ददेव और गोपाल के दोस्त भरतसिह भी बैठे हुए है। बीरेन्द-इसमें कोई सन्देह नहीं कि जो तिलिस्म मैने तोड़ा था वह इस तिलिस्म के सामने रुपये में एक पैसा भी नहीं है, साथ ही इसके जमानिया राज्य में जैसे जैसे महापुरुष (दारोगा की तरह) रह चुके है तथा वहाँ जैसी जैसी घटनाएँ हो गई है उनकी नजीर भी कभी सुनने में न आवेगी। गोपाल-इन बखेडों का सबब भी उसी तिलिस्म को समझना चाहिए उसी का आनन्द लूटने के लिए लोगों ने ऐसे बखेडे मचाए और उसी की बदौलत लोगों की ताकत और हैसियत भी बढी। जीत-वेशक यही बात है, जैसे जैसे तिलिस्म के भेद खुलते गये तैसे तैसे पाप और लोगों की बदकिस्मती का जमाना भी तरक्की करता गया। सुरेन्द-हमें तो कम्बख्त दारोगा क कामों पर आश्चर्य होता है न मालूम किस सुख के लिए उस कम्बख्त ने ऐसे ऐसे कुकर्म किए। भरत-(हाथ जोड कर ) मैं तो समझता हूं कि दारोगा के कुकर्मों का हाल महाराज ने अभी बिल्कुल नहीं सुना, उसकी कुछ पूति तब होगी जब हम लोग अपना किस्सा क्यान कर चुकेंगे। सुरेन्द्र-ठीक है हमने भी आज आप ही का किस्सा सुनने की नीयत से आराम नहीं किया। भरत मैं अपनी दुर्दशा बयान करने के लिए तैयार है। देवकीनन्दन खत्री समग्र ९८२