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दो बहनें

सितार पड़ा हुआ था, उसे उठाकर सुर बाँधे बिना ही झनाझन झंकार देती हुई जो जी में आया वही बजाने लगी।

ठीक ऐसे ही समय शशांक ने घर में प्रवेश किया। पूछा, "मामला क्या है? शादी का दिन ठीक हो गया क्या?"

"हाँ, जीजाजी, ठीक हो गया।"

"अब किसी प्रकार इधर-उधर होने की गुंजाइश नहीं?"

"बिल्कुल नहीं।"

"तो फिर इसी समय शहनाई का बयाना दे आऊँ, और भीमचन्द्र नाग के संदेश का?"

"तुम्हें कुछ भी नहीं करना होगा।"

"ख़ुद सब कुछ करोगी? धन्य हो वीराङ्गने! और लड़की का आशीर्वाद?"

"उस आशीर्वाद का रुपया मेरे ही पाकेट से गया है।"

"तो मछली के तेल में ही मछली तली गई है! कुछ ठीक समझ में नहीं आया।"

"यह लो समझ लो।"

---कहकर चिट्ठी उसके हाथ पर रख दी। पढ़कर शशांक हाः हा: हाः करके हँस पड़ा।

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