पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९९६

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मै (ताज्जुब के साथ) क्यों क्यों कुशल तो है ? दारोगा-अभी अभी पता लगा है कि आधी रात के बाद से उन्हें वेहिसाहबदस्त और कै आ रहे है, आप कृपा करके यदि माहनजी वैद्य को अपने साथ लेते आवे तो बडा काम हो, मै खुद उनकी तरफ जाने का इरादा कर रहा था। दारोगा की बातें सुन कर मैं घबडा गया राजा साहब की बीमारी का हाल सुनते ही मेरी तबीयत उदास हो गई और मैं बहुत अच्छा' कह उल्टे पैर लौटा और मोहनजी वैद्य की तरफ रवाना हुआ। यहाँ तक अपना हाल कह कुछ देर के लिए भरतसिह चुप हो गये और दम लेने लगे। इस समय जीतसिह ने महाराज की तरफ देखा और कहा भरतसिहजी का किस्सा भी दारे आम में कैदियों के सामने ही सुनने लायक है ! महाराज-यशक ऐसा ही है। (गोपालसिह से ) तुम्हारी क्या राय है? गोपाल महाराज की इच्छा के विरुद्ध मै कुछ बाल न सका नहीं तो मैं भी यही चाहता था कि और नकाबपोशों की तरह इनका किस्सा भी कैदियों के सामने सुना जाय । और सभी ने भी यही राय दी आखिर महाराज ने हुक्म दिया कि कल दर्बार-आम किया जाय और कैदी लोग दर्वार में लाय जाय । दिन पहर मर से कुछ कम वाकी था जब यह छोटा सा दर्वार बर्खास्त हुआ और सब कोई अपने ठिकाने चले गये कुँअर आनन्दसिह शिकारी कपड़े पहिनकर तारासिह को साथ लिये महल के बाहर आये और दोनों दोस्त घोडों पर सवार होकर जगल की तरफ रवाना हो गये। दसवां बयान घाडे पर सवार तारासिह का साथ लिये हुए कुँअर आनन्दसिह जगल ही जगल घूमते और साधारण ढग पर शिकार खेलते हुए बहुत दूर निकल गये और जब दिन बहुत कम बाकी रह गया तब धीरे धीरे घर की तरफ लौटे। हम ऊपर के किसी बयान में लिख आये हैं कि अटारी पर एक सजे हुए बगले में बैठी हुई किशोरी कामिनी और कमलिनी वगैरह ने जगल से निकल कर घर की तरफ आते हुए कुँअर आनन्दसिह और तारासिह को देखा तथा यह भी देखा कि दस-बारह नकाबपोशों ने जगल में से निकल इन दोनों पर तीर चलायें और ये दोनों उनका पीछा करते हुए पुन जगल के अन्दर घुस गये-इत्यादि । यह वहीं मौका है जिसका हम जिक्र कर रहे हैं। उस समय कमला ने एक लौडी की जुबानी इन्द्रजीतसिह को इस बात की खवर दिलवा दी थी, और खबर पाते ही कुंअर इन्द्रजीतसिह भैरोसिह तथा और भी बहुत से आदमी आनन्दसिह की मदद के लिए रवाना हो गए थे। असल बात यह थी कि भूतनाथ की चालाकी से शर्मिन्दगी उठा कर भी नानक ने सब नहीं किया बल्कि पुन इन लोगों का पीछा किया और अबकी दफे इस ढग से जाहिर हुआ था कि मौका मिले तो आनन्दसिंह को तीर का निशाना बनाये और इसी तरह बारी बारी से अपने दुश्मनों की जान लेकर कलेजा ठढा करे। मगर उसका यह इरादा भी काम न आया आनन्दरािह और तारासिह की चालाकी तथा उनके घोडों की चपलता के कारण उसका निशाना कारगार न हुआ और उन्होंने तेजी के साथ उसके सर पर पहुच कर सभों को हर तरह से मजबूर कर दिया। तब तक मदद लिए हुए कुँअर इन्दजीतसिह भी जा पहुचे और आठ साथियों के सहित येईमान नानक को गिरफ्तार कर लिया । यद्यपि उर्सी समय यह भी मालूम हो गया कि इसके साथियों में से कई आदमी निकल गए, मगर इस बात की कुछ परवाह न की गई और जो कुछ गिरफ्तार हो गए थे उन्हीं को लेकर सब कोई घर की तरफ रेवाना हो गए। कम्बख्त नानक पर हर तरह की रियाअत की गई बहुत कडी सजा पाने के योग्य होने पर भी उसे किसी तरह की सजा न दी गई और वह इस ख्याल से बिल्कुल साफ छोड दिया गया कि शायद फिर भी सुधर जाय भगर नहीं- भूयोपि सिक्ता पयसा घृतेन न निम्ब वृक्षो मधुरत्वमेति अर्थात नीम न मीठी होय सींचे गुड घीउ से। आखिर नानक को वह दुख भोगना ही पड़ा जो उसकी किस्मत में बदा हुआ था। जिस समय नानक गिरफ्तार करके लाया गया और लोगों ने उसका हाल सुना उस समय सभों को उसकी नालायकी पर बहुत ही रज हुआ। महाराज की आज्ञानुसार वह कैदखाने में पहुचाया गया और सभों को निश्चय हो गया कि अब इसे किसी तरह छुटकारा नहीं मिल सकता । । देवकीनन्दन खत्री समग्र