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दो बहनें

"ख़रीदकर क्या करोगे?"

"हिन्दू-शास्त्रों के अनुसार अन्त्येष्टि संस्कार। यदि तुम्हारे मन को सान्त्वना मिले तो गया तक जाने को तैयार हूँ।"

"ना, इतनो ज़ियादती बर्दाश्त नहीं होगी।"

"अच्छा, अपनी लाईब्रेरी में पिरामिड खड़ा करके इनकी 'ममी' बनाकर रख छोड़ूँगा।"

"लेकिन, आज तुम अपने काम पर नहीं जा सकोगे।"

"सारा दिन?"

"सारा दिन।"

"क्या करना होगा?"

"मोटर पर चम्पत हो जायँगे।"

"दीदी से छुट्टी मांँग लाओ।"

"ना, लौटकर आऊँगी तभी दीदी से कहूँगी। उस समय मुझपर खूब डाँट पड़ेगी सो बर्दाश्त हो जाएगी।"

"अच्छी बात है। मैं भी तुम्हारी दीदी की डाँट पचा लेने को तैयार हूँ। टायर यदि फट जाय तो दुःखित नहीं हूँगा। घंटे में पैंतालीस मील का रफ्तार से दो चार जनों को कुचलता हुआ जेलख़ाने तक पहुँचने में भी

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