पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९९४

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ar ek भूत-साहब, आपका हरदीन बड़ा ही नेक और दिलावर है, ऐसे जीवट का आदमी दुनिया में कम दिखाई देगा। मैं तो इसे अपना परम हितैपी और मित्र समझता हू, इसने मेरे साथ जो कुछ भलाइया की हैं उनका बदला में किसी तरह चुका ही नहीं सकता। मुझसे आपस कभी की जान पहिचान नही मुलाकात नहीं ऐसी अवस्था में में पहिल पहल बिना मतलव के आपके घर कदापि न आता परन्तु इनकी इच्छा के विरुद्ध मैं नहीं चल सका, इन्होंने यहाँ आन के लिए कहा ओर मे बेधडक चला आया। इनकी जुवानी में सुन भी चुका है कि आज कल आप किस फेर में पड़े हुए है और मुझसे मिलने की जरूरत आपको क्यों पड़ी अस्तु हरदीन की आज्ञानुसार मै वह कागज का मुट्ठा भी आपको दिखाने के लिए लेता आया है जिससे आपको दारोगा और रघुवरसिह की हरामजदगी और राजा गोपालसिह की शादी का पूरा पूरा हाल मालूम हो जायेगा, मगर खूब याद रखिये कि इस कागज को पढ कर आप बेताब हो जायेंगे, आपको बेहिसाब गुस्सा चढ़ आवेगा और आपका दिल बेचैनी के साथ तमाम भण्डा फोड़ देन के लिए तैयार हो जायगा। मगर नहीं, आपको बहुत बर्दाश्त करना पडेगा दिल को सम्हालना और इन बातों को हर तरह से छिपाना पड़ेगा। मुझे हरदीन ने आपका बहुत ज्यादा विश्वास दिलाया है तभी में यहा आया हू और यह अनूठी चीज भी दिखान के लिए तैयार है, नहीं तो कदापि न आता। मे-आपने यडी मेहरबानी की जो मुझ पर भरोसा किया और यहा तक चले आय मेरी जुवान से आपका रत्ती भर भेद किसी को नहीं मालूम हो सकता इसका आप विश्वास रखिए। यद्यपि में इस बात का निश्चय कर चुका है कि गोपालसिह के मामले में में अब कुछ भी दखल न दूगा मगर इस बात का अफसोस जरूर है कि वह मर मित्र है और दुष्टो ने उन्हें बेतरह फसा रक्खा है। भूत-केवल आप ही को नहीं इस बात का अफसोस मुझको भी है और में खुद गोपालसिह को इस आफत में छुडाने का इरादा कर रहा हू, मगर लाचार हू कि बलभदसिह और लक्ष्मीदवी का कुछ भी पता नहीं लगता और जब तक उन दोनों का पता न लग जाय तब तक इस मामल का उठाना बडी भूल है। मैं-मगर यह तो आपको निश्चय है न कि इसका कर्ता-धर्ता कम्बख्त दारागा ही है । भूत-भला इसमें भी कुछ शर्म है ? लीजिये इस कागज के मुटठे को पढ जाइये तब आपका भी विश्वास हा जायगा। इतनाकहकर भूतनाथ न कागज का एक मुट्ठा निकाला और मेरे आगे रख दिया तथा मैंने भी उस पडना शुरु किया मैं आपस नहीं कह सकता कि उन कागजों को पढकर मर दिल की कैसी अवस्था हो गई और दारोगा तथा रघुवरसिह पर मुझे कितना क्रोध चढ आय'। आप लाग तो उसे पढ सुन चुके है अतएव इस बात को खुद समझ सकते है। मेने भूतनाथ से कहा कि यदि तुम मेरा साथ दा तो में आज ही दारोगा आर रघुवरसिह को इस दुनिया से उठा हूँ । भूत-इससे फायदा ही क्या होगा? और यह काम भी कितना बड़ा है ? मुझे खुद इस बात का ख्याल है और मैं लक्ष्मीदेवी का पता लगाने के लिए दिल से कोशिश कर रहा हू तथा आप का हरदीन भी पता लगा रहा है। इस तरह समय के पहिल छेडछाड करने से खुद अपने को झूठा बनाना पडगा और लक्ष्मी ददी भी जहाँ की तहा पडी सडेगी या मर जायेगी। ? मैं-हो ठीक है, अच्छा यह तो बताइये कि आप हरदीन की इतनी इज्जत क्यों करते हैं ? भूत--इसलिये कि यह सब कुछ इन्हीं की बदौलत है. इन्होंने मुझे कुमेटी का पता बताया और उसका भेद समझाया और इन्हीं की मदद से मैंने उस कुमेटी का सत्यानाश किया। मै-( हरदीन से) और तुम्हें उस कुमेटी का भेद क्योकर मालूम हुआ हर-(हाथ जोड के) माफ कीजियेगा में उस कुमेटी का सदस्य था और अभी तक उन लोगों के ख्याल से उन सभों का पक्षपाती बना हुआ हू, मगर में ईमानदार सदस्य था इसीलिए ऐसी बातें मुझे पसन्द न आई और में गुप्त रीति से उन लोगों का दुश्मन बन बैटा मगर इतना करने पर भी अभी तक मेरी जान इसलिए बची हुई है कि आपके घर मे मेर सिवाय और कोई उन लोगों का साथी नहीं है। भूत-तो क्या अभी तक तुम उन लोगों के साथी बने हुए हो और वे लोग अपने दिल का हाल तुमसे कहते हैं ? हर-जी हा अभी तो मैने आपको रघुबरसिह के पजे से बचाया था जब वेह आपको घोडे पर सवार कराके ल चला था। में-अगर ऐसा हो तो तुम्हें यह भी मालूम हो गया होगा कि उस दिन धात न लगने के कारण रघुवरसिह ने अब कौन सी कार्रवाई सोची है। हर-जी हॉ पहले तो उसने मुझसे पूछा कि भरतसिह ने ऐसा क्यों किया क्या उसको मेरी नियत का कुछ पता लग 2 देवकीनन्दन खत्री समग्र ९८८