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दो बहनें

शशांक का यह दावा मंजुर नहीं हुआ क्योंकि यह जूता यथासमय प्रणामी के रूप में भैया के चरणों में ही निवेदित हुआ। उसके कुछ समय बाद ऊर्मि ने शशांक का एक पत्र पाया। पाकर वह ख़ूब हँसती रही। वह चिट्ठी आज भी उसके बाक्स में पड़ी हुई है। आज खोलकर उसने उसे फिर से पढ़ा:

"कल तो तुम चली गईं। तुम्हारी स्मृति पुरानी होते-न-होते तुम्हारे नाम एक कलंक की बात फैल गई है। उसे छिपा रखने को मैं कर्तव्य को अवहेलना मानता हूँ।

"मेरे पैरों में एक जोड़ी तालतले की चप्पल बहुतों ने देखी है। किन्तु इससे भी अधिक उसके छेदों को पार करके निकलनेवाली मेरी पद-नख-पंक्ति को ही लोगों ने देखा, जो मेघमुक्त चन्द्रमाला की भाँति दर्शित होती है ( देखो---भारतचन्द्र का 'अन्नदामंगल'। उपमा की यथार्थता के विषय में संदेह हो तो अपनी दीदी से जाँच करा सकती हो। ) आज सबेरे मेरे दफ्तर के वृन्दावन नन्दी ने जब मेरे सपादुक चरणों को स्पर्श करके नमस्कार किया तो मेरी पद-मर्यादा की जो विदीर्णता प्रकट हुई उसकी गौरवहीनता से मेरा मन हिल उठा। मैंने सेवक से प्रश्न किया, 'महेश, बता सकते हो कि किस

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