पृष्ठ:देव-सुधा.djvu/१४३

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१३३ देव-सुधा १३६ देवजू दरम बिनु तरसि मर यो हो, पग ___ पर सि जियेगो मन-बैरी अनमारनो; पतिव्रतवती ए उगसी प्यासी अँखियन प्रात उठि पीतम पिआयो रूप-पारना ॥२०८।। स्वकीया खंडिता नायिका का कथन सखी प्रति है। पग परसि = पैरों को छू करके । अनमारनो = न मारा जानेवाला, अर्थात् वश में न रहनेवाला। पारनो-पारण = किसी व्रत या उपवास, के दूसरे दिन किया जानेवाला पहला भोजन और तत्संबंधी कृत्य । आए हौ पन्हि प्रभात हिए पर जानि परै कछु ज्योति उज्यारी, आरसी ल किन देखिए दवजूपाई कहाँ केहि नेह लिहारी; कै बनमाल किधौं मुकतावलि कंवन की कि रचो रतनारो, स्याम कहूँ, कहुँ पीत कहूँ सित लाल कहूँ उर-माल तिहारी है। नायक ने अन्य रमणी के साथ रमण किया, ऐसा जानकर नायिका नायक पर इस विषय पर आक्षप करती है । नायक के हृदय पर अन्य रमणी के मुक्तावली के चिह्न उपटे हुए होने से प्रौढ़ा नायिका व्यंग्य द्वारा नायक पर दोष लगाती है। पैन्हि = पहन । नेह निहारी = स्नेह से देखा है। ॐ पीतम प्रात उठि पतीव्रतव्रती इन उपासी प्यासी अँखियन ( आँखों को ) रूप-पारनो पियानो । प्रयोजन यह है कि नायक ने प्रातःकाल आकर नयिका को दर्शन दिया। या यह माल लाल सोने की बनी है। यह भी कहा जा सकता है कि रत्न और सोने से माल रची है ।

  • कस्तुरी के संसर्ग से काली, केशर से पीली तथा चंदन से

शुभ्र अथवा लाल है।