पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९८९

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जीत-अच्छा तो अब आप शुरू करें। भरत-जो आज्ञा। इतना कहकर भरतसिह ने इस तरह अपना हाल बयान करना शुरू किया भरत-में जमानिया का रहने वाला और एक जमींदार का लडका हूं। मुझे इस बात का सौभाग्य प्राप्त था कि राजा गापालसिह मुझ अपना मित्र समझते थे, यहाँ तक कि भरी मजलिस में भी मित्र कह कर मुझे सम्बाधन करते थे और घर में भी किसी तरह का पर्दा नहीं रखते थे। यही सबव था कि वहाँ के कर्मचारी लोग तथा अच्छे अच्छ रईस मुझस डरते और मेरी इज्जत करते थे परन्तु दारागा को यह बात पसन्द न थीं। केवल राजा गोपालसिह ही नहीं इनके पिता भी मुझे अपने लडके की तरह ही मानत और प्यार करते थे विशेष करक इसलिए कि हम दोनों मित्रों की चालचलन में किसी तरह की बुराई दिखाई नहीं देती थी। जमानिया में जा बेईमान और दुष्ट लोगों का एक गुप्त कमटी थी उसका हाल आप लोग जान ही चुक हैं अतएव उसक विषय में विस्तार के साथ कुछ कहना वृथा ही है हॉ जरूरत पड़ने पर उसके विषय में इशारा मात्र कर देन से काम चल जायगा। रियासतों में मामूली तौर पर तरह तरह की घटनाएं हुआ ही करती है इसलिए राजा गापालसिह को गद्दी मिलने क पहिले जो कुछ मुझ पर बीत चुकी है उसे मामूली समझ कर मैं छोड देता हू और उस समय से अपना हाल क्यान करता हू जब इनकी शादी हो चुकी थी। इस शादी में जो कुछ चालबाजी हुई थी उसका हाल आप सुन ही चुक है। जमानिया की वह गुप्त कुमेटी यद्यपि भूतनाथ की बदौलत टूट चुकी थी मगर उसकी जड नहीं कटी थी क्योंकि कम्बख्त दारागा हर तरह से साफ बच रहा था और कमेटी का कमजार दफ्तर अभी भी उसके कब्जे में था। गोपालसिहजी की शादी हो जाने के बहुत दिन बाद एक दिन मेरे एक नौकर ने रात के समय जब कि वह मेरे पैरों में तेल लगा रहा था मुझसे कहा कि राजा गोपालसिह की शादी असली लक्ष्मीदेवी क साथ नहीं बलिक किसी दूसरी ही औरत के साथ हुई है। यह काम दारागा ने रिश्वत लेकर किया है और इस काम में सुबीता होने के लिए गोपालसिह जी के पिता को भी उसी ने मारा है। सुनने के साथ ही मैं चांक पडा मेरे ताज्जुब का कोई ठिकाना न रहा मैंने उससे तरह तरह के सवाल किये जिनका जवाब उसने ऐसा तो न दिया जिससे मेरी दिलजमई हो जाती मगर इस बात पर बहुत जोर दिया कि जो कुछ मे कह चुका हू वह बहुत ठीक है। मेरेजी में तो यही आया कि इसी समय उठकर राजा गोपालसिह के पास जाऊँ और सब हाल कह दूं, परन्तु यह सोच कर कि किसी काम में जल्दी न करनी चाहिए मै चुप रह गया और साचने लगा कि यह कार्रवाई क्योंकर हुई और इसका ठीक ठीक पता किस तरह लग सकता है? रात भर मुझ नींद न आई और इन्हीं बातों को सोचता रह गया। सवेरा होने पर स्नान सध्या इत्यादि से छुटटी पाकर मै राजा साहब से मिलने के लिए गया मालूम हुआ कि राजा साहब अभी महल से बाहर नहीं निकले है। मै सीधे महल में चला गया। उस समय गापालसिहजी सन्ध्या कर रहे थे और इनसे थोडी दूर पर सामने बैठी मायारानी फूलों का गजरा तैयार कर रही थी। उसने मुझे देखते ही कहा अहा आज क्या है ! मालूम होता हे मेरे लिए आप कोई अनूठी चीज लाए है। इसक जवाब में में हँस कर चुप हो गया और इशारा पाकर गोपालसिहजी के पास एक आसन पर बैठ गया। जब वे सन्ध्योपासना से छुट्टी पा चुके तब मुझसे बातचीत होने लगी। मैं चाहता था कि मायारानी वहाँ से उठ जाय तब मैं अपना मतलब बयान करूँ पर वह वहाँ से उठती न थी और चाहती थी कि मैं जो कुछ बयान करूँ उसे वह भी सुन ले। यह सम्भव था कि मैं मामूली बातें करके मौका टाल देता और वहाँ से उठ खडा होता मगर वह हो न सका क्योंकि उन दोनों ही को इस वरत का विश्वास हो गया था कि मै जरूर कोई अनूठी बात कहने क लिये आया हूँ। लाचार होकर गोपालसिहजी से इशारे में कह देना पड़ा कि मै एकान्त में केवल आप ही से कुछ कहना चाहता हूँ। जय गोपालसिह ने किसी काम के यहाने से उसे अपने सामने से उठाया तब वह भी मेरा मतलब समझ गई और कुछ मुँह बनाकर उठ खडी हुई। हम दानों यही समझते थे कि मायारानी वहा से चली गई मगर उस कम्बख्त ने हम दोनों की बातें सुन ली क्योंकि उसी दिन स मरी कम्बख्ती का जमाना शुरु हो गया। मै ठीक नहीं कह सकता कि किस ढग से उसने हमारी बातें सुनी। जिस जगह हम दोनों बैठे थे उसके पास ही दीवार में एक छोटी सी खिडकी पडती थी शायद उसी जगह पिछवाडे की तरफ खड़ी होकर उसन मेरी पातें सुन ली हो तो कोई ताज्जुब नहीं। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग २३ ९८३