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दो बहनें

दिनों के बाद नीरद की चिट्ठी आकर उसकी प्रतीक्षा कर रही है। मारे डर के वह खोल ही नहीं सकी। मन ही मन जानती थी कि मेरी ओर से अपराध जमा हो गए हैं। नियम भंग की क़ैफ़ियत देने के लिये इसके पहले दीदी की बीमारी का उल्लेख किया था, पर कुछ दिनों से यह क़ैफ़ियत प्रायः मिथ्या हो आई है। शशांक ने विशेष रूप से ज़िद करके शर्मिला के लिये दिन और रात के लिये अलग-अलग नर्सें नियुक्त कर दी हैं। डाक्टर के निर्देशानुसार वे लोग रोगी के घर में आत्मीय स्वजनों का आना-जाना बंद कर दिया करती हैं। ऊर्मि मन ही मन जानती थी कि नीरद दीदी की बीमारी वाली की क़ैफ़ियत को बहुत बड़ी बात नहीं मानेगा। कहेगा, 'यह बेकार की बात है।' सचमुच ही यह बेकार की बात है। मेरी तो वहाँ कोई ज़रूरत नहीं है। पश्चात्ताप-भरे मन से उसने निश्चय किया कि इस बार दोष स्वीकार करूँगी और क्षमा मागूँगी। कहूँगी, 'अब कोई ग़लती नहीं करूँगी, कभी भी नियम भंग नहीं करूँगी।'

चिट्ठी खोलने से पहले बहुत दिनों के बाद उसने नीरद के उसी फ़ोटो को निकाला और मेज़ पर रख दिया। जानती

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