पृष्ठ:देव और बिहारी.djvu/८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

A देव और बिहारी के परम प्रतिभावान् समालोचक महामति इमर्सन की राय भी सुनिए। वह कहते हैं- "साहित्य में यह एक नियम-सा हो गया है कि यदि एक कवि यह दिखला सके कि उसमें मौलिक रचना करने की प्रतिभा है, तो उसे अधिकार है कि वह औरों की रचनाओं को इच्छानुसार अपने व्यवहार में लावे । विचार उसी की संपत्ति है, जो उनका श्रादर-सत्कार कर सके - ठीक तौर से उसकी स्थापना कर सके। अन्य के लिए हुए विचारों का व्यवहार कुछ भद्दा-सा होता है। परंतु यदि हम यह भद्दापन दूर कर दें, तो फिर वे विचार हमारे हो जाते हैं।" ___ उपर्युक्त दो सम्मतियाँ इस बात को प्रमाणित करने के लिये पर्याप्त हैं कि भाव-सादृश्य के विषय में विद्वान् समालोचकों की क्या राय रही है। वर्तमान समय में हिंदी कविता की समालोचना की ओर लोगों की प्रवृत्ति हुई है। भिन्न-भिन्न कवियों की कविता में आए हुए सदृश भावों पर भी विवेचन प्रारंभ हुआ है । जिस समालोचक का अनुराग जिस कवि विशेष पर होता है, वह स्वभावतः उसका पक्षपात कभी-कभी अनजान में कर डालता है। पर कभी-कभी विद्वान् समालोचक, हठ-वश, अपनी सारी योग्यता एक कवि को बड़ा तथा दूसरे को छोटा दिखलाने में लगा देते हैं। यह बात अनजान में न होकर समालोचक की पूरी-पूरी जानकारी में होती है । इससे यथार्थ बात छिपाई जाती है, जिससे समालोचना का मुख्य उद्देश्य नष्ट हो जाता है। ऐसी समालो- चनाओं को तो 'पक्षपात-परिचय' कहना चाहिए। इस पक्षपात- परिचय' में जब समालोचक पालोच्य कवि को खरी-खोटी भी सुनाने लगता है, तो वह पक्षपात-परिचय भी न रहकर "कलुषित उदार"- मात्र रह जाता है। ऐसी समालोचनाओं में यदि कोई महत्त्व-पूर्ण