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प्रतिमा-परीक्षा
दोनों कविनरों के विषय की ज्ञातव्य बातें इस प्रकार स्थूल रूप
से लिख चुकने के पश्चात् अब हम क्रमशः तुलनात्मक रीति से
दोनों को कविता पर युगपत् विचार करेंगे । पर इस विवेचन को
प्रारंभ करने के पूर्व दो प्रधान बातों का उल्लेख कर देना परमावश्यक
प्रतीत होता है।
पहली बात उभय कवियों के छंद-प्रयोग के संबंध में है और
दूसरी कथन-शैली-विषयिनी, दोहा एक बहुत ही छोटा छंद है।
विहारीलाल ने इसी का प्रयोग किया है । छोटे छंद में भारी भाव
का समावेश कर दिखलाना-संकुचित स्थान पर बड़ी इमारत
खड़ी कर देना बड़े कौशल का काम है । पर साथ ही दोहा-सदृश
छोटे छंद को सजा ले जाना उतना ही सुकर भी है। चतुर माली
जितनी सफाई से एक छोटे चमन को सजा सकता है, उतनी ही
सफ़ाई से समग्र वाटिका के सजाने में बड़े परिश्रम की आवश्यकता
हैं। छोटे चित्र को गते समय यदि दो-चार कूचियाँ भी अच्छी चल
गई, तो चित्र चमचमा उठता है। परंतु बड़े चित्र को उसी प्रकार
रंगना विशेष परिश्रम चाहता है । किसी पुरुष का एक छोटा और एक
बड़ा चित्र बनवाइए । यद्यपि दोनों चित्र एक ही हैं, पर छोटे की
अपेक्षा बड़े के बनाने में चित्रकार को विशेष श्रम पड़ेगा। विहारीलाल
चतुर चित्रकार की भाँति दो ही चार सजीव शब्द-रूपी कूचियों के
प्रयोग से अपने दोहा-चित्र को ऐसा चमचमा देते हैं कि साधारण
रूप भी परम सुंदर चित्रित दृष्टिगत होने लगता है। हमारे इस
कथन का यह अभिप्राय नहीं है कि दोहा-छंद में इतने कम शब्दों
पृष्ठ:देव और बिहारी.djvu/१३९
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