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देव-सुधा

इस बार देव के विषय में यही करना पड़ा, सो भी विवश होकर । एकाध मित्र ने कहा कि यदि इस टीका की भी टीका हो, तो सर्वसाधारण की समझ में पाए। हम इसे ऐसी कठिन समझते नहीं, तथापि, है यह मर्मज्ञों के लिये। इसे बहुत फैलाकर कहने का श्रम हमें स्वीकार नहीं है। देव-कृत दोहों के अतिरिक्त प्रायः ३५०० छंद हैं, जिनमें हज़ार-पाठ सौ तक उत्कृष्ट निकलेंगे। प्रायः १४०० छंद छाँटे थे, जिनमें से ये २७१ यहाँ दिए जाते हैं । २५० छंद छाँटने बैठे थे. किंतु २१ और छंट गए, जिनको अलग करना ठीक न जचा. सो वे भी रख दिए गए। प्रायः २०० और छंद भी इसी उत्तमता के निकलेंगे, ऐसा विचार है। शेष तीन-चार सौ छंद भी उत्कृष्ट हैं, किंतु इन ५०० के बराबर नहीं। हमारी समझ में बिहारी के प्रायः ढाई सौ छंद श्रेष्ठ होंगे, और इतरों के भी भले-बुरे निकलेंगे। कवि-सुधा निकालने का हमारा मुख्य विचार यह है कि सुकवियों की उत्कृष्ट रचनाएँ एकत्र हो जायँ तथा तुलनात्मिका समालोचना की सुविधा हो जाय । अभी लोग किसी कवि के अच्छे और दूसरे के साधारण या बुरे छंद लेकर कभी-कभी तुलना करने बैठते हैं, जिससे न्याय नहीं होता । ये संग्रह निकल जाने से श्रेष्ठ छंद एकत्र हो जायँगे,और यह कठिनता कम हो जायगी। बिहारी और देव के तुलनात्मक छन्दों का एक चक्र भी दिया जा रहा है।

लखनऊ
 
सं० १९६२
 
मिश्रबंधु