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देव-सुधा

हैं प्रतिमूरति दोऊ दुहू की बिधो प्रतिबिंब वही घट दूमै , एकहि देव दुदेह दुदेहरे देव दुधा यक देह दुहू मै* ॥१६०।।

कवि मोलितोन्मीलित अलंकार द्वारा युगल स्वरूप का वर्णन करता है । बिधो (विधि) = तरह; प्रकार। दुधा=द्विधा ( द्वाभ्यां प्रकारेण ) दो प्रकार से ।

जे बिन देखे गए दिन बोति नयो पछिताउ अरो हिय हैए , देवजु देखि उन्है हौं दुखी भई या जिय को दुख काहि दिखैए; देखे बिना दिखसाधन हो मरि देखु री देखत ही न अधैए , देखत-देखत-देखत हो रही आपनी देहौ न देखन पैए।।१६१।।

अरो=अड़ा । दिखसाधन =देखने को साधे ( कामनाएँ)। अपनो देह इस कारण से नहीं देख पाती है कि नायक को देखकर मापे को भूल जाती है।

दिना दस यौवन जीवन री मरिए पचि होह जुपै मरिबे न ; सबै जग जानत देव सुहाग की संपति भोन रही भरिबे न+; कहा कियो सौति कहाय कैकाहूनरौ पिय लोभ तऊलरिबेन, असीसनहू कोसहीकरिबे नकछूअबमोहिरही करिबेन ॥१६२।।

  • वास्तविक देव एक ही है, जो दो देहों-रूपी देहरों ( मंदिरों )

में है, अथच एक ही देव दो भाग होकर दोनो देहों में है।

+ सोहाग की संपत्ति घर में भरना शेष नहीं है, अर्थात् वह पूर्णतया प्राप्त हो चुकी है।

  • यदि कोई सपनो पति के लालच से मुझ से लड़े तो भी मुझे

उससे लड़ना नहीं है।

$ आशीर्वचनो की भी यथार्थता पूर्ण करनी शेष नहीं है, अर्थात् सारे आशीर्वाद भी सफल हो चुके हैं । इन कारणों से नायिका कृत-कृत्य है, और कहती है कि मुझे कुछ करना शेष नहीं है।