पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९९२

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eri हर-इसका सवव वही लक्ष्मीदेवी वाला भेद है। मै अपनी भूल पर अफसोस करता हू, मुझे चूक हो गई जो मैने वह भेद आपसे खोल दिया। मैंने तो राजा गोपालसिहजी का भला करना चाहाथा मगर उन्होंने नादानी करके मामालाही बिगाड दिया। उन्होंने जो कुछ आपसे सुना था लक्ष्मीदेवी से कह कर दारोगा और रघुबर का आपका दुश्मन बना दिया क्योंकि इन्हीं दोनों की बदौलत देह इस दर्जे को पहुची इन्हीं दोनों की बदौल हमारे महाराज (गापालसिह के पिता) मारे गये और इन्हीं दोनों ने लक्ष्मीदेवी ही को नहीं बल्कि उसके घर भर को बर्वाद कर दिया। मै-इस समय तो तुम बडे ही ताज्जुब की बातें सुना रह हा? हर-मगर इन बातों को आप अपने ही दिल में रख कर जमान की चाल के साथ काम करें नही ता आपको पछताना पडगा, यद्यपि मैं यह कदापि न कहूगा कि आप राजा गोपालसिह का ध्यान छोड दें और उन्हें डूबने दें क्योंकि वह आपके दोस्त है। मैं-जैसा तुम चाहते हो में वैसा ही करुगा। अच्छा तो यह बताओ कि लक्ष्मीदेवी और बलभद्रसिह पर क्या चीती? हर-उन दोनों को दारोगा ने अपने पजे में फसा कर कहीं कैद कर दिया था इतना तो मुझे मालूम है मगर इसके बाद का हाल में कुछ भी नहीं जानता, न मालूम वे मार डाले गये या अभी तक वही कैद हैं। हा उस गदाधरसिह को इसका हाल शायद मालूम होगा जो रणधीरसिहजी का ऐयार है और जिसन नानक की मा को धोखा दन के लिए कुछ दिन तक अपना नाम रघुदरसिह रख लिया था तथा जिसकी बदौलत यहाँ की गुप्त कुमेटी का भण्डा फूटा है। उसने इस रघुवरसिह और दारोगा को खूब ही छकाया है। लक्ष्मीदेवी की जगह मुन्दर की शादी करा दन की बावत इनके आर हेलासिह के बीच में जो पत्र-व्यवहार हुआ उसकी नकल भी गदाधरसिह (रणधीरसिह के ऐयार) के पास मौजूद है जो कि उसने समय पर काम देने के लिए असल चीठियों स अपन हाथ स नकल की थी। अफसास, उसने रुपये की लालच में पड़ कर रघुवरसिह और दारोगा को छोड दिया और इस बात का छिपा रक्खा कि यही दाना उस गुप्त कुमटी के मुखिया है। इस पाप का फल गदाधरसिह को जहर भागना पड़ेगा ताज्जुब नहीं कि एक दिन उन चीटियों की नकल स उसी का दुख उठाना पड़े और वे चीठियाँ उसी के लिए काल बन जॉय। इस समय मुझ हरदीन की वे चातें अच्छी तरह याद पड़ रही है। मैं दखता है कि जो कुछ उसने कहा था सच उतरा। उन चीठियों की नकल ने खुद भूतनाथ का गला दया दिया जो उन दिनों गदाधरसिह के नाम से मशहूर हो रहा था भूतनाथ का हाल मुझ अच्छी तरह मसूम है ओर इधर जा कुछ हो चुका है वह सब तो में सुन चुका है। मगर इतना मैं जस्तर कहूगा कि भूतनाथ के मुकदमे म तेजसिहजी ने बहुत बड़ी गलती की। गलतो तो सर्भो न की मगर तजसिहजी का ऐयारा का सरताज मान कर मैं सब के पहिले इन्ही का नाम लगा। इन्होंन जय लक्ष्मीदेवी,कमलिनी और लाडिली इत्यादि के सामने वह कागज का मुद्दा खोला था और चीटियों को पढ़ कर भूतनाथ पर इलजाम लगाया था कि वशक ये चीठिया । भूतनाथ के हाथ की लिखी हुई है तो इतना क्यों नहीं सोचा कि भूतनाथ की चीटियों के जवाब में हेलासिह ने जो चीठियाँ भेजी है वे भी तो भूतनाथ ही के हाथ की लिखी हुई मालूम पडती है, तो क्या अपनी चीटी का जवाब भी भूतनाथ अपने ही हाथ से लिखा करता था ? यहाँ तक कह कर भरतसिह चुप हो रहे और तजसिह,की तरफ देखने लगे। तेजसिह ने कहा आपका कहना बहुत ही ठीक है बेशक उस समय मुझसे बडी भूल हो गई। उनमें की एक ही चीढी पढ कर क्रोध क मार हम लोग ऐसा पागल हो गए कि इस बात पर कुछ भी ध्यान न दे सके। बहुत दिनों के बाद जब देवीसिह ने यह बात सुझाई तब हम लोगों को बहुत अफसोस हुआ और तब से हम लोगो का ख्याल भी बदल गया । भरतसिह ने कहा तेजसिहजी इस दुनिया में बडे बडे चालकों और हाशियारों से यहा तक कि स्वय विधाता ही से भूल हा गई है तो फिर हम लागों की क्या बात है? मगर मजा तो यह है कि बड़ों को भूल कहने सुनने में नहीं आती इसीलिए आपकी भूल पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। किसी कवि ने ठीक ही कहा है- को कहि सके बडन'सों लखे बडेई भूल ! दीन्हें दई गुलाब के इन डारन ये फूल ।। अस्तु अब मैं पुन अपनी कहानी शुरू करता हूँ। इसके बाद भरतसिह ने फिर इस तरह कहना शुरू किया भरत-मैंने हरदीन से कहा कि अगर यह बात है तो गदाधरसिह से मुलाकात करनी चाहिए मगर वह मुझसे अपने भेद की बातें क्यों कहने लगा? इसके अतिरिक्त वह यहाँ रहता भी नहीं है कभी कभी आ जाता है। साथ ही इसके यह जानना भी कठिन है कि वह कब आया और कय चला गया । -- देवकीनन्दन खत्री समग्र