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"क्या?"
"अन्धकूप पर कड़ा पहरा लगा दो। जिससे यह खबर सुनयना के कानों में न पड़ने पाए।"
"बहुत अच्छा।"
माधव एक ओर को चल दिया। और सिद्धेश्वर दूसरी ओर को।
गोरख ने कहा—"अब कहो।"
जयमंगल ने तलवार वस्त्र से निकालकर कहा—"रक्षा करनी होगी।"
दिवोदास ने आड़ से बाहर आकर कहा—"मैं तुम्हारी सहायता करूँगा।"
सुखानन्द ने बढ़कर कहा—"और मैं भी।"
जयमंगल ने कहा—"वाह, तब तो हमारा दल विजयी होगा।"
चारों जन कुछ सोच-सलाह कर, एक अँधेरी गली में घुस गए।