पृष्ठ:दो बहनें.pdf/१०२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
दो बहनें

अनधिकारी के श्रीचरणों में मेरे नये चप्पलों के जोड़े ने गति पाई है?' उसने सिर खुजलाकर कहा, "उस घर की ऊर्मि मौसी के साथ जब आप भी दार्जिलिंग गए थे तो साथ ही साथ चप्पलों की जोड़ी भी गई थी। आपके लौटने के समय एक तो आपके साथ लौटी है लेकिन बाक़ी एक--' उसका मुह लाल हो उठा। मैंने उसे डाँट बताई, 'बस, चुप रह।' वहाँ बहुत-से लोग थे। चप्पल-हरण हीन कार्य है, लेकिन मनुष्य का मन दुबल होता है, लोभ का दमन करना कठिन होता है, वह ऐसा काम कर ही डालता है। ईश्वर शायद क्षमा करते हैं, तो भी अपहरण-कार्य में यदि कुछ बुद्धिमानी का परिचय दिया गया हो तो दुष्कर्म की ग्लानि भी बहुत कुछ कम हो जाती है। लेकिन केवल एक चप्पल !!! धिक् !!!

"जिसने यह काम किया है उसका नाम मैंने यथासंभव गुप्त ही रखा है। वह यदि अपनी स्वभाव-सिद्ध मुखरतावश बेकार चिल्लाना शुरू करें तो भंडाफोड़ हो जायगा। जहाँ मन दुरुस्त होता है वहीं चप्पल को लेकर मनमुटाव निभ सकता है। महेश के समान निन्दकों का मुख एक जोड़ी सुन्दर कलापूर्ण चप्पलों की सहायता से अनायास ही बंद कर सकती

८९