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देव-सुधा

नील पट को कपट इस कारण से कहा है कि कपट का रंग भी काला होता है। प्रयोजन यह है कि नील वस्त्र श्वेत शरीर को ढके हुए है, सो मानो द्रष्टाओं से कपट करता है। कुछ अंग खुला है, और कुछ नील वस्त्र से आच्छादित है ; इसी से कहा गया है कि मानो उदयाचल से सूर्य की किरण ने निकलकर अच्छी शोभा द्वारा तम-समूह को दपट ( डाँट ) दिया।

परिहाम कियो हरि देव सुबाम को वा मुख बैन नच्यो नट ज्यों, करि तीख' कटाच्छ कृपान भयों मन पृरन रोप भरयो भट ज्यों; लपिटाय गही षट-पाटी करौंट लै मान-महोदधि को तट ज्यों, कटु बोल सुने पटुता मुख की पट दै पलटी उलट्यो पट ज्यों।।६०॥

मुग्धा मानिनी नायिका का वर्णन है । परिहास = हँसी, ठट्ठा । कृपान = खड्ग । षट ( खट्वा ) = खाट ।

  • नायक के परिहास करने से नायिका के मुख में वचन नट के समान नाचने लगे, अर्थात बहुत प्रकार के उपालंभ-पूर्ण वाक्य उसने कहे। यह मुग्धाव का सूचक भाव है । उसके कटाक्ष तलवार-से टेढ़े हो गए, और मन पूर्ण क्रुद्ध योद्धा की भाँति रोष-पूर्ण हुआ । उसने कर-वट लेकर मान-रूपी भारी समुद्र के कूल की भाँति पलंग ( बाट) की पट्टी लिपटकर पकड़ ली, किंतु नायक के मुख-चातुर्य-प्रदर्शक ( हंसी-भरे ) कटु बैन सुनकर (मान-मोचन हो जाने से ) नायिका (मुग्धाव के कारण ) पट की आड़ देकर उलटे कपड़े की भाँति शीघ्र पलट गई, अर्थात नायक की ओर हो गई। मुख की पटुता से नायक ने जो कटु बोल कहे थे, वे विनय-गर्भित थे, जिनसे मान-मोचन हा। यहाँ यह संदेह उठ सकता है कि जब गुरु मान था, तब केवल

विनय से उसका मोचन कैसे हो गया ? उत्तर यह है कि यहाँ मध्यम मान का कथन है, गुरु मान का नहीं । नायिका मान-महोदधि के