पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९९

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Gri - क्रिया नियम के विरुद्ध लाश का मुँह खोले बिना ही कर दी गई और इस बारे में बिहारीसिह और हरनामसिह तथा लौडियों ने यह वहाना किया कि राजा साहब की सूरत देख मायारानी बहुत वेहाल हो जायेगी इसलिए मुर्दे का मुंह खोलने की कोई जरूरत नहीं। और लोगों न इन बातों पर खयाल किया हो चाहे न किया हो मगर मेरे दिल पर तो इन बातों ने बहुत बड़ा असर किया और यही सबब है कि मुझे राजा साहब के मरने का विश्वास नहीं होता। इन्द्रदेव-(कुछ साच कर) शक तो तुम्हारा बहुत ठीक है, अच्छा यह बताओ कि तुम इस समय कहाँ जा रहे थे? गिरिजा-( मेरी तरफ इशारा करक ) गुरुजी के पास यही सब हाल कहने के लिए जा रहा था। मैं-इस समय मनारमा कहाँ है सा बताओ? गिरिजा-जमानिया में मायारानी के पास है। मैं तुम्हारे हाथ स छूटने के बाद दारोगा और मनोरमा में कैसी निपटी इसका कुछ हाल मालूम हुआ ? गिरिजा-जी हो मालूम हुआ उस बारे में बहुत बड़ी दिल्लगी हुई जो मैं निश्चिन्ती के साथ बयान करूंगा। इन्द्रदेव-अच्छा यह तो यताआ कि गापालसिह के बारे में तुम्हारी क्या राय है और अब हम लोगों को क्या करना चाहिये? गिरिजा-इस बारे में मै एक अदना और नादान आदमी आपको क्या राय दे सकता हू । हाँ मुझे जो कुछ आज्ञा हो सो करने के लिए जर तेयार हू। इतनी बातें हो ही रही थीं कि सामने जमानिया की तरफ से दारागा और जैपाल घोडों पर सवार आत हुए दिखाई पर्ड जिन्हें देखते ही गिरिजाकुमार ने कहा 'देखिए ये दोनों शैतान कहीं जा रहे हैं इसमें भी कोई भेद'जरूर है यदि आज्ञा होता मै इनक पीछे जाऊँ। दारोगा और जैपाल का देख कर हम दोनों पेड की तरफ घूम गये जिसमें वे पहिचान न सकें। जब वे आगे निकल गए तय मैन अपना घाडा गिरिजाकुमार को दकर कहा 'तुम जल्द सवार हो के इन दोनों का पीछा करो।' और गिरिजाकुमार ने ऐसा ही किया।

  • तईसवॉ भाग समाप्त

चन्द्रकान्ता सन्तति भाग २३ १००१