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देव-सुधा

प्रानप्यारे पति को करत अपमान, तब

जानत न, देव अब प्रान तन खात क्यों ;

रोगी ज्यों सुबात बात कहत सम्हारत न,

इत उतपात उत पात कीन पोत क्यों।

कोसत है आप अपसोस करै आपही ते,

रोस करि तब तौ रिसात अवरोत क्यों;

पूँछ किन कोई मन पीछे पछितात कहा,

सूर छत जोय छिति मूरछित होत क्यों ।।१६।।

कलहांतरिता नायिका का वर्णन है । सुबात = सन्निपात से पीड़ित दशा में प्रायः रोगी अाय-बाय बकता है, उस दशा से अभिप्राय है। उत्पात = उपद्रव । पोत = जहाज़ । छत = क्षत । जोय = देख करके ।

(२२)
विरह

आई नहीं तन मैं तरुनाई भई नहीं स्याम के संग सँयोगिनि, कौने सिखाई धौं सीख कहा सुमिरैधरि ध्यान मनो जुगजोगिनि; भोजन बास न हास बिलास उसास भरै मनौ दोरघ रोगिनि, ऑखिन ते असुवा नहिं सूखत एकई बार है बैठा बियोगिनि ।

जुग जोगिनि = पूरे युग से जैसे योगिनी । दीरघ रोगिनि = बड़े रोगवाली। धौं = या ( यह एक अव्यय है, जो ऐसे प्रश्नों के पहले लगाया जाता है, जिनमें जिज्ञासा का भाव कम और संशय का अधिक होता है)। एकई बार = एकबारगी।

  • इधर तो मान द्वारा उत्पात किए, फिर उधर उसी मान के लिये

पत्ते का जहाज़ क्यों बनाया, अर्थात् मान को दुबो क्यों दिया ?